सुखदेव के परिवार वालों का कहना है कि 'इन्होंने अपनी जीवन अपने देश के लिए कुर्बान कर दिया, लेकिन आज़ादी के 70 साल बाद भी इन्हें शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है.'
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नई दिल्लीः देश की आज़ादी के लिए खुशी-खुशी फांसी के तख्ते पर झूलने वाले देश के सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज तक भारत सरकार ने शहीद का दर्जा नहीं दिया है. लुधियाना में सुखदेव थापर के परिवार वालों ने मातृभूमि पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वाली इन तीनों महान विभूतियों को शहीद का दर्जा देने की मांग की है. सुखदेव के परिवार वालों का कहना है कि 'इन्होंने अपनी जीवन अपने देश के लिए कुर्बान कर दिया, लेकिन आज़ादी के 70 साल बाद भी इन्हें शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है.'
सुखदेव थापर के परिजन अशोक थापर ने कहा 'हम इस मांग को लेकर 23 मार्च (जिस दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव शहीद हुए थे) को दिल्ली जाएंगे और वहां अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठेंगे. जब तक इन तीनों को शहीद का दर्जा नहीं मिलेगा हम भूख हड़ताल से नहीं हटेंगे. इस दौरान हमारे साथ भगत के परिवार के लोग भी शामिल होंगे. '
We are going to Delhi tomorrow and will do a indefinite hunger strike till the three of them don't get status of martyr. Family members of Bhagat Singh will also attend hunger strike: Ashok Thapar, relative of Sukhdev Thapar #Ludhiana pic.twitter.com/OwelWsBbPY
— ANI (@ANI) March 22, 2018
आपको बता दें कि गुरुवार को संसद में भी 23 मार्च को शहीदी दिवस के मौके पर अवकाश घोषित करने की आवाज उठी. शिरोमणि अकाली दल ने गुरुवार को लोकसभा में मांग उठाई कि शुक्रवार को 23 मार्च को भगत सिंह के शहीदी दिवस के मौके पर सदन में अवकाश घोषित किया जाए. अकाली दल के प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने गुरुवार को शून्यकाल में हंगामे के दौरान ही यह मांग उठाई और शोर-शराबे के बीच उनकी बात ठीक से नहीं सुनी जा सकी.
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लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी कहा ‘‘कुछ सुनाई नहीं दे रहा.’’ सदन में लगातार 14 दिन से विभिन्न मुद्दों पर हंगामा चल रहा है और आज भी अन्नाद्रमुक तथा वाईएसआर कांग्रेस के सदस्य अपनी अपनी मांगों को लेकर आसन के समीप नारेबाजी कर रहे थे. इसी बीच चंदूमाजरा को अपनी बात रखते हुए सुना गया.
अकाली सांसद ने कहा कि शुक्रवार 23 मार्च को शहीद भगत सिंह का शहीदी दिवस है. इस दिन अवकाश घोषित किया जाना चाहिए. उन्हें यह कहते भी सुना गया कि जहां से (भगत सिंह द्वारा) बम फेंका गया था, वह सीट रिजर्व की जाए और जहां बम गिरा था, वह स्थान चिह्नित किया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि सब लोगों को भगत सिंह के गांव जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देनी चाहिए. चंदूमाजरा ने कहा कि भगत सिंह ने अंग्रेज शासकों के खिलाफ बलिदान दिया था.
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उल्लेखनीय है कि 23 मार्च को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन सन 1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दी थी. इतिहास में उल्लेख मिलता है कि भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर आठ अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली (वर्तमान संसद भवन) में एक ऐसे स्थान पर बम फेंका जहां कोई मौजूद न था. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाही के खिलाफ उसे चेतावनी देने के लिए यह कदम उठाया था. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
(इनपुट भाषा से)