घाटी की फिजा में बदलाव की बयार
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घाटी की फिजा में बदलाव की बयार

ऐसा उत्‍साह पहले कभी नहीं देखा गया। सियासत और रियासत की तकदीर बदलने की अवधारणा लिए लोगों ने पूरे जोशो खरोश के साथ भरपूर मतदान किया। सिर्फ मतदान ही नहीं बल्कि रिकॉड मतदान जो एक साथ कई संदेश दे गई। संदेश भी ऐसा कि पहली मर्तबा घाटी की फिजा में बदलाव की बयार नजर आने लगी। ऐसा लग रहा है कि मानो कश्मीर की सियासत परंपराओं की जंजीरों से आजाद होती नजर आ रही है।

जम्‍मू कश्‍मीर में आतंक के धुंधले पड़ते साये, कड़कती ठंड और सर्द हवाओं के झोकों के बीच विधानसभा के पहले चरण के चुनाव में मतदाताओं ने जो उत्‍साह दिखाया, वह वाकई हैरतअंगेज और काबिलेतारीफ है। हैरतअंगेत इसलिए कि इस राज्‍य में अब तक मतदान प्रकिया में वोटरों के बीच संभवत: ऐसा उत्‍साह पहले कभी नहीं देखा गया। सियासत और रियासत की तकदीर बदलने की अवधारणा लिए लोगों ने पूरे जोशो खरोश के साथ भरपूर मतदान किया। सिर्फ मतदान ही नहीं बल्कि रिकॉड मतदान जो एक साथ कई संदेश दे गई। संदेश भी ऐसा कि पहली मर्तबा घाटी की फिजा में बदलाव की बयार नजर आने लगी। ऐसा लग रहा है कि मानो कश्मीर की सियासत परंपराओं की जंजीरों से आजाद होती नजर आ रही है।

राज्य में बीते 25 नवंबर को पहले चरण के लिए हुए मतदान में 72 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सबसे सुखद बात यह रही कि चुनाव की पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही। पहले चरण में बड़ी संख्या में मतदान से निश्चित तौर पर अलगाववादी, राष्‍ट्र विरोधी तत्‍व और उग्रवाद समर्थक आश्चर्यचकित रह गए होंगे। सूबे में पांच चरणों में हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले चरण में कुल 15 निर्वाचन क्षेत्रों में अलगाववादी संगठनों के बहिष्कार को धता बताते हुए लोगों ने बढ़ चढ़कर और बिना किसी भय के अपना मत डाला। लोगों ने न सर्द मौसम, न बहिष्‍कार और न ही आतंकियों से भय की परवाह की और तकरीबन हर मतदान केंद्र पर अहले सुबह से अपने मताधिकार का बेझिझक इस्तेमाल किया।

जिक्र योग्‍य है कि जम्मू-कश्मीर में साल 2008 के विधानसभा चुनाव के दौरान पहले चरण के इन 15 सीटों पर 61.23 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था। इन सीटों में छह जम्मू, पांच कश्मीर घाटी और चार लद्दाख में है। मगर इस बार मतदान न सिर्फ पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा बल्कि कोई अप्रिय घटना भी नहीं घटी। मतदान प्रकिया पूरी तरह त्रुटिहीन रही और कहीं भी नुकसान पहुंचाने वाली एक भी घटना नहीं घटी। घाटी में इस तरह चुनाव प्रकिया संपन्‍न होना यह भी दर्शाता है कि जनता अब हिंसा और आतंक को पूरी तरह नकार चुकी है।

पहले चरण में शांतिपूर्ण और बड़ी संख्‍या में मतदान के रुझान से यह साफ है कि राज्य के लोग बदलाव चाहते हैं। रुझान से यह भी प्रदर्शित होता है कि राज्‍य की जनता बदलाव के लिए उत्साहपूर्वक मतदान कर रही है। चुनावी प्रक्रिया में अच्छी खासी संख्या में शिरकत करना यह भी दिखाता है कि कहीं ये मौजूदा शासन के खिलाफ वोट न हो। ज्यादा मतदान की वजह भी सत्ता विरोधी लहर हो सकता है। मतदान के आंकड़े में भारी बढ़ोतरी क्षेत्रीय पार्टियों की राह में चुनौती खड़ी करते भी नजर आ रहे हैं। लोगों के इस मूड से यह संकेत मिलता है कि विभाजनकारी ताकतों को हाशिये पर डालने के लिए वे जमकर मतदान कर रहे हैं। वैसे भी विभाजनकारी और अलगाववादी ताकतों ने बीते कई दशकों तक घाटी की जनता को झूठ का नकाब पहनाकर केवल बरगलाने का काम किया। जिसका नतीजा यह हुआ हुआ कि यहां के लोग अपनों के बीच रहते हुए भी कभी 'अपनों' सरीखा अहसार नहीं कर सके। यदि गहराई से देखें तो इसके लिए जिम्‍मेदार सिर्फ यही 'तत्‍व' हैं। इस बार नि:संदेह लोगों की पहली पसंद कुछ और है, लेकिन इसके लिए चुनाव परिणाम तक इंतजार करना बेहतर होगा। मगर देखना यह होगा कि लोग कितना मजबूत और निर्णायक जनादेश बदलाव के लिए दे रहे हैं। संभवत: इस बदलाव में वे (घाटी के लोग) अपना भविष्‍य देख रहे हों जो राज्य की समस्याओं से निर्णायक रूप से निपट सके। चूंकि, राज्‍य की जनता ने अब तक अनगिनत पीड़ा झेली है और आतंक का नासूर दंश झेला है। कई सालों से यहां फैले आतंकवाद ने इस राज्‍य के 'जन्‍नत' का दर्जा भी छीन लिया।

यदि पूरे देश पर नजर डालें तो विकास के पैमाने पर यह राज्‍य अभी काफी पीछे है। वोटरों के रुझान से अब यह साफ है कि आतंक के अंतहीन दर्द और पिछड़ेपन ने यहां के लोगों को अब नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर किया है। इसी कारण से लोगों ने अलगाववादियों की ओर से किए गए चुनाव के बहिष्कार के आह्वान को पूरी तरह खारिज कर दिया। जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद पनपने के बाद से पाकिस्तानी मीडिया भी राज्य में होने वाले चुनावों को सामान्‍य तौर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं मानता था। इसकी पुष्टि के लिए पिछले चुनावों में मतदान प्रतिशत कम रहने को तर्क के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन यह भी पहली बार हुआ कि इस बार एक पाकिस्तानी अखबार की ओर से कराए गए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में 52 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने मत दिया कि घाटी में हो रहे चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हैं।

पहले चरण में सोनावारी विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा 80 फीसदी मतदान हुआ जो कभी आतंकवादियों का गढ़ था। अलगाववादियों के बहिष्कार के आह्वान की उपेक्षा करते हुए और ठंड से जूझते हुए 71 फीसदी से अधिक लोगों ने जमकर वोट डाले जो पिछले विधानसभा चुनाव में हुए मतदान से करीब 10 फीसदी और लोकसभा चुनावों से करीब 20 फीसदी ज्यादा मतदान है। घाटी के तीन विधानसभा क्षेत्रों सोनावारी, गुरेज और कंगन में सबसे ज्यादा क्रमश: 80 फीसदी, 77 फीसदी और 76 फीसदी मतदान हुआ, जहां आतंकियों का भय और बहिष्‍कार की गूंज सबसे ज्‍यादा थी।

ऐसा लग रहा है कि लोगों को इस मर्तबा उम्मीद की नई किरण दिखने को मिली है। चुनावों में भारी संख्या में मतदाताओं के उमड़ने से संदेश मिलता है कि बैलेट की जीत हुई है और बुलेट को नकार दिया गया है।
इतनी तादाद में मतदान केंद्रों की ओर लोगों का खिंचा आना यह भी जताता है कि वे प्रगति के लिए वोट डाल रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार, लूट और भावनात्मक ब्लैकमेलिंग समाप्त करने के मद्दनेजर मौजूदा रुझान काफी सकारात्‍मक है और आगामी सालों में इसके दूरगामी परिणाम सामने आ सकते हैं।

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अनुच्छेद 370 और आंतरिक स्वायत्तता के मसले को लेकर यहां की पार्टियों के अपने अपने मत हैं, लेकिन विकास को पीछे छोड़ केवल इसी मसले पर सियासत करना यहां की जनता के लिए पूरी तरह नाइंसाफी के समान है। बीते 40 सालों ऐसा पहली बार है कि राष्ट्रीय स्‍तर की कोई हिंदुत्‍ववादी वादी पार्टी सरकार गठन में सबसे महत्वपूर्ण भागीदारी के संकेत दे रही है जोकि अलगाववादियों के लिए निश्चित ही वज्रपात के समान होगा। अलग कश्मीर की मांग करने वाले अलगाववादियों को जनता ने मतदान कर करारा जवाब दिया है। साल 2014 में सियासी समीकरण काफी बदले नजर आ रहे हैं और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी सत्‍तासीन है।
 
नरेंद्र मोदी सरकार की अब तक की प्रतिबद्धता को देखते हुए उम्‍मीद बंधती है कि आने वाले दिनों में देश के आर्थिक माहौल में बुनियादी बदलाव देखने को मिलेगा। आज हर कोई यह महसूस कर रहा है कि केंद्र सरकार बड़ी योजनाओं-परियोजनाओं को हाथ में लिए बगैर बिगड़े आर्थिक माहौल को दुरुस्त करने में लगी है और इससे हालात में बदलाव को लेकर एक उम्मीद भी बंधी है। पीएम मोदी खुद शासन की इस छोटी अवधि में राज्‍य का कई बार दौरा कर चुके हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि घाटी के लोगों की काफी उम्‍मीदें बंधी हैं। वैसे भी बीजेपी ने इस बार चुनाव प्रचार के दौरान केवल विकास का बिगुल ही बजाया है और पार्टी अब विकास के नजरिये से ही कश्‍मीर को देख रही है। जम्‍मू कश्‍मीर को लेकर पीएम मोदी का खुद इस तरह ध्‍यान केंद्रित करने से ऐसा लग रहा है कि पार्टी का मिशन अब पारंपरिक परिभाषा को बदलना है। नए और पुराने मतदाताओं के दृष्टिकोण से भी देखें तो अधिकांश नए वोटरों का झुकाव इस बार बीजेपी की ओर हो सकता है।

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में पांच चरणों में मतदान होना है और आखिरी चरण 20 दिसंबर को होगा। इसके बाद तय हो जाएगा कि घाटी की जनता ने अपना भविष्‍य किस पार्टी के हाथों में सौंपा है। यदि पांचों चरणों के मतदान के आंकड़ों में इसी तरह इजाफा होता है तो इसका बड़ा लाभ बीजेपी को मिल सकता है। चुनाव परिणाम सभी पार्टियों के साथ साथ अलगाववादियों के लिए भी चौंकाने वाले साबित हो सकते हैं। मगर अब तक के रुझान निश्चित तौर पर घाटी में बदलाव की बयान की तरफ इशारा कर रहे हैं।

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