Vivo Visa Fraud: 'डिकोड' हुई चीनी साजिश, Vivo ने वीजा फ्रॉड से 193 चाइनीज को क्यों दिलवाई भारत में एंट्री?
Advertisement
trendingNow12031646

Vivo Visa Fraud: 'डिकोड' हुई चीनी साजिश, Vivo ने वीजा फ्रॉड से 193 चाइनीज को क्यों दिलवाई भारत में एंट्री?

ED on Vivo Visa Fraud: दुनिया में तेजी से उभर रहा भारत, पड़ोसी चीन को पसंद नहीं आ रहा है. उसने वीजा फ्रॉड करके भारत में 193 चाइनीज को भारत में एंट्री दिलवाई. जैसे ही ईडी ने जांच शुरू की, वे सब फरार हो गए.

Vivo Visa Fraud: 'डिकोड' हुई चीनी साजिश, Vivo ने वीजा फ्रॉड से 193 चाइनीज को क्यों दिलवाई भारत में एंट्री?

ED on Vivo Visa Fraud Update: ED ने Vivo India के 70 हजार करोड़ के धोखाधड़ी मामले में 48 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है जिसमें 32 कंपनियां शामिल है. इसमें Vivo India और Vivo Mobile Communications के अलावा भारत में फर्जीवाड़े के लिये बनायी गयी कंपनियां भी शामिल है. इसके अलावा Vivo की फर्जीवाडे में मदद करने के आरोप में lava Mobile (Lava International Ltd) और इसके डायरेक्टर हरिओम भी शामिल है. इस चार्जशीट पर अदालत ने संज्ञान भी ले लिया है.  

एजेंसी ने चार्जशीट में कंपनी पर आरोप लगाया कि कंपनी ने गलत तरीके से 193 चाइनीज नागरिकों को भारत का वीजा दिलाया. ज्यादातर वीजा Vivo India की HR अधिकारी अरूणा शर्मा की तरफ से जारी चिट्ठी से जारी किये गये थे जो Vivo India के अधिकारी थे.

इस कंपनी के जरिए रची साजिश

ED की जांच के मुताबिक भारत में 24 कंपनिया बनायी गयी जिसमें Vivo India और GPICPL भी शामिल है. इन कंपनियों को भारत में शुरू करने में लावा इंटरनेशनल के डायरेक्टर हरिओम, चार्टेड अकाउटेंट नितिन गर्ग और राजन मलिक ने मदद की थी. M/s GPICPL जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और लेह लद्दाख में ऑपरेट करती थी. वीवो और इसकी सहभागी कंपनियों ने भारत में कंपनी शुरू करने पर सही जानकारी छिपायी. वीवो एक चाइनीज कंपनी है लेकिन इसने खुद को हांगकांग की कंपनी Multi Accord Ltd की सबसिडरी कंपनी बताया.

जांच में पता चला कि DIN-Director Identification Number लेने के लिये फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा Vivo India की कंपनी GPICPL  और दूसरी कंपनियों के बैंक खातों को खोलने के लिये फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया जबकि GPICPL तो भारत की सुरक्षा के लिहाज से काफी सेसेंटिंव जगहों पर काम कर रही थी. 

ये कंपनी जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और लेह-लदाख्ख के इलाकों में काम कर रही थी जो की चीन की सीमा से लगता हुआ इलाका है और वहां पर चीन के नागरिकों को बिजनेस वीजा दिला कर गलत तरीके से काम पर रखा गया था. अभी तक एजेंसियों को आठ फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस मिले है जो इन चाइनीज नागरिकों के पास थे. एजेंसी का मानना है कि दूसरे चाइनीज नागरिकों के पास भी फर्जी दस्तावेज हो सकते है जोकि भारत की सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा है.

भारतीय कंपनियों को भी किया प्रभावित

लावा इंटरनेश्नल के डायरेक्टर हरिओम ने Vivo China के साथ मिल कर Vivo India और दूसरी कंपनियों को खोलने में मदद की जिसके लिये M/s Labquest Engineering Pvt Ltd कंपनी का इस्तेमाल किया गया. यही वजह थी कि भारत में खोली गयी वीवो इंडिया और दूसरी 23 कंपनियों को Vivo China ही कंट्रोल कर रही थी. जो कंपनियां खोली गयी थी वो सिर्फ वीवो के मोबाईल और दूसरे सामान डिस्ट्रीब्यूट करते थे. यहां पर चीन से जिन लोगों को बुलाया गया था वो ज्यादातर Vivo China के लिये काम करते थे. भारत में बिजनेस वीजा पर बुलाया गया था लेकिन सैलरी इनको चीन में दी जा रही थी ताकि किसी को शक ना हो.

एजेंसी ने जब MEA-Ministry of External Affairs से इस बात की जानकारी मांगी कि Vivo India और उससे जुड़ी कंपनियों के लिये कितने चाइनीज भारत आए हैं तो पता चला कि 193 चीनी नागरिक भारत आए हैं. इस मामले में जब मंत्रालय और एजेंसी ने जांच की तो अभी तक की जानकारी के मुताबिक 30 चाइनीज भारत में बिजनेस वीजा पर आय़े थे, जिन्होंने खुद को Vivo से जुड़ा नहीं बताया था लेकिन वो Vivo India में काम कर रहे थे जोकि वीजा शर्तों का उल्लघंन है. इससे पता चलता है कि कैसे कंपनी ने चीन में भारतीय दूतावास से जानकारी छिपाई और फर्जी दस्तावेज और झूठी जानकारी देकर अपनी कंपनी में काम करने के लिये कर्मचारियों को भारत में बिजनेज वीजा पर बुलाया.

इस तरह से करवाई गई चीनियों की एंट्री

जांच में पता चला कि Vivo India ने ना सिर्फ अपनी कंपनी में काम करने के लिये चाइनीज नागरिकों को बुलाया बल्कि बाकी की 23 कंपनियों के लिये भी चाइनीज नागरिकों को बुलाने के लिये Invitation Letter कंपनी की तरफ से जारी किया गया. कंपनी की HR अधिकारी अपर्णा शर्मा ने एजेंसी को दिये अपने बयान में बताया कि साल 2017 तक जो Invitation Letter इन चाइनीज नागरिकों के लिये जारी किये जाते थे वो M/s Vivo Mobile Communication co,Ltd,Dongguan,China के कर्मचारी Candy Ma की तरफ से उसकी इमेल- candy.ma@vivoglobal.com से  भेजे जाते थे और ज्यादातर लोग M/s Vivo Mobile Communication Co, Ltd, Dongguan, China और M/s BBK Communication Technology Company Ltd से जुड़े होते थे. 

इस बात की पुष्टि राजस्थान में खोली गयी Vivo India की SDC M/s Bubugao Communication Pvt Ltd, Rajasthan के कर्मचारी ने एजेंसी को दिये बयान में बताया कि कंपनी के लिये 2017 तक 20 चीनी नागरिकों को बिजनेस वीजा पर बुलाया गया था और उनके लिये Vivo India की तरफ से अपर्णा शर्मा ने ही वीजा का अरेंजमेंट करवाया था. जब Bubugao Communication के कर्मचारी से पूछा गया कि उसकी कंपनी के लिये वीवो ने वीजा का इंतजाम क्यों किया तो उसने बताया कि उसकी कंपनी Overseas Trading Company है और इसकी तरफ से Invitation Letter जारी करने पर बिजनेस वीजा मिलने में दिक्कत आती जबकि Vivo India एक Manufacturing Unit है और इसकी तरफ से जारी चिट्ठी पर वीजा मिलने में आसानी रहती. इससे पता चलता है कि Vivo India का इस कंपनी पर कंट्रोल भी है और साथ ही चीन में भारतीय दूतावास के साथ धोखाधड़ी कर ये वीजा हासिल किए गए.

इसके अलावा कर्नाटक में खोली गयी कंपनी M/s weiwo Communication Pvt Ltd के कर्मचारी सुरेश नायर ने एजेंसी को अपने बयान में बताया कि 10 चीनी नागरिकों को उसकी कंपनी में काम करने के लिये बुलाया गया था लेकिन उसमें से 6 को बुलाने के लिए जो चिट्ठी जारी की गयी थी, उस पर उसके फर्जी दस्तखत किये गये थे. जो लोग उसके फर्जी दस्तखत वाली चिट्ठी पर आय़े थे. 

बिजनेस वीजा नियमों का उल्लंघन

इससे पता चलता है कि Vivo India ना सिर्फ कंपनी खोलने और वीजा दिलाने में फर्जीवाड़ा कर रही थी बल्कि वीजा के कर्मचारियों के फर्जी दस्तखत भी किये जा रहे थे. इससे पता चलता है कि Vivo India का इन कंपनियों पर पूरा कंट्रोल था और इसे चलाने के लिये वो चीन से नागरिकों को बिजनेज वीजा पर बुला कर भारतीय कानून को दरकिनार कर गलत तरीके से काम पर लगा रहे थे.

जांच में ये भी पता चला कि इन कंपनियों के सीनियर कर्मचारी सीधे तौर पर चीन में बैठे लोगो से आदेश ले रहे थे जबकि उनका इन कंपनी में कोई रोल नहीं होता था. Vivo India और दूसरी कंपनियों में काम करने वाले सिर्फ चाइनीज एप्लिकेशन का इस्तेमाल करते थे ताकी किसी को भी इनकी बातों का पता ना लगे, इसके लिये वो We Chat, Ding Talk, V-Chat जैसी एप्लिकेशन का इस्तेमाल करते थे क्योंकि इनके सर्वर चीन में लगे है और भारतीय एजेंसी की पहुंच से दूर हैं.

इस मामले में एजेंसी ने MEA से चीनी नागरिकों को दिये वीजा और उसकी जांच के बाद कंपनी में काम कर रहे चीनी नागरिकों के बयान दर्ज किये थे. बयान में इन्होने बताया कि वीजा लेने के लिये Vivo India की खोली गयी कंपनियों के शेयरहोल्डर उनका पासपोर्ट ले लेते थे और वहीं वीजा के लिये जरूरी दस्तावेज का प्रबंध करते थे जिसकी उन्हे कोई जानकारी नहीं होती थी. वीजा मिलने के बाद उन्हे पासपोर्ट वापिस कर दिया जाता था. यानी वीजा लेने के लिये जो जानकारियां दी गयी थी वो झूठी थी क्योंकि एजेंसी ने जब जांच की तो पाया कि जिन लोगों को वीजा दिये गये और उन्होनें वीजा के लिये जिस कंपनी में पहले काम करने की जानकारी दी गयी थी वो झूठी थी.

इसके अलावा जिन चीनी कंपनियों के वीजा के लिये स्पॉंसर करने के दस्तावेज दिये गये थे वो भी गलत थे, यानी उन कंपनियों से वीजा लेने वाले चीनी नागरिकों का कोई संबध नहीं था. एजेंसी ने इस मामले में चार चीनी नागरिकों Tu Chengchao (Director of Huijin Electronics India Pvt Ltd), Tan Zhenhua (Head of Business Strategy and Product, Haijin Trade India Pvt Ltd), Jian Li(Finance Engineer,Haicheng Mobile India Pvt Ltd), Yang Tian(Chief Finance Officer, HaiCheng Mobile India Pvt Ltd) के बयान लिये जो कि 25 July 2022, 22 July 2022, 10 Jan 2023 और 5 Jan 2023 को लिये गये थे.

सवालों का जवाब नहीं दे पाए चीनी

इसके अलावा काफी सारे ऐसे लोग थे जो इस मामले में सही जानकारी नहीं दे रहे थे या नहीं देना चाह रहे थे. इस मामले में एजेंसी ने तेलांगना की V-Dream Technology & Communication Pvt Ltd में काम करने वाले चाइनीज नागरिक का 2 जून 2023 को बयान लिया जिसने कबूल किया कि उसने एजेंसी को गलत जानकारी दी थी और जांच को भटकाने की कोशिश की थी. इसके अलावा दूसरे चाइनीज नागरिकों से भी इस मामले में पूछताछ की और उनसे उनके वीजा से जुड़े दस्तावेजों, बैंक डिटेल्स और दूसरी जानकारियां मागी लेकिन किसी ने भी एजेंसी को जानकारी नही दी. यहां तक की जब उनसे पूछा गया कि भारत में किस कंपनी ने उन्हें Invitation Letter भेजा था या किस चाइनीज कंपनी ने उनका बिजनेस वीजा स्पोंसर किया था तो इस बात की जानकारी भी उनके पास नहीं थी.

यही वजह है कि जांच और छापेमारी के दौरान Vivo India से जुडे सात आरोपी देश छोड़ कर भाग गये थे. इन लोगों को एजेंसी ने पूछताछ के लिये नोटिस भी दिया था लेकिन जांच से बचने के लिये ये सातों आरोपी फरार हो गए.

इस मामले में एजेंसी ने GPICPL के एडमिन मैनेजर प्रियदर्शन शर्मा का भी बयान लिया जिसने बताया कि जब एजेंसी ने 5 जुलाई 2022 को Vivo India और उससे जुड़ी दूसरी कंपनियों पर छापेमारी की थी तो चाइनीज नागरिक Deng Yating @ Cassy ने उसे कहा था कि जितने भी चाइनीज नागरिक कंपनी में काम कर रहे है उन सब के डिजिटल डिवाइस को फ़ॉर्मेट कर दिया जाये ताकी किसी को कोई सबूत ना मिले. Deng Yating कंपनी में Finance Head था. इसके अलावा एजेंसी ने इन कंपनियों से जुड़े सदिंग्धों की Loc-Look Out Circular खोल रखे थे और उसी दौरान अक्टूबर 2022 को दो चीनी कर्मचारी जो चीन भागने की कोशिश में थे उनको हिरासत में लिया गया. उन दोनों के पास Vivo India के HR Head, XiaoYang Ye का डिजिटल डाटा था जिसे वो ले जा रहे थे. उस समय तक Xiaoyang Ye भारत से फरार हो चुका था.

इसके अलावा ज्यादातर चीन से आये ये नागरिक वीजा  शर्तो का उल्लघन करते हुये जम्मू कश्मीर और लेह लद्दाख के इलाके में घूम रहे थे और वो भी बिना FRRO- Foreigner Regional Registration Office को जानकारी दिये. ये ना सिर्फ वीजा की शर्तों का उल्लघन है बल्कि देश की सुरक्षा के लिये भी खतरा है.

सात आरोपी हो चुके हैं अरेस्ट

इस मामले में कार्रवाई करते हुये ED ने अब तक सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है जिनके नाम है. Guangwen Kyang साल 2013-14 में बिजनेस वीजा पर दूसरे चाइनीज नागरिकों के साथ भारत आया था इसने ही Vivo India और उससे जुड़ी दूसरी कंपनियों को सेटअप करने में मदद की थी. आरोपी Vivo Mobile Communication Ltd, China @ BBK का कर्मचारी है और भारत में Vivo India का काम भी देख रहा था.

इस मामलें में एजेंसी अब तक 465 करोड़ रुपये अटैच किये है और फिलहाल Vivo India के Interim CEO, Hong Xuquan और दूसरे दो आरोपियो को गिरफ्तारी के बाद पूछताछ कर रही है. एजेसी तीनों आरोपियो को शुक्रवार को अदालत में पेश करेगी.

Trending news