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मुंबई: नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि देश में कराधान कानून ठीक से परिभाषित नहीं है। उन्होंने कानून में अस्पष्टता दूर करने को कहा ताकि ‘कर अधिकारी के विवेकाधिकार’ को समाप्त किया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च राशि की मुद्रा पर पाबंदी कालाधन के खिलाफ मात्र एक कदम है और इस दिशा में और बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है।
पनगढ़िया ने यहां एक परिचर्चा में कहा, ‘कालाधन के खिलाफ लड़ाई में कर सुधार वास्तव में महत्वपूर्ण है।’ उन्होंने कहा, ‘और सरलीकरण का मतलब है कि मौजूदा कानून के तहत संभवत: कई छूटें समाप्त होंगी। साथ ही हमें कई नियमों और कानून को स्पष्ट करने की जरूरत है। हमारे मामले में कर कानून ठीक से परिभाषित नहीं है। इससे निश्चित तौर पर विवेकाधिकार की गुंजाइश बनती है।’
नीति आयोग के प्रमुख ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, ‘..अगर कर कानून पर्याप्त रूप से स्पष्ट हो तो कर अधिकारी के पास विवेकाधिकार नहीं होगा बल्कि कानून के स्पष्ट होने से करदाता स्वयं बातों को समझ सकते हैं और उन्हें कर अधिकारी के साथ बातचीत करने की आवश्यकता नहीं होगी।’ पनगढ़िया ने कहा कि कालाधन पर लगाम लगाने के लिसे स्टांप ड्यूटी में कमी जैसे कर सुधार जरूरी है और इसे नोटबंदी के बाद तुरंत किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘विभिन्न राज्यों में स्टांप ड्यूटी व्यापक रूप से अलग-अलग है और उस पर गौर करने की जरूरत है। अगर आप स्टांप ड्यूट बहुत उंचा रखते हैं तो इससे जमीन-जायदाद के क्षेत्र में टेबल के नीचे से लेन-देन को प्रोत्साहन देते हैं।’ नीति आयोग के प्रमुख ने कहा, ‘कालाधन रोकने की दिशा में नोटबंदी एकमात्र कदम है लेकिन इस दिशा में और बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है।’