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नई दिल्ली : देश के 20 राज्यों के 2.5 करोड़ लोगों के फ्लोरोसिस एवं अन्य जल विषाक्तता से जुड़ी बीमारी से ग्रस्त होने की खबरों के बीच सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस दिशा में सुदूर इलाकों पर केंद्रित नीति बनाने एवं जनभागीदारी के साथ जमीनी स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन की जरूरत बतायी है।
झाबुआ एवं अन्य आदिवासी बहुल क्षेत्र में शोध करने वाले रसायनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार सिकरवार ने कहा कि हाल ही के वर्षो में यह देखने में आया है कि फ्लोराइड की अधिक मात्रा गुर्दे के साथ ही कई प्रकार के उत्तकों व एंजाइम की क्रियाविधि को भी प्रभावित करने लगी है। सबसे दुखद बात बात यह है कि फ्लोरोसिस से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले 7 से 12 वर्ष के बच्चे हैं जो दांत संबंधी फ्लोरोसिस से ग्रस्त है।
मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में इस विषय पर अध्ययन करने वाले सेंटर फार लीगल एड, रिसर्च एंड ट्रेनिंग और सह्रस्त्रधारा के अध्ययन में कहा गया है कि इन प्रदेशों के कई क्षेत्रों में फ्लोराइड की मात्रा 1.24 पीपीएम से 7.38 पीपीएम तक पाई गई है जो सामान्य स्तर 1.5 पीपीएमी से बहुत ज्यादा है।
इसमें कहा गया है कि मनुष्य के शरीर में अत्यंत अल्प मात्रा में फ्लोरीन जरूरी है लेकिन कुछ एंजाइम प्रक्रियाएं फ्लोरीन की कम मात्रा से या तो धीमी या तेज हो जाती हैं। हमारे शरीर में कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है, कैल्शियम विद्युत धनात्मक तत्व है और विद्युत रिणात्मक फ्लोराइड को अधिक मात्रा में अपनी ओर खींचता है और इससे एक क्रिस्टल का जमाव हो जाता है मनुष्य में फ्लोरोसिस का यही कारण है। पानी में इसकी अधिक मात्रा गहरे संकट का संकेत है।