Trending Photos
नई दिल्ली: 'जठराग्नि' मतलब पेट की आग, जिसके बारे में हमने सुना ही है। हाल ही में सामने आए एक शोध में पता चला है कि वास्तव में हमारे पेट में एक तरह की आग होती है. ताजा शोध के अनुसार, भोजन करने के साथ ही हमारे पेट की यह अग्नि भड़क उठती है, लेकिन यह हमारे लिए हानिकारक नहीं बल्कि लाभकारी है। यह आग एक सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करती है जो खाने के साथ पेट में गए जीवाणुओं से लड़ने का काम करती है।निष्कर्षो से पता चला है कि यह 'आग' भारी शरीर वाले व्यक्तियों में नहीं होती है, जिससे मधुमेह होने का खतरा रहता है।
दूसरी तरफ स्वस्थ व्यक्तियों में अल्पकालिक प्रतिक्रिया के रूप में भड़की यह 'आग' प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किए गए अध्ययन में पता चला है कि रक्त में ग्लूकोज की मात्रा के आधार पर मैक्रोफेजेज की संख्या--एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाएं या अपमार्जक कोशिकाएं-भोजन के दौरान आंत के चारों तरफ बढ़ जाती है। यह संदेशवाहक पदार्थ इंटरल्यूकिन-1बीटा (आईएल-1बीटा) का उत्पादन करती हैं।
यह अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं में इंसुलिन के उत्पादन को उत्तेजित करता है और मैक्रोफेज को आईएल-1बीटा के उत्पादन का संकेत देता है। इंसुलिन और आईएल-1बीटा साथ मिलकर रक्त में शर्करा के स्तर को नियमित करने का कार्य करते हैं, जबकि आईएल-1बीटा प्रतिरक्षा प्रणाली को ग्लूकोज की आपूर्ति को सुनिश्चित करता है और इस तरह से सक्रिय बना रहता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि चयापचय की प्रक्रिया और प्रतिरक्षा प्रणाली जीवाणु और पोषकों पर निर्भर होती है।. इन्हें भोजन के दौरान लिया जाता है।
शोध के मुख्य लेखक इरेज ड्रोर ने कहा कि पर्याप्त पोषक पदार्थो से प्रतिरक्षा प्रणाली को बाहरी जीवाणु से लड़ने में मदद मिलती है। ड्रोर ने कहा कि इसके विपरीत, जब पोषक पदार्थो की कमी होती है, तो कुछ शेष कैलरी को जरूरी जीवन की क्रियाओं के लिए संरक्षित कर लिया जाता है। इसे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की कीमत पर किया जाता है। शोध पत्रिका 'नेचर इम्यूनोलॉजी' के ताजा अंक में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है।
क्या है जठराग्नि?
संस्कृत भाषा में आमाशय को जठर कहते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा पद्यति के अनुसार हमारे आमाशय में हमारे द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किये जाने वाले पदार्थों को पचाने के लिए एक प्रकार की अग्नि होती है जिसे जठराग्नि कहा जाता है। जैसे ही भोजन ग्रास नाली से होकर आमाशय में पहुंचता है जठराग्नि इस पर अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देती है। आमाशय में उपलब्ध जठराग्नि में उपलब्ध जठरीय रस की भोजन पर क्रिया द्वारा प्रोटीन अंततः पेप्टोन (peptone) में बदल जाते हैं। यदि हमारे शरीर में जठराग्नि न हो तब कुछ भी खाने पर हमारे शरीर को पोषक तत्व नहीं मिल सकते। जठराग्नि के अभाव में आमाशय में भोजन पचता नहीं है बल्कि भोजन के सड़ने की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इससे शरीर को पोषक तत्व तो नहीं ही मिलते, उल्टे भोजन के सड़ने के फलस्वरूप गैस, कब्ज, अम्लता, उलटी, सिर दर्द, शरीर में बेचैनी, आलस्य, काम में अरुचि होने, आदि की शिकायतों के साथ शरीर के लिए हानिकारक अनेक प्रकार के विषैले पदार्थ बन जाते हैं। जठराग्नि ही हमें भूखे होने का अहसास दिलाती है। यदि जठराग्नि कमजोर पड़ जाय तब हमें भूख कम लगने लगती है और स्वास्थ्य ख़राब होने लगता है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)