अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का निर्णय सभी तथ्यों पर गहनता से विचार के बाद इस अतिगंभीर स्थिति से जांच एजेंसी की विश्वसनीयता को बचाने के लिए लिया था.
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नई दिल्लीः सीबीआई निदेशक अलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के सरकार के फैसले के खिलाफ दायर वर्मा की याचिका पर अगली सुनवाई गुरुवार को होगी. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में केन्द्र सरकार ने अपनी बहस पूरी कर ली और सीवीसी ने दलीलें रखनी शुरू की, जिसके बाद सुनवाई का समय पूरा हो गया और चीफ जस्टिस की तीन जजों की बेंच ने बाकि सुनवाई गुरुवार को सुबह 10.30 बजे सुनने का समय तय किया.
बुधवार को सीवीसी की तरफ से सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विनीत नारायण केस का हवाला देते हुए CVC की वैधानिक स्थिति के बारे में कोर्ट को बताया. CVC के पास सीबीआई की निगरानी करने की जिम्मेदारी है. मेहता- CVC के पास निगरानी और आदेश जारी करने का अधिकार है. उनकी केवल यही लिमिटेशन है कि किसी केस में व्व ये निर्देश नहीं दे सकते कि कैसे जांच की जानी चाहिए. बाकि दलीलें सीवीसी गुरुवार को रखेगी.
बुधवार को सीवीसी की दलीलों से पहले केन्द्र सरकार के लिए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि अंतरिम निदेशक को नियुक्त करने का आदेश लोगों का जांच एजेंसी के प्रति विश्वास को बनाए रखने के लिए दिया गया था. सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा का विशेष निदेशक राकेश अस्थाना से टकराव सीबीआई की क्रेडिबिलिटी को खत्म कर रहा था.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का निर्णय सभी तथ्यों पर गहनता से विचार के बाद इस अतिगंभीर स्थिति से जांच एजेंसी की विश्वसनीयता को बचाने के लिए लिया था. सरकार को चिंता किसी खास भ्रष्टाचार की शिकायत को लेकर नहीं थी, उनकी चिंता एजेंसी के दो वरिष्ठ सीबीआई अधिकारियों के बीच लड़ाई को लेकर थी. क्योंकि इससे सीबीआई की छवि खराब हो रही थी.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने सीबीआई की छवि को बचाने के लिए किसी एक पर नहीं, बल्कि दो सीबीआई अधिकारियों पर कार्रवाई की. सरकार ने आलोक वर्मा के साथ राकेश अस्थाना को भी छुट्टी पर भेजा. दोनों अधिकारी अपनी निजी लड़ाई को सार्वजनिक तौर पर ले आये थे. दोनों ने विवाद को इन हाउस निपटने की बजाए उसे सार्वजनिक करने शुरू कर दिया. जिससे हालात बदतर हो गए थे. सरकार ने कहा कि हमने आलोक वर्मा का तबादला नहीं किया है. वह उसी सरकारी बंगले में हैं और अपनी पहले वाली सरकारी गाड़ी इस्तेमाल कर रहे हैं.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने दोनों को आपसी लड़ाई सार्वजनिक करने पर छुट्टी पर भेजा. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- इसके सबूत क्या है? क्या सीबीआई निदेशक ने कोई प्रेस वार्ता की थी? अटॉर्नी जनरल ने स्पष्ट किया कि किस प्रकार इन दोनों सीबीआई अधिकारियों को तबादला करना नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा कि आप किसी से भी पूछे कि सीबीआई निदेशक को? जवाब होगा आलोक वर्मा और विशेष सीबीआई निदेशक को? जवाब होगा राकेश अस्थाना. फिर आप कैसे कह सकते हैं कि इनका तबादला किया गया.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने अपनी सीमा और अधिकारक्षेत्र में रहकर काम किया है. अगर वो ये सब नहीं रोकते तो केवल भगवान ही जानते है कि शीर्ष अधिकारियों का ये विवाद किस तरह खत्म होता. इसलिए सरकार को कदम उठाने पड़े. यह जरूरी था और हमने किया. कोई इसकी कल्पना तक नहीं कर सकता कि इस विवाद का अंजाम क्या होता? सरकार ने कहा वर्मा का ट्रांसफ़र नही किया गया इसलिए चयन समिति से परामर्श लेने की ज़रूरत नहीं थी. केंद्र सरकार ने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए दखल किया. अगर सरकार ने दखल नहीं दिया होता तो ईश्वर जानता है कि दोनों अधिकारियों का ये टकराव क्या शक्ल अख्तियार कर चुका होता.
पिछली सुनवाई में 29 नवंबर को केन्द्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि आलोक वर्मा दिल्ली में ही हैं उसी सरकारी आवास में. ऐसे में यह कहना उचित नहीं कि उनका ट्रांसफर किया गया है. केंद्र सरकार ने कहा कि 3 सदस्यीय कमिटी का काम सेलेक्शन का होता है जबकि अपॉइंटमेंट का काम सरकार का होता है, यानी दो अलग अलग काम है.
केंद्र सरकार ने कहा कमेटी पैनल चयन करके सरकार को भेजती है उसके बाद उसका काम ख़त्म हो जाता है. सरकार की प्राथमिक चिंता थी की सीबीआई में लोगों के विश्वास को बनाए रखना जिस तरह से सीबीआई के शीर्ष दो अधिकारी एक-दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप लगाया है उससे जनता की राय नकारात्मक हो रही थी. और यही वजह है कि सरकार ने सार्वजनिक हित में हस्तक्षेप करने का फैसला लिया ताकि सीबीआई का आत्मविश्वास बना रहे.
सुनवाई में सीबीआई के सीनीयर अफिसर एके बस्सी की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा कि कोई नियम CBI डायरेक्टर के 2 साल के तय कार्यकाल की अवहेलना नहीं कर सकता. CVC या सरकार को उन्हें छुट्टी पर भेजने का अधिकार हासिल नहीं है.
आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला इसलिये लिया गया क्योंकि कुछ खास मामलों की जांच से वो जुड़े थे. एक अन्य याचिकाकर्ता CBI के DIG मनीष सिन्हा की ओर से पेश वकील इन्दिरा जंय सिंह ने कहा कि वो अभी अपने केस मे जिरह नहीं करना चाहती, इन्दिरा जंय सिंह ने कहा कि पहले कोर्ट में आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई होने दे, वो उसके आउटकम का इंतजार करेंगी.
कांग्रेस नेता व विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के वकील सिब्बल ने सुप्रीमकोर्ट को बताया कि सीवीसी की सीबीआई पर supervision की शक्ति भ्रष्टाचार के मामलों तक ही सीमित है. यह सीवीसी को सीबीआई प्रमुख कार्यालय को सील करने या मजबूरन छुट्टी के लिए सिफारिश करने के लिए दबाव नहीं बना सकता है.
कपिल सिब्बल ने कहा कि नियुक्ति करने की अधिकार में निलंबन या खारिज करने की अधिकार भी होगा यही कारण है कि आलोक वर्मा के खिलाफ जो कुछ भी किया जाना था, उसे चयन समिति में जाना पड़ा. यह कल सीएजी, सीवीसी के साथ भी हो सकता है.
सिब्बल ने आलोक वर्मा के पक्ष में दलील देते हुए कही कि - जिस हाई पावर सेलेक्शन कमिटि के पास सीबीआई डायरेक्टर को नियुक्त करने का अधिकार है, ससपेंड या डिसमिस करने का अधिकार भी उसी कमेटी के पास होगा. कपिल सिब्बल ने कहा कि आरोप CVC के खिलाफ भी है, जो आलोक वर्मा के साथ हुआ है CVC के साथ भी हो सकता है. CJI ने पूछा 'CVC के खिलाफ आरोप कहां है.' सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के वकील फली नारीमन ने CVC जांच पर आलोक वर्मा के जवाब के लीक होने को लेकर दलील दी कि कि कोर्ट इस मामले की सुनवाई से जुडी जानकारी के पब्लिकेशन पर रोक लगा सकता है.