Opinion: आखिर कब तक शहादत देते रहेंगे हमारे जांबाज सैनिक? क्यों नहीं हो रहा आतंकवाद का खात्मा
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Opinion: आखिर कब तक शहादत देते रहेंगे हमारे जांबाज सैनिक? क्यों नहीं हो रहा आतंकवाद का खात्मा

Terror Attacks in India: जम्मू-कश्मीर (Jammu Kahmir) से लेकर पंजाब, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, बंगाल और नॉर्थ-ईस्ट तक शायद ही कोई ऐसा प्रदेश हो, जिसने आतंकवाद का दंश न झेला हो. हर साल भारतीय सेना के जवान और सुरक्षाबल भारत के दुश्मनों, पाकिस्तानी आतंकवादियों और घुसपैठियों को मार गिराते हैं. फिर भी मानवता के दुश्मन रक्तबीज की तरह खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं.

Opinion: आखिर कब तक शहादत देते रहेंगे हमारे जांबाज सैनिक? क्यों नहीं हो रहा आतंकवाद का खात्मा

Terrorism in India: चार मई 2024 की शाम जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के पुंछ में आतंकवादियों ने भारतीय वायुसेना के काफिले पर हमला (Poonch Terror Attack) किया. आतंकी हमले में एक जवान शहीद हो गया. चार घायल जवानों का इलाज जारी है. बीते कुछ सालों में देश में आतंकवाद की कमर टूटी है. लेकिन ये समस्या जड़ से खत्म नहीं हुई है. यूं तो अंग्रेजों की गुलामी से 1947 में आजादी मिलने के बाद से ही देश आतंकवाद का शिकार रहा है. 77 सालों में आतंकवाद ने भारत माता और हमारे जवानों के सीने को कई बार गोलियों से छलनी किया है. भारतीय सेना, सुरक्षा बलों के जवान और देशभर की पुलिस लगातार आतंकियों का सफाया कर रही है. इसके बावजूद आतंकवाद को कोई पुख्ता इलाज नहीं मिल सका है. अब सवाल उठता है कि आखिरकार आतंकी हमलों में हमारे जवानों की शहादत आखिर कब तक होती रहेगी?

Terror attacks in India: भारत में आतंकी हमलों का पुराना इतिहास 

जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब, महाराष्ट्र से लेकर पश्चिम बंगाल और नॉर्थ-ईस्ट से लेकर दक्षिण भारत तक शायद ही कोई ऐसा राज्य हो जिसने कभी न कभी आतंकवाद का दंश न झेला हो. खासकर सीमावर्ती राज्यों जम्मू-कश्मीर, पंजाब और राजस्थान में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपना नेटवर्क मजबूत करने की कोशिश की इसलिए यहां ज्यादा नुकसान पहुंचा.

हालांकि गद्दार और जयचंद तो देश के किसी भी कोने में हो सकते हैं. हनी ट्रैप के मामले और चंद सिक्कों के लिए गद्दारी करने वालों पर भी मजबूत शिकंजा कसा जा रहा है. लेकिन इस परेशानी का अभी कोई स्थाई समाधान नहीं मिल पाया है. आजादी के बाद से ही इस समस्या का हल ढूंढने की दिशा में बहुत काम हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

'77 साल पुरानी समस्याएं, इलाज में कुछ और समय लगेगा'

पाकिस्तान फौज फायरिंग की आड़ में अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई की लिखी स्क्रिप्ट पर भारत में घुसपैठ कराती आई है. आजादी के बाद भारत की तत्कालीन केंद्र सरकार के कुछ गलत फैसलों की वजह से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पनपा. पहले सेना और सुरक्षा बलों को पाकिस्तानी हमलों का जवाब देने के लिए सरकार से इजाजत लेनी पड़ती थी. हालांकि बीते 10 सालों में ऐसी बंदिशे हटी हैं. सेना, पाकिस्तान की किसी भी ओछी हरकत का मुहंतोड़ जवाब तुरंत दे रही है. ऐसे में सीमापार से होने वाली आतंकवादियों की सप्लाई लगभग न के बराबर रह गई है. फिर भी इक्का-दुक्का आतंकवादी दुर्गम रास्तों जैसे नदी-नालों और घने जंगलों का फायदा उठाकर भारत की सीमा में आ ही जाते हैं.

जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेष अधिकार देने के नाम पर लगाई गई धारा 370 की वजह से कश्मीर घाटी में विकास रुका. रोजगार के मौके कम हुए. बेरोजगारी की वजह से कश्मीरी युवा आतंकी कैंपों में भर्ती होने लगे. 370 खत्म होने के बाद अब काफी वक्त गुजर चुका है. हालात बदल चुके हैं. सेना कश्मीरी लोगों को रोजगार मुहैया करा रही है. स्थानीय युवा अब आतंकी गतिविधियों से दूर हो रहे हैं, यह बात पाकिस्तान को हजम नहीं हो रही है. इसलिए वो हर कीमत पर कश्मीर में हमला करके अपनी नापाक साजिशों को बढ़ाने के लिए बौखलाया हुआ है. यही वजह है कि 2024 में 4 मई को पुंछ में हुए इस हमले को ही एक बड़ा हमला माना जा सकता है.

पाकिस्तान की कश्मीर पर बुरी नजर

भारत का बंटवारा होते ही पाकिस्तानी शासकों ने कश्मीर (Kashmir) पर कबायली भेजकर कब्जा कराने की कोशिश की. आतंकी घुसपैठ की समस्या आजादी के फौरन बाद शुरू हुई. शुरुआत से ही चीजों को उलझा दिया गया. पाकिस्तान (Pakistan) से भारत में जमकर आतंकवाद सप्लाई किया गया. इसकी कीमत भी सेना के वीर जवानों को जान देकर चुकानी पड़ी.

सरकार ने सेना को मौके की नजाकत को समझते हुए जैसे को तैसा जवाब देने की छूट दी है. सरकार कश्मीर में जागरूकता कार्यक्रम चला रही है. आतंकी संगठन में अब कश्मीरी युवाओं की भर्ती बेहद कम हो चुकी है. सीमापार से कश्मीर में फंडिंग नहीं हो पा रही है. स्लीपर सेल कमजोर हुए हैं. ऐसे में ड्रोन के सहारे पाकिस्तान अब भारत में छिपे अपने कुछ गुर्गों तक हथियार और नशे की खेप पहुंचा रहा है. ऐसे मामलों में भी कमी आई है. 

कब रुकेगी घुसपैठ?

करीब छह साल पहले देश में पहली बार लेजर एक्टिव बाड़ यानी स्‍मार्ट फेंस लगाए गए थे. इस तरह की फेंस की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी, खासतौर जम्‍मू-कश्‍मीर की पाकिस्‍तान से लगती सीमा पर. क्‍योंकि यहां से आतंकियों की घुसपैठ हमेशा से ही सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती रही है. इजरायल की हाइटेक सिक्योरिटी की तर्ज पर बनी फेंस को जम्मू क्षेत्र में पाकिस्तान से लगी सीमा पर 5-5 किलोमीटर के 2 इलाकों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत लगाया गया था. इसके बाद भी घुसपैठिये किसी लूप होल का फायदा उठाकर भारत की सीमा में आ जाते हैं.

ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि सीमावर्ती इलाकों में घने जंगल और नदी-नाले होते हैं. प्राकतिक चीजों को रोकना संभव नहीं है. तमाम निगरानी के जरिए सुरक्षा व्यवस्था लगातार अभेद बनाई जा रही है, लेकिन कभी-कभी जरा सी सावधानी हटते ही आतंकी हमला होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. 

आतंकी घुसपैठ हो या भारत की धरती पर होने वाले आतंकवादी हमले, 1947 से लेकर 2024 आते आते दोनों ही समस्याओं पर काफी हद तक रोक लगी. लेकिन आज भी कहीं न कहीं से ये आतंकवादी देश की सीमा में आ ही जाते हैं. 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में असमानता और आतंकवाद पर अमेरिका-यूरोप का नजरिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेशमंत्री एस जयशंकर कई सालों से यूएन से लेकर अमेरिका-यूरोप और पूरी दुनिया में आतंकवाद की एक ही परिभाषा तय करने की मांग कर रहे हैं. और ये बात अभी विदेशी नेताओं को समझ नहीं आई है. अमेरिका और पश्चिम के देश आतंकवाद पर तब बात करते हैं जब उनके देश में हमला होता है, वरना वो आतंकियों को पालने वाले देशों और लोगों की किसी न किसी चैनल से फंडिंग करते रहते हैं. भारत ने G-20 की अध्यक्षता की तब आयोजन के समापन भाषण में भी पीएम मोदी ने आतंकवाद को खत्म करने के लिए मिलकर काम करने की अपील की थी.

सुरक्षा परिषद (UNSC) में चीन ने संतुलन बिगाड़ रखा है. वीटो के नाम पर मनमर्जियां चल रही है. जिसके मन की बात पूरी नहीं होती वहीं मुंह उठाकर वीटो लगा देता है. पाकिस्तान के कहने पर चीन उसके आतंकवादियों को वीटो लगाकर बचा रहा है. ऐसे में भारत की सुरक्षा परिषद में एंट्री बेहज जरूरी है. सुरक्षा परिषद अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही है. इसकी स्थापना से लेकर आज तक दुनिया में बहुत बदलाव आ चुका है. ऐसे में यूएनएससी में भारत के न होने से भी आतंकवाद पर पूरी तरह चोट नहीं हो पा रही है. यही वजह है कि दुनिया की पांंचवी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश भारत भी अभी तक पूरी तरह से आतंकी हमलों से मुक्त नहीं हो पा रहा है.

लगातार रणनीति बदल रहे आतंकवादी

पठानकोट आतंकी हमला हो या उरी अटैक, राजौरी में सेना पर हुआ हमले हों या पुलवामा टेरर अटैक से लेकर पुंछ में हाल ही वायुसेना के काफिले पर हुआ हमला. हर आतंकी एक्शन के पीछे पाकिस्तान का ही सीधा हाथ होता है. कुछ मामलों में उसके प्रॉक्सी हमला करते हैं. लेकिन उसकी चोरी हर बार की तरह पकड़ी जाती है. ज्यादातर मामलों में पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए आतंकी कायराना हमला करके भौगोलिक परिस्थितियों का फायदा उठाकर भाग जाते थे. बीते 15 सालों में हालात तेजी से बदले हैं ऐसे में घुसपैठ में कमी आई है. इसलिए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी अब फिदायीन हमला यानी आत्मघाती हमला (सुसाइड अटैक)  करके भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. 

बीते कुछ सालों में खासकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद आतंकवादी अपनी रणनीति बदल रहे हैं. वो टारगेट किलिंग की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. ताकि जम्मू-कश्मीर के बाहर से आने वाले लोगों के मन में दहशत पैदा की जा सके. लगातार प्रवासी मजदूरों, शिक्षकों और अन्य काम करने वाले लोगों की हत्या की जा रही है. आतंकवादी अब बड़े आधुनिक हथियारों और गोलाबारूद के बजाए छोटे हथियारों जैसे पिस्टल वगैरह से हमले कर रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर में 2023 में पिछले साल की तुलना में 63% कम हुए आतंकवादी हमले

साल 2023 जम्मू-कश्मीर के लिए खास और आतंकवादियों का काल साबित हुआ. पिछले साल आतंकवादी हमलों में भारी गिरावट आई, तो वहीं बड़ी संख्या आतंकवादी और उनके मददगार और हमदर्द पुलिस के हत्थे चढ़े. आतंकी फंडिग कम हुई है. पत्थरबाजी की घटानाएं बंद हो गई है. पुलिस के जवान भी कम शहीद हुए. सरकारी आंकड़ो के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में 2023 में कुल 48 एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन चलाए गए. इनमें 76 आतंकवादी ढेर हुए. बड़ी बात ये है कि मारे गए 76 आतंकवादियों में से 55 दूसरे देश के थे. जम्मू-कश्मीर के डीजीपी आरआर स्वैन ने 30 दिसंबर की एक प्रेस कांफ्रेंस मे ये डाटा जारी किया था.

डीजीपी के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर ने 2023 में आतंकवादी हमलों में बड़ी कमी देखी. साल 2022 में 125 आतंकी घटनाएं हुईं, वहीं 2024 में ये आंकड़ा 46 रहा. इस तरह आतंकी घटनाओं में 2023 में करीब 63% की कमी आई. 

स्थानीय लोग आतंकवादियों का साथ छोड़ रहे- पुलिस को भी हुआ कम नुकसान

2023 में आतंकी भर्ती में भी करीब 80% गिरावट हुई. एक अनुमान के मुताबिक साल 2022 में 130 स्थानीय लोग आतंकी गतिविधियों में शामिल थे. 2023 में यह संख्या सिर्फ 22 रह गई. 2023 में जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक DSP समेत 4 पुलिसकर्मी आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए शहीद हुए, जबकि 2022 में पुलिस के 14 जवान शहीद हुए थे. अगर आम लोगों की हत्या की बात करें तो इसमें भी 2022 की तुलना में कमी आई. 2022 में आतंकवादियों ने 31 आम नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था. 2023 में 14 लोग आतंकवादियों के शिकार बने. 2024 के शुरुआती पांच महीनों में ये आंकड़ा कम हुआ है. हालांकि टारगेट किलिंग में कुछ लोगों की हत्या हुई है. 

एक अनुमान के मुताबिक इतने आतंकियों का खात्मा बाकी

जम्मू-कश्मीर में 2023 में पुलिस ने 31 लोकल आतंकवादियों की पहचान की थी. इनमें से 4 आतंकवादी जम्मू के किश्तवाड़ में तो 27 आतंकवादी कश्मीर इलाके में एक्टिव थे. हालांकि जम्मू क्षेत्र के राजौरी और पुंछ जिलों में 2023 में आतंकवादी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई. पुलिस के इनपुट के मुताबिक 2024 में भी राजौरी और पुंछ जिलों में खास चौकसी बरती जा रही है. यहां लगातार सर्च ऑपरेशन चल रहे हैं.

सरकार ने आतंकवाद के खात्में पर क्या कहा?

पुंछ में एयरफोर्स के काफिले पर हुए हमले में पांच जवान घायल हुए थे. एक ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. सेना का कहना है हमारे जवानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी. केंद्र सरकार ने 2023 में कहा गया था कि जल्द ही देश से आतंकवाद और नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया जाएगा. गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय की कोशिशें रंग ला रही हैं. ऐसे में फिलहाल तो ये उम्मीद ही की जा सकती है कि जल्द ही ऐसा दिन आएगा जब आतंकी हमले में हमारे एक भी जवान की शहादत नहीं होगी.

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