'लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो' राजा मेहदी अली ख़ान बेहतरीन शेर
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'लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो' राजा मेहदी अली ख़ान बेहतरीन शेर

राजा मेहदी अली ख़ान (Raja Mehdi Ali Khan) का लिखा गाना 'लग जा गले फिर ये हंसी रात हो कि न हो' गाना आज भी लोगों की जबान पर रहता है.

राजा मेहदी अली ख़ान (Raja Mehdi Ali Khan)

Poetry of the Day: राजा मेहदी अली ख़ान (Raja Mehdi Ali Khan) उर्दू के मशहूर शायर, लेखक और गीतकार थे. राजा मेहदी अली खान ने फिल्मी दुनिया में बड़ा योगदान दिया. उनके बहुत सारे मशहूर गाने आज भी लोगों की जबान पर रहते हैं. मेहदी अली खान की पैदाइश 23 सितंबर 1915 में अविभाजित भारत के झेलम में हुई थी. बचपन में ही उनके पिता और मां का इंतेकाल हो गया. राजा साहब को शायरी विरासत में मिली. क्योंकि उनकी मां हेबे साहिबा उर्दू की मशहूर शायरा थीं. राजा मेहदी को पहली बार एस मुखर्जी ने 1946 में बनी अपनी फिल्म दो भाई में गीत लिखने का मौका दिया. इस फिल्म के दो गाने 'मेरा सुंदर सपना'  और  'याद करोगे' बहुत हिट हुए थे. 1947 में हुए सांप्रदायिक दंगों के बावजूद, राजा मेहदी और उनकी पत्नी ताहिरा ने पाकिस्तान न जाकर भारत में रहने का फैसला किया. 1948 में दिलीप कुमार और कामिनी कौशल अभिनीत फिल्म शहीद में लिखे उनके देशभक्ति गीतों "वतन की राह में" और "तोड़ो-तोड़ो बच्चे" की खूब धूम रही. 'लग जा गले फिर ये हंसी रात हो कि न हो' गाना आज भी लोगों की जबान पर रहता है. राजा मेहदी अली ख़ान 38 साल की उम्र में 29 जुलाई 1966 को इस दुनिया को छोड़कर चले गए. 

बताऊँ खाया है क्या मैं ने आज दो थप्पड़ 
दुरुस्त कर के गए हैं मिज़ाज दो थप्पड़ 
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मारो न हमें डैडी बचपन का ज़माना है 
मौसम है ये हँसने का हँस हँस के बिताना है 
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देखो देखो कितनी प्यारी महफ़िल है ये हाए 
तोता छेड़े थप-थप तबला मैना गीत सुनाए 
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मिरी मोहब्बत की दास्ताँ सुन के रो पड़े 'जोश-मलसियानी' 
सुखा के पंखे से उन के आँसू अभी वहाँ से मैं आ रहा हूँ 
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है घर की फ़ज़ा सहमी सहमी ग़मगीन हैं बच्चों के चेहरे 
कब हँस के कहूँगी ऐ बच्चो क्यों हम को सताना छोड़ दिया 
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अलिफ़ जो आलू खाएगा, वो मोटा हो जाएगा 
बे बारिश जब आती है, कोयल शोर मचाती है 
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ये सूरज जो शाम-ओ-सहर घूमता है इसे घूमने दो अगर घूमता है 
ज़मीं गोल अगर है तो होने दो भाई जो चिपटी है भाई तो मैं क्या करूँ 
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बैठे-बिठाए हो गई घर में मार-कटाई चार बजे 
मेरे बुज़ुर्गों ने मुझ को तहज़ीब सिखाई चार बजे 
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कोई शिकारी बार बार बन में हमारे आए क्यों 
चौकेंगे हम हज़ार बार कोई हमें डराए क्यों 
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जोड़ कर हम हाथ नन्हे ख़त को करते हैं तमाम 
आप के बच्चों को सब दुनिया के बच्चों को सलाम 
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भय्या की खा के मार लगाता हूँ क़हक़हे 
जब देखते हैं यार लगाता हूँ क़हक़हे 
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