इलाहाबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने 30 सितंबर 2010 को विवादित भूमि को तीन भागों में बांचने को कहा था.
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नई दिल्ली: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के 7 साल बाद शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान 18 हजार पेज के दस्तावेजों के अंग्रेजी में नहीं होने के कारण सुनवाई 5 दिसंबर तक टालनी पड़ी. करीब डेढ़ घंटे तक चली इस सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पहले विवादित भूमि पर मालिकाना हक किसका है ये तय किया जाएगा. जबकि इस मामले को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी का कहना है कि पूजा का अधिकार मौलिक अधिकार के दायरे में आता है इसलिए उस पर सबसे पहले कोर्ट विचार करे.
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा इस विवाद से जुड़े सभी कागजात संस्कृत, पारसी, उर्दू, अरबी और दूसरी भाषाओं में हैं. इन्हें अंग्रेजी में अनुवादित करने के बाद 5 दिसंबर से कोर्ट में पुन: सुनवाई होगी. इसके अगले दिन 6 दिसंबर को बाबरी ढांचा ढहाने की बरसी भी है. कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड द्वारा वर्ष 1946 में निचली अदालत द्वारा दिए फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इसमें शिया बोर्ड ने मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण होने की बात कही है. इस पर आपत्ति जताते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि 72 साल बाद अपील का कोई मतलब नहीं है. जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि अयोध्या भूमि विवाद निपटाने के बाद अन्य याचिकाओं पर विचार किया जाएगा.
बता दें इलाहाबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने 30 सितंबर 2010 को दो-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल को तीन बराबर हिस्सों में बांटकर इसे राम जन्मभूमि न्यास, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया था.