भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल आयात करता है.
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मुंबई: कच्चे तेल की कीमतों में अचानक तेजी आने से देश की माइक्रो इकोनॉमिक स्टैबिलिटी प्रभावित हो सकती है. भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन में आगाह किया गया है कि यदि कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आती है, तो इससे चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़ सकता है, मुद्रास्फीति (महंगाई) तथा राजकोषीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) के आंकड़े प्रभावित हो सकते हैं, जिससे ऊंची वृद्धि का लाभ ‘नदारद’ हो सकता है.
अध्ययन में कहा गया है कि भारत कच्चे तेल के आयात पर काफी हद तक निर्भर है. वह अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल आयात करता है. ऐसे में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘झटका’ लग सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कैड के अलावा कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से मुद्रास्फीति तथा राजकोषीय घाटा भी प्रभावित हो सकता है.
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अप्रैल से सितंबर, 2018 के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. साल के मध्य में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी की वजह मांग बढ़ना रहा. वैश्विक वृद्धि दर में सुधार, भू राजनैतिक जोखिमों और आपूर्ति पक्ष की दिक्कतों की वजह से भी कच्चे तेल के दाम में तेजी आई. हालांकि, नवंबर, 2018 के मध्य से कच्चे तेल की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट आई, लेकिन इनमें उतार-चढ़ाव बना हुआ है.
केंद्रीय बैंक के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट ‘कच्चे तेल की कीमतों से कैड, मुद्रास्फीति तथा राजकोषीय घाटे पर प्रभाव’ में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से कैड की स्थिति प्रभावित होती है और इसे सिर्फ ऊंची वृद्धि दर से अंकुश में नहीं रखा जा सकता. ऐसे में कच्चे तेल के झटके से कैड से जीडीपी का अनुपात बढ़ता है.
अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि सबसे खराब स्थिति में जबकि कच्चा तेल 85 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचता है, तो ऐसे में कच्चे तेल की वजह से घाटा 106.4 अरब डॉलर पर पहुंच सकता है जो कि जीडीपी के 3.61 प्रतिशत के बराबर होगा.
(इनपुट-भाषा)