2019 में देश की सत्ता किसके हाथ में होगी? क्या कांग्रेस कर्नाटक चुनाव के परिणामों को नई शुरुआत मान रही है? भले ही कर्नाटक चुनाव ने ढलती कांग्रेस में एक नई जान फूंक दी हो, लेकिन 2019 में सत्ता हासिल करना उसके लिए मुश्किल नजर आता है.
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नई दिल्ली: 2019 में देश की सत्ता किसके हाथ में होगी? क्या कांग्रेस कर्नाटक चुनाव के परिणामों को नई शुरुआत मान रही है? भले ही कर्नाटक चुनाव ने ढलती कांग्रेस में एक नई जान फूंक दी हो, लेकिन 2019 में सत्ता हासिल करना उसके लिए मुश्किल नजर आता है. दरअसल, कांग्रेस के ऊपर एक बड़ा संकट है. यह संकट उसके लिए 2019 में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को रोकने में रोड़ा बन सकता है. ऐसे में कांग्रेस के सत्ता में लौटने का सपना भी अधूरा सा ही नजर आता है.
पांच महीने से बड़े संकट में कांग्रेस
दरअसल, पिछले पांच महीने से कांग्रेस वित्तीय संकट से जूझ रही है. कांग्रेस आलाकमान ने कई राज्य में अपने कार्यालय चलाने के लिए भेजे जाने वाले फंड पर रोक लगा दी है. नाम न छापने की शर्त पर मामले की जानकारी रखने वाले कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है. इस वित्तीय संकट से निकलने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी कार्यकर्ता और सदस्यों से योगदान बढ़ाने और अधिकारियों से खर्च में कटौती करने को कहा है.
उद्योगपतियों ने खींचे हाथ?
राहुल गांधी की अगुआई में उद्योगपतियों से पार्टी को मिलने वाला फंड पूरी तरह सूख गया है. इससे नकदी की कमी इतनी गंभीर है कि उम्मीदावर के लिए फंड जुटाना भी मुश्किल है. कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया डिपार्टमेंट की हेड दिव्या स्पंदना ने इस बात को कबूल किया कि उनके पास फंड नहीं है. उनके मुताबिक, बीजेपी के मुकाबले इलेक्टोरल फंड के जरिए कांग्रेस को फंडिंग नहीं मिल रही है. यही वजह है कि कांग्रेस को ऑनलाइन सोर्स के जरिए पैसा जुटाना पड़ सकता है.
मोदी बने रहेंगे लोकप्रिय नेता
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मुख्य सहयोगी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ कांग्रेस की पकड़ वाले राज्यों में भी कब्जा कर लिया है. एक आंकड़े के मुताबिक, बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की इस वक्त 21 राज्यों में सरकार है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले साल के आम चुनाव तक सबसे लोकप्रिय नेता बने रहेंगे. वहीं, कांग्रेस के पास सिर्फ दो राज्यों में सरकार है. जबकि 2013 तक उनकी 15 राज्य में सरकार थी.
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कांग्रेस से दूरी बना रहे कारोबारी
वाशिंगटन, डीसी में अंतर्राष्ट्रीय शांति के कार्नेगी एंडोमेंट में दक्षिण एशिया के एक वरिष्ठ सदस्य मिलन वैष्णव के मुताबिक, कारोबारी वर्ग लगातार कांग्रेस से दूर हो रहा है. वहीं, 2019 से पहले बीजेपी ने जरूरी फंड जुटा लिया है. इसकी एक वजह यह भी है कि कांग्रेस और दूसरी क्षेत्रिय पार्टियों को व्यापार-अनुकूल नहीं माना जाता. कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस मामले में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया है.
81 फीसदी बढ़ी बीजेपी की आय
वित्तीय वर्ष 2017 में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस ने एक चौथाई फंड जुटाया है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक, बीजेपी ने इस अवधि के दौरान 1034 करोड़ रुपए (152 मिलियन डॉलर) की आय घोषित की, जो एक साल पहले से 81 फीसदी ज्यादा है. वहीं, कांग्रेस को इस अवधि में कुल 225 करोड़ का फंड मिला है. जो पिछले साल की तुलना में 14 फीसदी कम है.
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हवाई यात्रा पर भी फंड की कमी
धन की कमी के कारण फ्लाइट टिकट के लिए एक अंतहीन प्रतीक्षा का मतलब था कि एक वरिष्ठ नेता इस वर्ष की शुरुआत में चुनावों की निगरानी के लिए समय पर राज्य तक नहीं पहुंच सका. यही वजह थी कि त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय चुनाव में पार्टी का अभियान बीजेपी की तुलना फीका रहा. एक अधिकारी के मुताबिक, इन राज्यों में पार्टी की हार का एक बड़ा कारण यह भी रहा. यात्रा खर्च के अलावा, पार्टी कार्यालयों में मेहमानों के लिए चाय तक में कटौती की गई.
फंड जुटाने में बीजेपी कहीं आगे
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने दोगुना खर्च किया है. वहीं, वह कॉरपोरेट से फंड जुटाने में भी कहीं आगे है. चार साल की अवधि में मार्च 2016 तक बीजेपी को कुल 2987 कारोबारियों से 705 करोड़ रुपए का फंड मिला. वहीं, कांग्रेस को 167 कारोबारियों से सिर्फ 198 करोड़ रुपए का फंड मिला. एडीआर के मुताबिक, 2014 के आम चुनाव के दौरान बीजेपी ने 588 करोड़ का फंड जुटाया था. जबकि कांग्रेस को 350 करोड़ का फंड मिला था.
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बिना फंडा मुश्किल होगा 2019 चुनाव
कांग्रेस के एक वरिष्ठ सदस्य के मुताबिक, फंड की कमी का असर चुनाव प्रचार और संगठन की गतिशीलता पर दिखता है. हालांकि, पार्टी इस समस्या से निपटने के लिए काम कर रही है और खर्च पर भी सख्त प्रतिबंध लगाया है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक और ट्रस्टी जगदीप छोकार के मुताबिक, बिना चुनावी फंडिंग के कांग्रेस को 2019 में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि एक पार्टी जिसके पास पैसा नहीं है, उसे भारतीय चुनावों में नुकसान उठाना पड़ेगा.
पार्टी ऑफिस भी नहीं है तैयार
कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने कहा कि बीजेपी पहले से ही नई दिल्ली में अपने नए हेडक्वार्टर में चली गई है. लेकिन, कांग्रेस पार्टी का नया ऑफिस फंड की कमी के चलते अभी भी निर्माणाधीन है. राज्य दर राज्य चुनाव हारने के कारण पार्टी पर वित्तीय संकट गहराता गया. वहीं, राज्यों की सत्ताधारी पार्टी अपनी पार्टी के लिए फंड जुटाती चली गईं. राजनीतिक विश्लेषक अजय बोस के मुताबिक, कांग्रेस के पास मौका है कि अगर वो यह साबित करे कि बीजेपी अपनी जीत को लेकर निश्चित नही है तो कॉरपोरेट को अपनी ओर खींच सकती है.
दिलचस्प होगा चुनाव
2019 के चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा, जब देश की एक बड़ी अमीर पार्टी और ताकतवर सरकार चुनाव प्रचार पर जमकर खर्च करेगी. वहीं, कांग्रेस और दूसरी पार्टियां फंड की कमी के चलते बिल्कुल साधारण ढंग से चुनाव प्रचार करेगी.