सुनंदा पर खबरें चलायी जा सकती हैं, लेकिन थरूर की चुप्पी का सम्मान हो: दिल्ली हाई कोर्ट
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सुनंदा पर खबरें चलायी जा सकती हैं, लेकिन थरूर की चुप्पी का सम्मान हो: दिल्ली हाई कोर्ट

सुनंदा 17 दिसंबर, 2014 को दक्षिणी दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत पायी गयी थीं.

दिल्ली उच्च न्यायालय

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने पत्रकार अर्णब गोस्वामी और उनके ‘रिपब्लिक’ टीवी चैनल को शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की रहस्यमयी मौत के मामले से जुड़ी खबरें प्रसारित करने या इस विषय पर परिचर्चा कराने से रोकने की मांग को आज खारिज कर दिया हालांकि उनसे कांग्रेस सांसद के ‘चुप रहने के अधिकार’ का सम्मान करने को कहा. अदालत ने यह भी कहा कि संविधान के तहत थरूर को ‘‘चुप रहने का अधिकार’’ है और किसी भी व्यक्ति को किसी सवाल पर बोलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.

न्यायमूर्ति मनमोहन ने 61 पन्ने के फैसले में कहा कि सुनंदा की मौत से जुड़ी किसी खबर को चलाने से पहले चैनल को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में उस पर थरूर की राय जानने के लिए लिखित नोटिस देना चाहिए. अदालत ने कहा, ‘‘अगर वे (वादी) यथोचित समय के भीतर इंकार करते हैं या जवाब नहीं देते हैं तो उन्हें बोलने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा और खबर इस स्पष्टीकरण के साथ चलायी जाएगी कि उन्होंने प्रतिवादी (टीवी चैनल और गोस्वामी) से बात करने से मना कर दिया.’’

अदालत ने थरूर की ओर से दाखिल की गयी तीन याचिकाओं का निपटारा कर दिया. थरूर ने यहां निचली अदालत में मामला लंबित रहने तक अपनी पत्नी की मौत के संबंध में टीवी चैनल और गोस्वामी को खबरें प्रसारित करने से रोकने के लिए याचिका दायर की थी.

न्यायालय ने गोस्वामी और चैनल के खिलाफ थरूर द्वारा दायर दो करोड़ रुपये की मानहानि के तीन मुकदमों पर यह आदेश दिया. कांग्रेस नेता ने पत्रकार और चैनल पर सुनंदा की रहस्यमयी मौत से जुड़ी खबर के प्रसारण के समय उनके खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने को लेकर ये मामले दायर किये थे.

सुनंदा 17 दिसंबर, 2014 को दक्षिणी दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत पायी गयी थीं. थरूर का आरोप है कि उनके (गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी) वकील द्वारा 29 मई को दिये गए आश्वासन के बावजूद वे उनको ‘बदनाम’ करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.

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