आज इस मसले पर फैसला आने के साथ ही अब अयोध्या मामले पर जल्द फैसले का रास्ता साफ हो गया है.
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नई दिल्ली: अयोध्या विवाद से जुड़े एक अहम मामले में व्यवस्था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है. दरअसल अयोध्या मामले में हो रही सुनवाई के दौरान जब इस्माइल फारुखी (1994) फैसले का मुद्दा उठा तो मुस्लिम पक्षकारों की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि पहले इस पर सुनवाई होगी. आज इस मसले पर फैसला आने के साथ ही अब अयोध्या मामले पर जल्द फैसले का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट ने इस संबंध में कहा भी है कि 29 अक्टूबर से अयोध्या विवाद पर सुनवाई होगी.
'नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है'
इससे पहले अयोध्या विवाद से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए अपने 1994 के फैसले को बरकरार रखा है. इस्माइल फारुखी मामले (1994) में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है. इस बात को कोर्ट ने आज फिर दोहराते हुए कहा कि नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है. यानी कोर्ट ने साफ कर दिया कि इस्माइल फारुखी (1994) के फैसले पर पुनर्विचार नहीं होगा. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले से संबंधित पुराना फैसला बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि इस्माइल फारुखी मामले(1994) का फैसला मस्जिद की जमीन के मामले में था. पुराना फैसला उस वक्त के तथ्यों के मुताबिक था.
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फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले में दो राय हैं. तीन सदस्यीय बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण की इसमें एक राय है और दूसरी राय जस्टिस एस अब्दुल नजीर की है. हालांकि तीसरे जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने अलग राय रखते हुए कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा जाना चाहिए. बहुमत के फैसले में कहा गया कि नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि 29 अक्टूबर से राम मंदिर केस की सुनवाई शुरू होगी. इस पृष्ठभूमि में जानिए कि आखिर किस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने रुख को स्पष्ट किया?
क्या था मुद्दा
1. अयोध्या मामले के एक मूल वादी एम सिद्दीक ने एम इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 के फैसले में इन खास निष्कर्षों पर ऐतराज जताया था जिसके तहत कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का अभिन्न हिस्सा नहीं है. सिद्दीक की मृत्यु हो चुकी है और उनका प्रतिनिधित्व उनके कानूनी वारिस कर रहे हैं.
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2. वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने सिद्दीक के कानूनी प्रतिनिधि की ओर से पेश होते हुए कहा था कि मस्जिदें इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने बगैर किसी पड़ताल के या धार्मिक पुस्तकों पर विचार किए बगैर की.
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3. मुस्लिम समूहों ने चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह दलील दी थी कि इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन पर पांच सदस्यीय पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है क्योंकि इसका बाबरी मस्जिद-राम मंदिर भूमि विवाद मामले पर असर पड़ेगा.
4. हालांकि इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि कुछ मुस्लिम समूह ‘इस्लाम का अभिन्न हिस्सा मस्जिद के नहीं होने’ संबंधी 1994 की टिप्पणी पर पुनर्विचार करने की मांग कर लंबे समय से लंबित अयोध्या मंदिर-मस्जिद भूमि विवाद मामले में विलंब करने की कोशिश कर रहे हैं. अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने उप्र सरकार की ओर से पेश होते हुए कहा था कि यह विवाद करीब एक सदी से अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहा है.