1984 में जब ग्वालियर से वाजपेयी चुनाव हार गए थे तब दिल्ली एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने के लिए कोई कार्यकर्ता नहीं पहुंचा था.
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नई दिल्ली: 50 से भी अधिक सालों तक अटल बिहारी वाजपेयी के सहायक रहे शिवकुमार के पुत्र महेश कुमार ने जी मीडिया से बात करते हुए वाजपेयी से जुड़े कई संस्मरण साझा किए हैं. वह खुद भी वाजपेयी के साथ 20 साल तक रहे हैं और वाजपेयी को बापजी कहा करते थे. इसी कड़ी में उन्होंने एक याद को साझा करते हुए कहा कि वाजपेयी हार से भी विचलित नहीं होते थे. अपनी हार का भी जश्न मनाया करते थे. उन्होंने बताया कि 1984 में जब ग्वालियर से वाजपेयी चुनाव हार गए थे तब दिल्ली एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने के लिए कोई कार्यकर्ता नहीं पहुंचा था. उस दौरान पिताजी (शिवकुमार) का फोन आया था तो मैं उन्हें अपनी पुरानी फिएट गाड़ी से रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंचा.
जब वह बाहर आए तो कुछ पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया और कहा कि आप तो बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे वाजपेयी जी, फिर पार्टी की हार कैसे हो गई. तब वाजपेयी ने बड़े मुस्कुराते हुए उनको कहा था कि देखिए राजीव गांधी जितना ऊपर उठ सकते थे उठ गए. हम जितना नीचे गिर सकते थे गिर गए. अब हमारी बारी है ऊपर उठने की और यूं कहते हुए वह गाड़ी में बैठे और बोले, महेश बंगाली मार्केट ले चलो गोलगप्पे खाएंगे. इस तरह वाजपेयी ही भारतीय राजनीति में उन नेताओं में से एक थे जिन्हें अपनी हार भी सेलिब्रेट करनी आती थी. उसके बाद बंगाली मार्केट में जाकर हमने गोलगप्पे खाए उन्हें चाट खाने का भी बड़ा शौक था.
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जयपुर से जुड़ाव
जयपुर से वाजपेयी का एक खास नाता रहा है और वह भी पिछले पांच दशक से. पिछले 52 सालों से वाजपेयी के साथ साए की तरह साथ रहे उनके निजी सचिव शिवकुमार जयपुर के ही रहने वाले हैं. खासतौर पर पिछले 13 साल से जब अटल जी बिलकुल मौन थे, तब केवल शिवकुमार ही थे जिनके पास 24 घंटे वाजपेयी की देखभाल की जिम्मेदारी थी.
दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. तब तक एक युवा नेता के तौर पर वाजपेयी की लोकप्रियता बढ़ चुकी थी. लोग उनके भाषण शैली के मुरीद हो चुके थे उनके इर्द-गिर्द उनसे मिलने के लिए भीड़ जमा होने लगी थी. तब RSS के नेताओं को लगा था कि उनकी सुरक्षा का पुख्ता बंदोबस्त किया जाना चाहिए. इसलिए तलाश शुरू हुई एक ऐसे व्यक्ति की जो अटल बिहारी की सिक्योरिटी और उनकी देखभाल का जिम्मा संभाल सके. काफी तलाश के बाद नानाजी देशमुख ने जयपुर के शिवकुमार पारीक का नाम सुझाया. शिवकुमार आरएसएस के हार्डकोर स्वयंसेवक थे.
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1957 में जुड़े वाजपेयी से...
अपने गठीले शरीर और रौबीली मूंछों के कारण वह औरों से अलग दिखते थे. 1957 का साल था जब शिव कुमार पारीक को वाजपेयी के साथ जुड़ने का मौका मिला था. शिवकुमार केवल अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सहायक के बतौर ही नहीं, बल्कि उनके हर राजनीतिक उतार-चढ़ाव के साक्षी रहे. उनकी अनुपस्थिति में सालों तक शिवकुमार ने ही लखनऊ संसदीय क्षेत्र को संभाला. बलरामपुर के अलावा वे हर चुनाव में उनके चुनाव एजेंट रहे और सुख-दुख के साथी. वाजपेयी के स्वस्थ रहने तक उनके हर पारिवारिक कार्यक्रम में वे शरीक हुए. शिवकुमार के पुत्र महेश पारीक बताते हैं कि पिताजी उस समय उच्च शिक्षित थे. BA, MA, LLB करने के बाद राजस्थान बैंक की नौकरी में थे.
शिवकुमार ने छोड़ दी नौकरी
वाजपेयी के साथ रहने का बुलावा आने पर शिवकुमार ने नौकरी छोड़ी और बोरिया बिस्तर लेकर उनके पास चले गए. उन्होंने 1965 में वाजपेयी के निजी सहायक के तौर पर साथ शुरू किया जिसे आज तक निभा रहे हैं. महेश बताते है कि उनके पिता शिवकुमार मानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सहायक के तौर पर वाजपेयी के साथ बिताए पल अविस्मरणीय हैं. महेश कहते हैं कि जयपुर में जब भी आते थे परिवार के साथ खाना खाते थे. मिठाइयों के शौकीन थे कहकर मिठाई मंगवाते थे. पिताजी को 2 दिन से ज्यादा नहीं छोड़ते थे. पिताजी जब जयपुर आते और दो से तीसरा दिन होता तो मुझे फोन करके कहते महेश, शिव को भिजवा दे मन नहीं लग रहा है. पिताजी का भी यही हाल था. 2 दिन से ज्यादा वाजपेयी साहब से दूर नहीं रह सकते थे.
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(इनपुट: एजेंसियां)