अब दूसरी कंपनियां सस्ता जेनेरिक वर्जन नहीं बना सकेंगी
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नई दिल्ली : अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर को न्यूमोनिया की वैक्सीन ‘प्रिवेनार 13’ के लिए भारत में पेटेंट अधिकार मिल गया है. कंपनी को 2026 तक यह दवा बेचने का अधिकार भारतीय पेटेंट ऑफिस ने दिया है. इसका अर्थ ये हुआ कि दूसरी कंपनियां इस दवा का सस्ता जेनरिक वर्जन नहीं बना सकती हैं. कई स्वास्थ्य संगठन इस कदम का विरोध कर रहे थे. उनका कहना है कि इससे यह दवा लाखों गरीबों की पहुंच से बाहर हो जाएगी.
पिछले साल यूरोपियन यूनियन के पेटेंट ऑफिस ने इस वैक्सीन पर फाइजर का पेटेंट अधिकार खारिज कर दिया था. दक्षिण कोरिया और अमेरिका में भी इसे चुनौती दी गई है. फाइजर ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है. कंपनी ने कहा कि इस वैक्सीन को तैयार करने में उसे ढाई साल लगे थे. इसे 2010 में भारत में लांच किया गया था.
अमेरिका ने पेटेंट कानून सख्त करने के लिए भारत पर दबाव बना रखा है. अमेरिकी पेटेंट विभाग नेभारत के बौद्धिक अधिकार कानून पर सवाल उठाते हुए जून में एक रिपोर्ट जारी की थी. इसने भारत को स्थानीय कंपनियों का अनुचित तरीके से पक्ष लेने वाले देशों की सूची में रखा था. जॉन्सन एंड जॉन्सन के बाद फाइजर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दवा कंपनी है. पिछले साल इसका टर्नओवर 3.4 लाख करोड़ रुपए रहा था.
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कोर्ट में मिल सकती है चुनौती
मेडिसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स (एमएसएफ) नाम की चैरिटी संस्था ने पिछले साल फाइजर के पेटेंट आवेदन का विरोध किया था. इसका तर्क था कि पेटेंट अधिकार मिलने से भारत समेत बहुत से विकासशील देश इस दवा के सस्ते वर्जन से वंचित हो जाएंगे. ऐसे में दवा कंपनियों को नया विकल्प तलाशना पड़ेगा, जिसमें वक्त लग सकता है. एमएसएफ पेटेंट ऑफिस के फैसले को कोर्ट में चुनौती दे सकती है. एमएसएफ एशिया के कोऑर्डिनेटर प्रिंस मैथ्यू ने कहा, यह फैसला स्वीकार करने योग्य नहीं है. जीवन रक्षक वैक्सीन होने के बाद भी दुनिया भर में हर साल 10 लाख बच्चे न्यूमोनिया से मरते हैं. बहुत से गरीब देशों में सरकारें फाइजर की तय कीमत नहीं दे सकती हैं.
न्यूमोनिया के 13 बैक्टेरिया से बचाती है दवा
‘प्रिवेनार13’ वैक्सीन बच्चों और वयस्कों को न्यूमोनिया के 13 तरह के बैक्टेरिया से बचाती है. इसका पूरा कोर्स करीब 11,000 रुपए का पड़ता है. कीमत ज्यादा होने के कारण फाइजर का काफी विरोध हो चुका है. इसके बाद बीमारी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले गैर-सरकारी संगठनों के दबाव के बाद कंपनी ने दवा के दाम कुछ कम कर दिए थे.