जानिए क्या है बकरीद, क्यों दी जाती है जानवरों की कुर्बानी और किन चीजों का रखना होता है ख्याल
Eid Ul Adha: कुरान में आता है, कि अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम को ख्वाब में अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया. उस वक्त हज़रत इब्राहीम को 80 साल की उम्र में औलाद पैदा हुई थी.
नई दिल्ली: ईद-उल-अजहा यानि कुर्बानी की ईद. गरीबों का ख्याल रखने का दिन. इस्लाम को मानने वाले यानि मुसलमानों के लिए ये त्योहार बेहद खास है. कई लोग ईद उल अज़हा (Eid Ul Adha) को ईद-ए-कुर्बां भी कहते हैं. कुर्बानी उस जानवर के ज़िबह करने को कहते हैं, जिसे 10, 11, 12 ज़िलहिज्जा यानि हज के महीने में खुदा के नाम पर ज़िबह किया जाता है. कुरान में लिखा है - हमने तुम्हें हौज-ए-कौसा दिया, तो तुम अपने अल्लाह के लिए नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो.
बकरीद पर क्यों दी जाती जानवरों की कुर्बानी?
इस्लाम में कहा गया है, कि दुनिया में 1 लाख 24 हजार पैगंबर (नबी, Prophet) आए. जिन्होंने अल्लाह के हुक्म को माना और इस्लाम की दावत दी. हज़रत मौहम्मद साहब आखिरी पैगंबर थे. उनके बाद नबुव्वत का दौर खत्म हो गया. इन्हीं पैगम्बरों मे से एक पैगंबर हज़रत इब्राहीम दुनिया में आए, जिनकी सुन्नत को बकरीद मनाकर जिंदा रखा जाता है. कुरान में आता है, कि अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम को ख्वाब में अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया. उस वक्त हज़रत इब्राहीम को 80 साल की उम्र में औलाद पैदा हुई थी. हज़रत इब्राहीम के बेटे का नाम इस्माइल था. वो हज़रत इब्राहीम के लिए सबसे प्यारे थे. अल्लाह का हुक्म पूरा करने के लिए हज़रत इब्राहीम ने सख्त इम्तिहान दिया.
हज़रत इब्राहिम को जहां एक तरफ अल्लाह का हुक्म पूरा करना था, वहीं दूसरी जानिब बेटे की मुहब्बत उन्हें ये करने से रोक रही थी लेकिन उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अमल किया और बेटे को अल्लाह के रास्ते में कुर्बान करने को तैयार हो गए. हज़रत इब्राहिम ने जब कुर्बानी पेश करने लगे तो उन्हें लगा कि उनके ज़ज्बात बीच में आ सकते हैं. इस वजह से उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर कुर्बानी पेश की थी. इसके बाद जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो बेटे इस्माइल को सही सलामत पाया और देखा कि वहां एक दुम्बा (भेड़ जैसा दिखने वाला जानवर) पड़ा है. यहीं से ईद उल अज़हा की शुरूआत हुई और सभी मुसलमान हज़रत इब्राहिम की इस सुन्नत को ज़िंदा रखने के लिए अल्लाह की राह में कुर्बानी पेश करते हैं.
यह भी पढ़ें: नवाबों के शहर का अनोखा बकरा, कीमत जानकर हो जाएंगे हैरान, क्या है इसकी खासियत
गरीबों में बांटा जाता है कुर्बानी का गोश्त
इस्लाम में मुसलमानों और गरीबों का ध्यान रखने को खास तौर पर कहा गया है. इस वजह से बकरीद पर गरीबों का खास ख्याल रखा जाता है. इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. इन तीन हिस्सों में खुद के लिए एक हिस्सा रखा जाता है, एक हिस्सा पड़ोसियों और रिश्तेदारों को बांटा जाता है और एक हिस्सा गरीब-ज़रूरतमंदों को बांट दिया जाता है. इसके ज़रिए मुस्लिम लोग पैगाम देते हैं कि वो अपने दिल की करीब चीज भी दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं.
इस साल भी ईद उल अज़हा पर कोरोना का असर
पिछले साल की तरह इस इस साल भी ईद उल अजहा पर कोरोना वायरस असर पड़ रहा है. बहुत कम जगहों पर बकरों की मंडियां लग रही हैं. कहीं कोरोना की वजह से बकरें महंगे तो कहीं सस्ते मिल रहे हैं. कोरोना वायरस को देखते हुए तमाम बड़ी मुस्लिम तंज़ीमों ने भी मुसलमानों से अपील की है कि हुकूमत के ज़रिए जारी की गई गाइंडलाइंस के मुताबिक ईद उल अज़हा को त्योहार मनाएं.
जानवर खरीदते वक्त रखे जाते हैं यह ख्याल
कुर्बानी के लिए जानवर खरीदते वक्त कई तरह चीजों का ख्याल रखना होता है. सबसे पहले तो यह कि अगर आप बकरा खरीद रहे हैं तो उसकी उम्र कम से कम 12 महीने यानी एक साल होनी लाजमी है. वहीं अगर आप कोई बड़ी जानवर खरीद रहे हैं तो उसकी उम्र कम से कम 2 साल होनी जरूरी है.
ZEE SALAAM LIVE TV