जीएसटीएन ने ई-वे बिल में एक और बदलाव किया है. अब इस बिल में माल भेजने और माल पहुंचाने वाले स्थान का पिन कोड नंबर भरना अनिवार्य कर दिया गया है.
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नई दिल्ली : ई-वे बिल को और दुरुस्त बनाने के लिए इसमें बदलाव जारी है. सरकार ने इसमें कुछ नए बदलाव करने का फैसला किया है. वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) प्रणाली को बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने वाली कंपनी वस्तु एवं सेवाकर नेटवर्क (जीएसटीएन) ने को कहा कि ई-वे बिल पोर्टल को सरल बनाने के लिये इसमें कुछ बदलाव किए हैं जिससे भेजी जाने वाले माल के प्रकार के अनुसार ही फार्म तैयार किए जाएंगे. इससे गलतियां कम होंगी. छह माह में इस प्रणाली से कुल 25.32 करोड़ ई-वे बिल निकाले जा चुके हैं.
इस सिस्टम में प्रणाली में ‘डाक्यूमेंट टाइप’ में जिस श्रेणी के माल की आपूर्ति का विकल्प चुना जायेगा वही फार्म उसमें तैयार होगा. इसमें जीएसटी के तहत पंजीकृत कारोबारियों के बीच माल का लेन-देन हो, अथवा गैर-पंजीकृत से पंजीकृत कारोबारी के बीच का सौदा हो, फार्म चयनित वर्ग का ही होगा. यदि माल की आपूर्ति जॉबवर्क के लिये है तो ‘डाक्यूमेंट टाइप’ में जॉबवर्क होने पर उसमें इस्तेमाल होने वाला फार्म ही प्रणाली में जनरेट होगा. इससे फार्म भरने में गलती नहीं होगी.
PIN कोड हुआ अनिवार्य
जीएसटीएन ने ई-वे बिल में एक और बदलाव किया है. अब इस बिल में माल भेजने और माल पहुंचाने वाले स्थान का पिन कोड नंबर भरना अनिवार्य कर दिया गया है. अधिकारियों का कहना है कि पिन कोड डालने से माल भेजने की सही दूरी का आंकलन करना आसान हो जाएगा. अभी तक बिल में माल भेजने से माल पहुंचाने की दूरी भरना जरूरी था, लेकिन इससे दोनों स्थानों की सही दूरी की पता नहीं चल पाता था. अगर सामान भेजने की दूरी 100 किमी के अंदर है तो इसके लिए ई-वे बिल की मियाद केवल एक दिन की है. अगर यह दूरी 100 किमी से अधिक है तो इसकी वैधता को एक दिन के लिए और बढ़ाया जा सकता है.
मिलेगा एलर्ट
ई-वे बिल पोर्टल में एक और बदलाव यह किया गया है कि कुल चालान मूल्य 10 करोड़ रुपये अथवा अधिक भरा जाता है तो पोर्टल से अपने आप ही बिल निकालने वाले को एसएमएस के जरिये सतर्क करने का संदेश पहुंच जाएगा. इससे चालान मूल्य में गलती को दूर किया जा सकेगा.
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ई-वे बिल पोर्टल में अब तक कुल 24.53 लाख करदाताओं ने पंजीकरण कराया है जबकि 31,232 ट्रांसपोर्टर इस प्रणाली से जुड़े हैं. जीएसटी प्रणाली के तहत 50 हजार रुपये से अधिक का माल एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजने पर ई-वे बिल लेना अनिवार्य कर दिया गया है. इस व्यवस्था की शुरुआत जीएसटी व्यवस्था के तहत कर चोरी रोकने के लिये की गई.
नपेंगे बिल में गड़बड़ी करने वाले
इसके अलावा सरकार ने बिल का दुरुपयोग करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी फैसला लिया है. जीएसटीएन का कहना है कि टैक्स से बचने के लिए देखा गया है कि कुछ लोग ई-वे बिल का दुरुपयोग कर रहे हैं.
जीएसटीएन के अधिकारी ने बताया कि जांच में पाया गया है कि कुछ लोग नियमित रूप से ई-वे बिल तैयार करने चार घंटे के भीतर उस बिल को रद्द कर रहे हैं. जांच में पाया गया है कि रोजाना लगभग 15 लाख ई-वे बिल तैयार किए जा रहे हैं, लेकिन इनमें से करीब 1 लाख बिल रोजाना रद्द भी हो रहे हैं.
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एएनआई को गुमनाम होने की शर्त पर बताया कि माल और सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) ने कई व्यापारियों का पता लगाया है जो नियमित रूप से उत्पन्न होने के चार घंटे बाद ई-वे बिलों को रद्द कर रहे हैं। शीर्ष अधिकारी के अनुसार, दैनिक आधार पर करीब 15 लाख ई-वे बिल तैयार किए जा रहे हैं, हालांकि इनमें से लगभग एक लाख ई-वे बिल नियमित रूप से रद्द किए जा रहे हैं।
इतनी संख्या में ई-वे बिल कैंसिल होने के चलते राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) और जीएसटीएन सिस्टम की जांच शुरू की गई तो जांच में पाया कि कुछ व्यापारी जानबूझ कर अपने ई-वे बिल रद्द करवा रहे हैं. और बिल कैंसिल होने का यह काम बिल जनरेट होने के चार घंटे के भीतर किया जाता है.
रद्द हो रहे हैं ई-वे बिल
जांच में यह भी पाया गया कि एक ही जीएसटीएन नंबर से तैयार 100 बिलों में 99 बिलों को रद्द कराया गया है. खासबात ये रही कि जिन बिलों को रद्द किया गया उनमें से ज्यादातर वे थे जिन पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा नहीं किया गया है.
जांच में यह बात सामने आई है कि जो बिल कैंसिल किए जा रहे हैं उन पर लोहा, स्टील, सीमेंट, सैनिटरी आइटम और तांबे के तार आदि जैसे वे सामान भेजे जा रहे हैं जो आसानी खप जाते हैं. जांच में यह बात भी सामने आई है कि इन बिलों पर सामान भेजने की दूरी आसपास के शहर आदि होते हैं, जहां सामान को चार घंटे के भीतर ही पहुंचा दिया जाता है.
अधिकारियों ने बताया कि इस पूरे मामले में यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि इन ई-वे बिलों को शिपमेंट की डिलीवरी के समय में भी रद्द किया जा रहा है और इस तरह बड़े पैमाने पर चोरी की जा रही है, क्योंकि इस दौरान सामान का पता नहीं लगाया जा सकता है. यह भी देखने में आया है कि जो लोग रिटर्न दाखिल नहीं कर रहे हैं वे ई-वे बिल जनरेट कर रहे हैं और यह मामला समझ से परे हैं कि ऐसे लोग ई-वे बिल क्यों जनरेट कर रहे हैं. इस मामले की भी जांच की जा रही है.
इस मामले की जांच के लिए डेटा एक्पर्ट की मदद ली जा रही है. जीएसटीएन नंबरों के आधार पर टैक्स चोरी करने वाले व्यापारियों की पहचान की जा रही है. और इस टैक्स चोरों को पकड़ने की प्रक्रिया पाइप लाइन में है. अधिकारियों ने बताया कि इस मामले में जब जांच पूरी हो जाएगी, तो पहचान किए गए कारोबारियों की लिस्ट तैयार करके उसे संबंधित अधिकारियों के पास भेजा जाएगा, ताकि ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सके.
अब तक 25.32 करोड़ ई-वे बिल निकाले जा चुके हैं
देश में एक अप्रैल से ई-वे बिल प्रणाली शुरू होने के बाद से 30 सितंबर, 2018 तक कुल मिलाकर 25.32 करोड़ ई-वे बिल निकाले जा चुके हैं. इसमें से अंतरराज्यीय माल परिवहन के लिए 12.14 करोड़ और राज्य के भीतर माल ढुलाई के लिए 13.12 करोड़ ई-वे बिल प्रणाली से निकाले गए. देश में अप्रत्यक्ष कर क्षेत्र में जीएसटी व्यवस्था को एक जुलाई 2017 से लागू किया गया. जीएसटी के तहत कुल मिलाकर एक करोड, 03 लाख से अधिक करदाता रजिटर्ड हैं.