Poetry of the Day: मोहसिन भोपाली (Mohsin Bhopali) उर्दू के मशहूर शायर थे. उन्हें इंकलाबी शायर माना जाता है. मोहसिन साहब को यात्रा वृतांत पर लिखी एक किताब 'हैरतों की सरजमीन' के लिए जाना जाता है. साल 1992 में कराची (पाकिस्तान) में हुए मिलिट्री ऑपरेशन के खिलाफ उन्होंने 'शहर ए आशोब' नाम की किताब लिखी थी. यह किताब भी बहुत मशहूर हुई थी. मोहसिन भोपाली की पैदाइश 29 सितंबर 1932 को मध्य प्रदेश में मौजूद भोपाल में हुई थी. उन्होंने 17 जनवरी 2007 को कराची पाकिस्तान में आखिरी सांस ली. मोहसिन भोपाली उर्दू शायरी पढ़ने वालों के दरमियान खासा मकबूल रहे. लोगों को उनकी शायरी पढ़ने का अंदाज बहुत पसंद आता था.


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उस को चाहा था कभी ख़ुद की तरह 
आज ख़ुद अपने तलबगार हैं हम 
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जो मिले थे हमें किताबों में 
जाने वो किस नगर में रहते हैं 
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क्या ख़बर थी हमें ये ज़ख़्म भी खाना होगा 
तू नहीं होगा तिरी बज़्म में आना होगा 
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बात कहने की हमेशा भूले 
लाख अंगुश्त पे धागा बाँधा 
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ग़लत थे वादे मगर मैं यक़ीन रखता था 
वो शख़्स लहजा बहुत दिल-नशीन रखता था 
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ज़िंदगी गुल है नग़्मा है महताब है 
ज़िंदगी को फ़क़त इम्तिहां मत समझ
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जाने वाले सब आ चुके 'मोहसिन' 
आने वाला अभी नहीं आया 
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कोई सूरत नहीं ख़राबी की 
किस ख़राबे में बस रहा है जिस्म
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पहले जो कहा अब भी वही कहते हैं 'मोहसिन' 
इतना है ब-अंदाज़-ए-दिगर कहने लगे हैं 
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ऐ मसीहाओ अगर चारागरी है दुश्वार 
हो सके तुम से नया ज़ख़्म लगाते जाओ 
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