Chandu Champion Review: एक गुमनाम नायक की कहानी में कार्तिक की बेस्ट परफॉर्मेंस, इमोशनल कर देगी 'चंदू चैंपियन'
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Chandu Champion Review: एक गुमनाम नायक की कहानी में कार्तिक की बेस्ट परफॉर्मेंस, इमोशनल कर देगी 'चंदू चैंपियन'

Kartik Aaryan Chandu Champion: कार्तिक आर्यन स्टारर चंदू चैंपियन ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है. फिल्म में कार्तिक ने मुरलीकांत पेटकर का किरदार बखूबी निभाया है. चंदू चैंपियन की कहानी के साथ-साथ फिल्म में कार्तिक की परफॉर्मेंस भी देखने लायक है.

चंदू चैंपियन रिव्यू कार्तिक आर्यन

Chandu Champion Review in Hindi: कार्तिक आर्यन की मच अवेटेड फिल्म 'चंदू चैंपियन' आज यानी 14 जून 2024 को सिनेमाघरों में दस्तक दे गई है. 'चंदू चैंपियन' की कहानी एक ऐसे गुमनाम नायक की है, जिसे कबीर खान (Kabir Khan) ने अपनी फिल्म से पूरी दुनिया के सामने रखा है. कार्तिक आर्यन (Kartik Aaryan) 'चंदू चैंपियन' की कहानी उन लोगों के लिए देखनी जरूरी है, जो हालातों से जल्दी हार मान लेते हैं. इस फिल्म का नायक उनको बताएगा कि परिस्थितियां आपको कहीं भी ले जाएं, आप अपना सपना पूरा कर सकते हैं, बशर्ते हौसला और जज्बा बनाए रखें. ये सच्ची कहानी है एक ऐसे गुमनाम नायक की, जिसका आज की पीढ़ी ने पहली बार तब नाम सुना, जब मोदी सरकार ने उसे पदम श्री पुरस्कार से 2018 में सम्मानित किया और तब फिल्मी दुनियां वालों की नजरों में भी आया. अब कबीर खान की बदौलत देश के घर घर में जाना जाएगा.

निर्देशक: कबीर खान
स्टार कास्ट: कार्तिक आर्यन, विजय राज, भुवन अरोरा, अनिरुद्ध दवे, भाग्यश्री बोर्से, यशपाल शर्मा, राजपाल यादव, श्रेयस तलपड़े और सोनाली कुलकर्णी
कहां देख सकते हैं: थियेटर में
स्टार रेटिंग: 4

स्पोर्ट्स ड्रामा है 'चंदू चैंपियन'

फिल्म यूं एक स्पोर्ट्स ड्रामा है, लेकिन घटनाओं का इतना उतार चढ़ाव इसके नायक मुरली कांत पेटकर की जिंदगी में आया, 83 के कपिल देव या मेरीकॉम की जिंदगी में भी नहीं आया होगा. अब तक जितनी भी स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्में बनीं, उनमें नायक एक ही ही खेल का खिलाड़ी, कोच या मैनेजर होता है, पहली बार आप ऐसे नायक से इस मूवी में रूबरू होंगे, जो कई खेलों में चैंपियन बनता है, किसी में गांव का तो किसी खेल में महाराष्ट्र का, किसी में देश का तो किसी खेल में ओलंपिक का चैंपियन, वो भी वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ, वो भी तब जब उसकी रीढ़ की हड्डी में एक बुलेट फंसी हुई थी, आज भी फंसी है.

'चंदू चैंपियन' की कहानी

फिल्म का नायक है मुरली (कार्तिक आर्यन) जो सांगली (महाराष्ट्र) के गांव पैठ इस्लामपुर का रहने वाला है, पिता और बड़ा भाई दर्जी हैं, लेकिन मुरली मन पढ़ने से ज्यादा खेल में लगता है, सब लोग उसे चंदू चैंपियन कहकर मजाक उड़ाते हैं. चंदू शब्द पप्पू की तरह इस्तेमाल किया गया है. तब मुरली को जिद हो जाती है खुद को सही साबित करने की और वो एक पहलवान के अखाड़े पहुंच जाता है. वो उसे सिखाता नहीं लेकिन काम के लिए रख लेता है. उसे नौसिखिया समझकर पहलवान अपने भांजे से उसे भिड़ा देता है, लेकिन खुद को साबित करने के लिए आतुर मुरली उसे रगड़ देता है. पहलवान हैरान था, उसका प्रधान जीजा मुरली व साथियों पर हमला कर देता है. मुरली पुणे भाग जाता है, वहां किसी तरह से आर्मी की इंजीनियरिंग कोर में उसकी नौकरी लग जाती है.

यहां तक कहानी सच्ची है, आर्मी में रहकर उसका रुझान बॉक्सिंग की तरफ होता है, आर्मी का कोच टाइगर अली (विजय राज) उसे बॉक्सिंग के सारे गुर सिखाता है और एक दिन टोक्यो इंटरनेशनल डिफेंस गेम्स में वो बॉक्सिंग में सिल्वर मेडल जीत जाता है. कोच गोल्ड न मिलने से नाराज होकर सिखाना बंद कर देता है.

इमोशनल कर देगी 'चंदू चैंपियन'

कश्मीर में उनके कैंप में 1965 युद्ध में हवाई हमला होने पर मुरली को कई गोलियां लगती हैं. रीढ़ की हड्डी में से गोली निकल ही नहीं पाती, पैर बेकार हो जाते हैं. तब वही कोच अली फिर उसे नए गेम यानी स्विमिंग में पैरा ओलंपिक्स गोल्ड दिलवाता है, इसे शानदार तरीके से इमोशनल उतार चढ़ाव के साथ कबीर खान ने फिल्माया है.  प्रीतम के म्यूजिक में तीनों गाने फिल्म को आमिर खान की मूवी 'लाल सिंह चड्ढा' बनने से रोकते हैं, सत्यानाश गीत अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखा है, तू है चैंपियन आईपी सिंह ने और सरफिरा कौशर मुनीर ने. गानों को अरिजीत सिंह, अमित मिश्रा एल, श्री राम चंद्रा आदि ने अपनी आवाज दी हैं.

मूवी के हर एक सीन को फिल्माने में काफी मेहनत की गई है. चाहे वो सेट डिजाइनिंग हो, सिनेमेटोग्राफी हो, डायलॉग्स हों या फिर एडिटिंग. लोकेशंस पर भी मेहनत साफ दिखती है, ये अलग बात है कि कई जगह 50 साल पहले भी आज का सा दौर दिखता है, जैसे 1972 में डिजिटल बोर्ड्स पर विजेताओं का ऐलान होना. लेकिन ऐसा दो तीन सीन में ही है. खास तौर पर जम्मू में हमले के सीन को शानदार तरीके से फिल्माया गया है, एक बार तो लगता है कि जितने प्लेन इस सीन में कबीर खान ने दिखाए हैं, उतने 1965 में पाकिस्तान के पास होंगे भी क्या? ट्रेन में सत्यानाश वाला गाना भी शानदार फिल्माया गया है.

हालांकि कहानी की जरूरत होती होगी शायद, लेकिन कहानी रचने के लिए कई तरह की छूट ली गई हैं, जैसे कोच अली का किरदार, किसी भी इंटरव्यू में मुरली कांत ने उनका जिक्र नहीं किया, हमेशा अपने कमांडेंट को श्रेय दिया है, जिनका रोल मूवी में यशपाल शर्मा का था, मूवी में ये रोल विजय राज के मुकाबले 10 प्रतिशत भी नहीं है, ना ही  दोस्त करनैल (भुवन अरोरा) का जिक्र उनके इंटरव्यूज में कभी आया है. 83 में सरदारों का एक ग्रुप बार-बार फैंस के रूप में दिखता है, इस मूवी में भी ऐसा ही एक ग्रुप है. कबीर की फिल्मों में दिखने वाला एक खास पैटर्न स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्मों में भी साफ नजर आता है. 

मुरलीकांत पेटकर की कहानी को बखूबी पर्दे पर दिखाया

यूं मूवी में 1968 के पैरा ओलंपिक और उसमें जेवलिन थ्रो आदि में मुरली के फाइनल्स में पहुंचने का जिक्र ही नहीं होता, बॉक्सिंग के नेशनल खिताब का भी नहीं. दिलचस्प बात है कि फिल्म में दिखाया गया है कि उनका कोच उनसे टोक्यो में फाइनल में हारने पर नाराज हो जाता है, और उनको कश्मीर भेज दिया जाता है. लेकिन एक इंटरव्यू में मुरली ने कहा था कि सिल्वर मेडल से कमांडेंट बड़ा खुश था, और उसे कश्मीर कैंप घूमने के लिए भेज दिया था.

मूवी में दिखाया गया है कि मुरली अपने कोच की जान बचाते हुए, दुश्मन की गोलियां खाता है,जबकि मुरली अपने इंटरव्यू में बताते हैं कि बाहर चाय पीने निकले थे कि हमला हो गया और ऊपर से एक आर्मी की गाड़ी भी निकल गई. ऐसे में कोच अली का काल्पनिक किरदार फिल्म के लिए जरूरी था या नहीं, ये आप फिल्म देखकर ही तय करेंगे.

एक्टिंग के मामले में यशपाल शर्मा और राजपाल यादव को उनके कद के मुताबिक रोल नहीं मिले, लेकिन वो कम समय में वो छाप छोड़ने वाले हैं. फर्जी के बाद भुवन अरोरा को फिर एक अच्छा रोल मिला और उन्होंने साबित भी किया, विजय राज हमेशा की तरह लाजवाब हैं, अब हर फिल्म की जरूरत बनते जा रहे हैं. अनिरुद्ध दवे भी बड़े भाई के रोल में जंचे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा लोहा मनवाया है, तो कार्तिक आर्यन ने. 'सत्य प्रेम की कथा' के बाद निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने उन पर दोबारा भरोसा जताया तो कार्तिक ने निराश भी नहीं किया.

कार्तिक आर्यन की परफॉर्मेंस कमाल

आमतौर पर कॉमेडी और रोमांटिक फिल्मों के लिए जाने जाने वाले कार्तिक के लिए बिना हीरोइन या रोमांस वाली फिल्म करना और गजनी की तरह बॉडी पर अद्भुत काम करना तो हैरानी भरा था ही, इमोशंस के अलग अलग स्तर पर जाकर कैमरे के सामने भावों को व्यक्त करना ज्यादा मुश्किल काम था और कार्तिक इस परीक्षा में खरे उतरे भी हैं. अगर ये फिल्म दर्शकों का भी भरोसा जीतने में कामयाब रही तो मानकर चलिए 'चंदू चैंपियन' उनके लिए एक टर्निंग प्वाइंट होगी और सुपरहिट के लिए तरस रहे कबीर के लिए एक खुशी की वजह.

लेकिन ये सच है कि मूवी उम्मीदों, सपनो, जिद, हौसले, जज्बे, इमोशंस के उतार चढ़ाव और जद्दोजहद की दिलचस्प कहानी है और उसे उतने ही खूबसूरत तरीके से परदे पर रचा भी गया है. बस देखना ये है कि कार्तिक आर्यन के अकेले कंधे पर खड़ी इस मूवी को उनके नाम पर कितने दर्शक देखने आते हैं, लेकिन आयेंगे तो निराश तो नहीं ही होंगे. परिवार के किशोरों को दिखाना तो बनता है. हां, फिल्म में हीरोइन के नाम पर भागश्री बोरसे का छोटा सा रोल है, सो रोमांस या ग्लैमर की इस मूवी में कोई जगह नहीं.

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