‘न्यूड’ और ‘एस दुर्गा’ जैसी फिल्मों पर विवाद के बाद अब एक और फिल्म सेंसर बोर्ड में फंस गई है. अब बिसाहड़ा कांड की पृष्ठभूमि में बनी फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ सेंसर बोर्ड में फंस गई है. बोर्ड ने फिल्म से तीन दृश्यों को काटने के आदेश दिए हैं. निर्देशक के मुताबिक ये फिल्म सांप्रदायिक सद्भाव को प्रोत्साहित करती है.
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नई दिल्ली. फिल्म निर्देशकों और सेंसर बोर्ड की लड़ाई जग जाहिर है. ‘न्यूड’ और ‘एस दुर्गा’ जैसी फिल्मों पर विवाद के बाद अब एक और फिल्म सेंसर बोर्ड में फंस गई है. अब बिसाहड़ा कांड की पृष्ठभूमि में बनी फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ सेंसर बोर्ड में फंस गई है. निर्देशक के मुताबिक ये फिल्म सांप्रदायिक सद्भाव को प्रोत्साहित करती है. सेंसर बोर्ड ने फिल्म से जिन तीन दृश्यों पर कैंची चलाने का निर्देश दिया है पिल्म निर्माता का कहना है कि वही तीन दृश्य फिल्म की जान हैं. ‘द ब्रदरहुड’ दादरी में कथित रूप से गौमांस रखने को लेकर मोहम्मद अखलाक की पीट-पीट कर हत्या किए जाने की घटना पर आधारित है.
सच्ची घटना पर आधारिह है फिल्म
निर्देशक ने फिल्म की पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें दिखाया गया है कि ग्रेटर नोएडा के दो गांवों में एक ही गोत्र के लोग रहते हैं जबकि एक गांव के लोग मुस्लिम समुदाय के हैं तो एक हिंदू. फिल्म ये बताने का प्रयास करती है कि अखलाख हत्याकांड जैसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसों से सामाजिक ताने-बाने पर कोई असर नहीं पड़ा है. लेकिन लोग इसे राजनितिक मुद्दा बना देते हैं. डॉक्यूमेंट्री के निर्माता और पत्रकार पंकज पाराशर ने बताया कि फिल्म के तीन दृश्यों को काटने के सेंसर बोर्ड के निर्देश को हमने सेंसर ट्रिब्यूनल में चुनौती दी है. दस दिन के भीतर सुनवाई की तारीख आ सकती है. हम ट्रिब्यूनल से सामने सारे प्रमाण और तथ्य रखेंगे.
पाराशर ने फिल्म की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह फिल्म बिसाहड़ा गांव में अखलाक हत्याकांड (दादरी लिंचिंग केस) के बाद पैदा हुए हालातों से शुरू होते हुए ग्रेटर नोएडा के दो गांवों घोड़ी बछेड़ा और तिल बेगमपुर के ऐतिहासिक रिश्तों को पेश करती है. उन्होंने बताया कि घोड़ी बछेड़ा गांव में भाटी गोत्र वाले हिंदू और तिल बेगमपुर गांव में इसी गोत्र के मुस्लिम ठाकुर हैं. लेकिन घोड़ी बछेड़ा गांव के हिंदू तिल बेगमपुर गांव के मुसलमानों को बड़ा भाई मानते हैं. मतलब, एक हिंदू गांव का बड़ा भाई मुस्लिम गांव है.
इन बातों से बोर्ड को आपत्ति
निर्देशक ने बताया कि बोर्ड को हिंदुओं और मुसलमानों के एक गोत्र होने पर आपत्ति है और वे इसे हटाने की मांग कर रहे हैं. दूसरी आपत्ति फिल्म के उस दृश्य को लेकर है जिसमें ग्रेटर नोएडा के खेरली भाव गांव में 02 अप्रैल 2016 को एक मस्जिद की नींव रखी गई. मंदिर के पंडित ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मस्जिद की नींव रखी. इसे लेकर मीडिया में खूब समाचार प्रकाशित हुए थे. बोर्ड का कहना है कि इस तथ्य को भी डॉक्यूमेंटरी से हटाया जाए. पाराशर कहते हैं कि सेंसर बोर्ड उन साभी बातों को हटवाना चाहता है जो सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल हैं.
बोर्ड को तीसरी आपत्ति एक इंटरव्यू में बीजेपी के जिक्र पर है. पंकज पाराशर का कहना है कि बीजेपी का जिक्र हटाने से उन्हें कोई समस्या नहीं है. इससे डॉक्यूमेंटरी की मूल भावना प्रभावित नहीं होती है. लेकिन बाकी दोनों कट समझ से परे हैं. उनका कहना है कि सेंसर बोर्ड ने जो कट बताए हैं वो हमें स्वीकार्य नहीं हैं.