भोजपुरी पाठकों के लिए विशेष. 'काका के ठीहा' : काम अतना बा कि कवनो काम नइखे होत
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भोजपुरी पाठकों के लिए विशेष. 'काका के ठीहा' : काम अतना बा कि कवनो काम नइखे होत

मुखिया जी उनकर बात के अनसुना कईके तेजी से खेत तरफ निकल गइले. भूलन काका हंसत-हंसत कहले 'लाग...ता जोर से लागल बा मुखिया जी के. ...जाईं, जाईं जल्दी जाईं.'

भोजपुरी पाठकों के लिए विशेष. 'काका के ठीहा' : काम अतना बा कि कवनो काम नइखे होत

भोजपुरी के विस्तार, पाठकों को ध्यान में रखते हुए 'जी डिजिटल' आपकी प्रिय भाषा में आपके पास पहुंचने की कोशिश कर रहा है. आपके लिए हम 'काका के ठीहा' नाम से कॉलम शुरू कर रहे हैं, जिसमें भोजपुरी भाषी क्षेत्र की संस्कृति, समाज, राजनीति, साहित्य, फिल्म पर सामग्री, राय, विचार उपलब्ध कराने जा रहे हैं. आशा है, यह पहल पसंद आएगी. आइए, मिलकर भोजपुरी की मिठास साझा करें : संपादक

मुखिया जी सबेरे-सबेरे लोटा लेले खेत की ओर जात रहले. भूलन काका अपना भईंस के सानी-पानी लगवाते उनका के टोकले. 'का हो मुखिया जी! गांव भर के लैट्रिन बन गइल आ रउरा अबहियों खेते में... समाज के ना त कम से कम सरकारके त लिहाज करीं कम से कम!'

मुखिया जी उनकर बात के अनसुना कईके तेजी से खेत तरफ निकल गइले. भूलन काका हंसत-हंसत कहले 'लाग...ता जोर से लागल बा मुखिया जी के. ...जाईं, जाईं जल्दी जाईं.' अतने में बटेसर ब मूड़ी पर दही लेले आ गइली. 'का ऐ काका जी दही लेम का.' भूलन काका उनका के रुके के इशारा करी के हाथ धोये लगले. बटेसर ब पूछली 'कतना दे दी काका जी.' 'मुखिया जी जइसन तूहो हड़बड़ाइल बाड़ू का. बेचैनी के गोली काहे खा लेले बाड़ू ...सबेरे-सबेरे. काल्हे जइसन आज फेर खट दही मत दे दिह. ल हई बरतन एक किलो दे द.' मुखिया जी के नाम सुनते बटेसर ब भड़क गइली. 'अरे उ मुहकरिखा के नाम मत लीं ऐ काका. हमार लैट्रिन गपच गइल उ.'

भूलन काका पेट पकड़ के हो... हो... हो... करिके हंसे लगले.' का कहतारू ए बटेसर ब. तहार लैट्रिन.' 'रउरो माजा लेबे लगनी का ऐ काका! आरे लैट्रिन बनावे खातिर जवन सरकारी पइसा आइल रहे हम ओकर बात करतानी. सब पइसा मुखियवा गपच गइल. खाली हमरे ना. आउरियो बहुत लोग अइसन बा जेकर लैट्रिन नइखे बनल. पूछला परकहेला कि तहार त नामे नइखे लिस्ट में.' इ कहत-कहत बटेसर ब दही के हंड़िया मूड़ी पर उठाके चल देहली.

भूलन काका आपन तकियाकलाम 'काम अतना बा कि कवनो काम नइखे होखत' बोलके हो हो हो करिके हंसे लगले. रिटायर फौजी भूलन काका बैंक में गार्ड-वार्ड के नौकरी के फेर में ना पड़के आपन खेती-गृहस्थी संभाले में व्यस्त रहेले. पूरा गांव-जवार उनका के काका कहेला. गांव में काका ओकरा के कहल जाला जेकर बियाह ना भइल होखे. भले उमिर कतनोहो जाव, लेकिन ओकरा के लोग काका ही कहेला.

भूलन काका जेकरा से बियाह करे चाहत रहले उ केहू नर्स बन गइल आ कवनो डॉक्टर के पसंद आ गइल. पूरा जिनगी उ ओकरे वियोग में कुंवारे रह गइले. मिलिटरी में एक बार गइले त दोबारा गांव रिटायर भइला के बादे लौटले. घर-दुआरबनाके चकाचक हो गइले. इ बात दोसर बा कि ओमे रहे वाला उनका के छोड़ के केहू नइखे. लेकिन तबो घर खाली ना रहेला. उ सबके घर ह. गरमी में भर दुपहरिया हरिजन आ कुरमी टोला के मेहरारू-लइका पंखा के नीचे बइठल रहेलन सन.आ पानी-पनिहर में जेकर पलानी टपके लागे उ एहिजा आके रहेला. बस अतना समझीं कि भूलन काका के घर गांव के गरीब-गुरबा खातिर धर्मशाला ह.

'कहां बानी ऐ भूलन काका. ओह बेरा जल्दी में रनिह. बताईं का कहतबानी.' मुखिया जी के आवाज सुन के भूलन काका घर से बाहर निकलले. 'कुछऊ ना ऐ मुखिया जी. बस एतने पूछतानी कि बटेसरा ब के लैट्रिन काहें खा गइनी.' 'हम कहां खा गइनी. ओकर त नामे नइखे लिस्ट में.' 'नइखे त नाम जोड‍़वा दीं. ओकरा जरूरत त बा नू. हम जानतानी रउरा भिरी काम बहुत बा. लेकिन इहो त एगो कामे ह.' 'ठीक बा भूलन काका. ठीक बा. अब चलतानी.' कहके मुखिया जी चल देहले. भूलन काका अपना कोठरी में इ कहत लौट गइले 'काम अतना बा कि कवनो काम नइखे होखत.'

लेखिका: चित्रांशी

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