दिवालिया होने की दहलीज पर यूनान
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दिवालिया होने की दहलीज पर यूनान

अपनी सभ्यता और ज्ञान से दुनिया को अचंभित करने वाला यूनान आज दिवालिया होने की दहलीज पर है। ग्रीस की यह हालत देखकर द ग्रेट अलेक्जेंडर की आत्मा कराह रही होगी। पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो चुके यूनान के लिए अपनी आर्थिक हालत सुधारने के लिए बेहद कम विकल्प बचे हैं। ऋण सुविधा उपलब्ध कराने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने बेलआउट (राहत) पैकेज देने के लिए जो कठिन शर्तें रखी हैं, यूनान उसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है। कर्ज की किस्त न चुका पाने का खतरा उठा रहा यूनान दिवालिया होना पहला विकसित देश होगा। अपनी विरासत में ज्ञान, वैभव और संपन्नता समेटे रखने वाले यूनान की यह दयनीय हालत क्यों हुई और उसे आर्थिक संकट के दौर से क्यों गुजरना पड़ रहा है, यह जानना जरूरी है।

यूनान के इस आर्थिक संकट के पीछे कुछ ठोस वजहें हैं। साल 1999 में यूनान में आए भूकंप से भारी क्षति पहुंची। हजारों की संख्या मकान में क्षतिग्रस्त हुए। खास बात यह है कि भूकंप से प्रभावित हुए इमारतों का निर्माण करने का जिम्मा यूनान की सरकार ने खुद उठाया। घरों के निर्माण और मरम्मत का सारा खर्चा देश के खजाने पर पड़ा। यूनान की अर्थव्यवस्था ठीक से संभली भी नहीं थी कि उसने 2004 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी की। इसके लिए उसने बड़ी मात्रा में कर्ज लिया। खेलों के सफल आयोजन के लिए पानी की तरह पैसा बहाया गया। इसके बाद 2008 में आई आर्थिक मंदी से यूनान भी प्रभावित हुआ या कहें कि यूरोप में मंदी का सर्वाधिक असर यूनान पर ही पड़ा। fallback

इन दस वर्षों में देश के खजाने पर पड़े भारी बोझ को यूनान की अर्थव्यवस्था संभाल नहीं सकी। अपनी आर्थिक हालत छिपाने के लिए उसने यूरोपीय देशों, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपीय सेट्रल बैंक से कर्ज लिए और अपनी आय से कहीं ज्यादा खर्च किए। बीते पांच सालों में यूनान में बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे बंद हुए। बेरोजगारी की दर बढ़कर 26 प्रतिशत पर पहुंच गई और पिछले पांच वर्षों में ही अर्थव्यवस्था एक चौथाई तक डूब चुकी है। करीब एक करोड़ 10 लाख की आबादी वाले देश की खास्ता आर्थिक हालत का खुलासा जब दुनिया के सामने हुआ तो कर्ज देने वाले देश एवं संस्थाओं ने अपने हाथ खड़े करने शुरू कर दिए। विदेशी कर्ज मिलने के अभाव में यूनान की अर्थव्यवस्था संकट में घिरती चली गई।

यूनान को आर्थिक संकट से उबारने के लिए 2010 के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और यूरोपीय देशों ने दो बड़े राहत पैकेज दिए लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए राहत पैकेज का कम इस्तेमाल हुआ। इस समय यूनान पर कुल 320 अरब यूरो का कर्ज है। यूनान को 30 जून तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को 1.5 अरब यूरो की किस्त चुकानी थी लेकिन वह ऐसा करने में नाकाम हो गया। यूनान की हालत किस्त देने लायक भी नहीं बची है। उसकी ऐसी हालत पर पूरी दुनिया चिंतित है। यूरोपीय संघ का प्रभावशाली देश जर्मनी और आईएमएफ एवं अन्य वित्तीय संस्थाएं यूनान को बचाने के लिए मदद के लिए तैयार हैं बशर्ते वे चाहते हैं कि यूनान को शर्तों के आधार पर बेलआउट पैकेज दिया जाए।

कर्ज देने वाली संस्थाएं चाहती हैं कि यूनान अपने चालू वित्तीय घाटे पर अंकुश लगाए। आर्थिक सुधारों को लागू करे। पेंशन जैसी सामाजिक एवं कल्याणकारी योजनाओं में कटौती और टैक्स में बढ़ोतरी करे। जर्मनी, आईएमएफ की इन शर्तों पर यूनान 5 जुलाई को (रेफरेंडम) जनमत संग्रह कराने जा रहा है। यूनान को आगे बेलआउट पैकेज मिलेगा कि नहीं यह बात बहुत कुछ उसके जनमत संग्रह पर निर्भर करेगी। यूनान ने मौजूदा आर्थिक हालत से निपटने के लिए कुछ फौरी उपाय भी किए हैं। मसलन उसने 7 जून तक के लिए अपने सभी बैंकों को बंद कर दिया है। एटीएम से पैसों की निकासी की सीमा निर्धारित कर दी गई है। एक व्यक्ति एक दिन में 60 यूरो (4250 रुपए) से ज्यादा निकासी नहीं कर सकता। देश से बाहर करेंसी भेजने पर भी रोक है।fallback   
दिवालिया होने पर यूनान यूरोपीय संघ से अलग होने की घोषणा भी कर सकता है। इसका असर दुनिया भर के बाजारों पर पड़ेगा। साथ ही यूरोप में एक अलग भू-राजनीतिक स्थिति का निर्माण होगा जिसकी अपनी चुनौतियां होंगी। यूनान का झुकाव चीन अथवा रूस की ओर होने से अमेरिका और यूरोपीय संघ के हितों को धक्का लगेगा। यूनान का बिखराव विश्व समुदाय के लिए ठीक नहीं होगा। लेकिन इस बुरी स्थिति में लाने के लिए औरों से कहीं ज्यादा वह खुद जिम्मेदार है। मौजूदा हालत से निकलने के लिए उसे राजनीति से ऊपर उठकर ईमानदारी से प्रयास करने होंगे तभी जाकर वह संभल सकेगा। 

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