नियमित रूप से योग करने वालों को सूजन संबंधी ऐसी समस्याएं होने का खतरा कम होता है जिनके चलते आगे जा कर कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां, कैंसर और अल्झाइमर हो सकता है। यह खुलासा भारतीय विज्ञान संस्थान ने एक अध्ययन में किया है जो जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड डाइग्नोस्टिक रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
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नई दिल्ली : नियमित रूप से योग करने वालों को सूजन संबंधी ऐसी समस्याएं होने का खतरा कम होता है जिनके चलते आगे जा कर कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां, कैंसर और अल्झाइमर हो सकता है। यह खुलासा भारतीय विज्ञान संस्थान ने एक अध्ययन में किया है जो जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड डाइग्नोस्टिक रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
एम एस रामैया मेडिकल कॉलेज के साथ संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि सूजन ( इनफ्लमेशन ) वास्तव में किसी तरह की चोट लगने पर हमारे शरीर द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया है। जब चोट लगती है तो उससे निपटने के लिए रक्त में प्रदाहकारी साइटोकाइन का स्त्राव होता है जो कि कोशिकाओं को संकेत देने वाले प्रोटीन हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि नियमित योग करने से प्रदाहकारी साइटोकाइन ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर (टीएनएफ) अल्फा और इंटरल्यूकिन-6 (आईएल-6) के स्तर को अनुकूल बनाए रखने में मदद मिल सकती है। योग श्वांस लेने, चिंतन और शारीरिक व्यायाम का ऐसा संतुलन है जो तन एवं मन के लिए स्वास्थ्यकर होता है।
चोट या संक्रमण की स्थित में शरीर की प्रतिरोधक प्रतिक्रिया का नियमन जरूरी है। ठीक इसी समय टीएनएफ-अल्फा एवं आईएल-6 का असंतुलन भी नुकसानदायक हो सकता है क्योंकि तीव्र प्रदाह की स्थिति में इनका अत्यधिक स्राव ट्यूमर बनने सहित अन्य घातक प्रभाव डाल सकता है। अगर प्रदाहकारी साइटोकाइन्स को नियंत्रित नहीं किया गया तो यह दोधारी तलवार की तरह काम कर सकता है। अध्ययन में पाया गया है कि नियमित योग करने से प्रदाहकारी साइटोकाइन्स का स्तर अधिक नहीं बढ़ता।
अनुसंधानकर्ताओं ने टीएनएफ-अल्फा और आईएल-6 के स्तरों का योग करने वालों और योग न करने वालों पर प्रभाव का अध्ययन किया। परिणामों से पता चलता है कि पिछले पांच साल से नियमित एक घंटा योग करने वालों को जलन एवं सूजन संबंधी बीमारियों का खतरा कम था क्योंकि उनमें टीएनएफ-अल्फा और आईएल-6 का स्तर कम पाया गया।
हालांकि योग करने और योग न करने वालों में हालांकि टीएनएफ-अल्फा और आईएल-6 में वृद्धि देखी गई लेकिन यह वृद्धि योग न करने वालों में अधिक थी। अनुसंधान में बताया गया है कि योग की अवधि बढ़ने के साथ साथ प्रदाहकारी साइटोकाइन्स के स्तर में कमी आती है, खास कर तब जब योग करने वाले विभिन्न शारीरिक मुद्राएं करते हैं।
एम एस रामैया मेडिकल कालेज के फिजियोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफेसर अंबरीश विजय राघव ने कहा ‘नियमित योग करने वालों में विभिन्न आसन करने की वजह से प्रदाहकारी साइटोकाइन का स्तर तेजी से नहीं बढ़ता।’ इसके अलावा दोनों समूहों के लिपिड प्रोफाइल से पता चलता है कि कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लाइसेराइड और वीएलडीएल (वेरी लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) की मात्रा योग न करने वालों में अधिक पाई गई जबकि योग करने वालों में एचडीएल (हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन( का स्तर अधिक था। एचएलडी को ‘गुड कोलेस्ट्रॉल’ कहा जाता है।