वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संकेत दिया है कि राजस्व बढ़ने के बाद माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत स्लैब में कटौती की जा सकती है.
Trending Photos
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संकेत दिया है कि राजस्व बढ़ने के बाद माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत स्लैब में कटौती की जा सकती है. न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ शब्दों में कहा कि जो लोग देश के विकास की मांग करते हैं, उन्हें जरूरत पड़ने पर उसकी कीमत भी चुकानी होगी. उन्होंने कहा कि विकास के लिए पैसों की जरूरत होती है, हालांकि इसे ईमानदारी से खर्च किया जाना चाहिए. जेटली ने फरीदाबाद में कहा, 'हमारे पास इसमें दिन के हिसाब से सुधार करने की गुंजाइश है. हमारे पर सुधार की गुंजाइश है और अनुपालन का बोझ कम किया जा सकता है. खासकर छोटे करदाताओं के मामले में.' उन्होंने कहा, 'हमारे पास सुधार की गुंजाइश है. एक बार हम राजस्व की दृष्टि से तटस्थ बनने के बाद बड़े सुधारों के बारे में सोचेंगे. मसलन कम स्लैब. लेकिन इसके लिए हमें राजस्व की दृष्टि से तटस्थ स्थिति हासिल करनी होगी.' फिलहाल जीएसटी की चार स्लैब हैं जो शून्य से 28 प्रतिशत के बीच हैं.
वित्त मंत्री ने कहा, 'ऐसे समाज में करदाता न होने की ज्यादा चिंता नहीं की जाती, वहां अब लोग समय के साथ टैक्स के लिए आगे आ रहे हैं. इसी के चलते करों को एक कर दिया गया है. एक बार बदलाव स्थापित हो जाएंगे, फिर हमारे पास सुधार के लिए जगह होगी.'
यशवंत सिन्हा ने जेटली की नीतियों पर उठाया था सवाल
पिछले दिनों बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर भारतीय अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर कई सवाल खड़े किए थे. इसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यशवंत सिन्हा को 80 साल की उम्र में नौकरी चाहने वाला करार देते हुए कहा कि वह वित्त मंत्री के रूप में अपने रिकॉर्ड को भूल गए हैं. इस मामले में सिन्हा के पुत्र और केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा भी कूद पड़े और सरकार की आर्थिक नीतियों का जोरदार बचाव किया.
एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में जेटली ने कहा कि सिन्हा नीतियों की बजाय व्यक्तियों पर टिप्पणी कर रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया था कि सिन्हा वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के पीछे-पीछे चल रहे हैं. वह भूल चुके हैं कि कैसे कभी दोनों एक दूसरे के खिलाफ कड़वे बोल का इस्तेमाल करते थे.
हालांकि, जेटली ने सीधे-सीधे सिन्हा का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा कि उनके पास पूर्व वित्त मंत्री होने का सौभाग्य नहीं है, न ही उनके पास ऐसा पूर्व वित्त मंत्री होने का सौभाग्य है जो आज स्तंभकार बन चुका है. इसमें जेटली का पहला उल्लेख सिन्हा के लिए और दूसरा चिदंबरम के लिए था.
उन्होंने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री होने पर मैं आसानी से संप्रग दो में नीतिगत शिथिलता को भूल जाता. मैं आसानी से 1998 से 2002 के एनपीए को भूल जाता. उस समय सिन्हा वित्त मंत्री थे. मैं आसानी से 1991 में बचे चार अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार को भूल जाता. मैं पाला बदलकर इसकी व्याख्या बदल देता.
जेटली ने सिन्हा पर तंज कसते हुए कहा कि वह इस तरह की टिप्पणियों के जरिये नौकरी ढूंढ रहे हैं. सिर्फ पीछे-पीछे चलने से तथ्य नहीं बदल जाएंगे.
इससे पहले, अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत के लिये वित्त मंत्री अरुण जेटली पर हमला करके राजनैतिक तूफान खड़ा कर चुके सिन्हा ने कहा कि अर्थव्यवस्था की हालत पर चर्चा के लिये उन्होंने पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का समय मांगा था लेकिन उन्हें समय नहीं मिला.
उन्होंने राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों से कहा, ‘‘मैंने पाया कि मेरे लिये दरवाजे बंद थे. इसलिये, मेरे पास :मीडिया में: बोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. मुझे विश्वास है कि मेरे पास :प्रधानमंत्री को देने के लिये: उपयुक्त सुझाव हैं.' सिन्हा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम जैसे लोग जिन्हें वित्तीय मामलों पर विशेषज्ञ माना जाता है अगर बोलें तो उस समय की सरकार को उसे ‘सुनना चाहिये.’ उन्होंने उन लोगों की राय को ‘राजनैतिक शब्दाडंबर’ के तौर पर खारिज किये जाने के खिलाफ सलाह दी.
बीजेपी नेता ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार का नाम लिये बिना कहा कि केंद्रीय परियोजनाओं के लचर कार्यान्वयन के लिये उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि राजग पिछले 40 महीने से सत्ता में है. केंद्र की आर्थिक नीतियों पर सिन्हा के करारे हमले का उनके पुत्र और केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने भी एक अग्रणी अंग्रेजी अखबार में लेख के जरिये जवाब दिया.
सिन्हा ने अपने पिता के लेख का वस्तुत: उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियों पर कई लेख लिखे जा चुके है. उन्होंने कहा,'दुर्भाग्यवश ये लेख कुछ सीमित तथ्यों से व्यापक निष्कर्षों को रेखांकित करते है.' उन्होंने कहा, 'एक या दो तिमाही के नतीजों से अर्थव्यवस्था का आकलन करना ठीक नहीं है और चल रहे संरचनात्मक सुधारों के लम्बे समय तक के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए यह आकड़े अपर्याप्त है.' जयंत ने कहा कि ये संरचनात्मक सुधार केवल वांछनीय नहीं है बल्कि इनकी जरूरत एक ‘न्यू इंडिया’ के निर्माण और बेहतर नौकरियां उपलब्ध कराने के लिए है.
उन्होंने कहा, 'नयी अर्थव्यवस्था अधिक पारदर्शी, वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी और इनोवेशन आधारित होगी तथा नयी अर्थव्यवस्था और भी अधिक न्यायोचित होगी जिससे सभी भारतीयों को बेहतर जीवन मिलेगा.' जयंत ने दावा किया कि वर्ष 2014 से मोदी सरकार द्वारा शुरू किये गये संरचनात्मक सुधारों से सुधारों का तीसरा चरण शुरू हुआ. इससे पहले वर्ष 1991 में और दूसरा चरण 1999-2004 राजग सरकार में हुआ था. उन्होंने कहा, 'हम मजबूत अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे है जिससे ‘‘न्यू इंडिया' के लिए लम्बी अवधि के लिए फायदा होगा और रोजगार के अवसरों का सृजन होगा.' इस बीच, पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के समर्थन में आज उनकी पार्टी के एक अन्य नेता शत्रुघ्न सिन्हा भी उतर आए. उन्होंने कहा कि यशवंत सच्चे अर्थों में राजनेता हैं और उन्होंने सरकार को आईना दिखाया है.
पूर्व वित्त मंत्री के विचारों को खारिज करने वाले, पार्टी के नेताओं पर शत्रुघ्न ने निशाना साधा और कहा कि ऐसा करना ‘बचकाना’ होगा क्योंकि उनके (सिन्हा के) विचार पूरी तरह से ‘‘पार्टी और राष्ट्र के हित में है.' कई ट्वीट कर सरकार पर कटाक्ष करते हुए शत्रुघ्न ने यशवन्त सिन्हा की टिप्पणियों को लेकर कही जा रही बातों के संदर्भ में दावा किया कि हम सब जानते हैं कि किस तरह की ताकतें उनके पीछे पड़ी हैं.
उन्होंने नरेंद्र मोदी का हवाला देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा था कि राष्ट्र किसी भी दल से बड़ा है और राष्ट्र हित सबसे पहले आता है.