केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- पूर्व सांसदों को पेंशन और अन्य लाभ देना न्यायोचित है
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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- पूर्व सांसदों को पेंशन और अन्य लाभ देना न्यायोचित है

वेणुगोपाल ने गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की याचिका का विरोध करते हुये ये दलीलें दीं. 

संसद को यह सुनिश्चित करना है कि जहां तक सांसदों का संबंध है वे प्रभावी तरीके से काम कर सकें.(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पूर्व सांसदों को पेंशन और दूसरे लाभ का हकदार बनाना न्यायोचित है क्योंकि संसद सदस्य के रूप में कार्यकाल पूरा होने के बाद भी उनकी गरिमा बनाये रखनी होगी. न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र में काम करना होता है और हर पांच साल बाद चुनाव लड़ना होता है, उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा भी करना होगा.

वेणुगोपाल ने गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की याचिका का विरोध करते हुये ये दलीलें दीं. याचिका में सांसदों द्वारा खुद ही अपना वेतन और भत्ते निर्धारित करने सहित अनेक मुद्दे उठाये गये हैं. याचिका में सांसदों और उनके परिवार के सदस्यों के लिये पेंशन भी निरस्त करने का अनुरोध किया गया है.

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उन्होंने कहा, ‘‘संसद कानून बनाने वाली संस्था है. संसद को यह सुनिश्चित करना है कि जहां तक सांसदों का संबंध है वे प्रभावी तरीके से काम कर सकें. सांसदों को हर पांच साल में चुनाव में जाना पड़ता है और दौरे करने पड़ते हैं.

अत: उन्हें पेशन देना न्यायोचित है.’’ सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता संगठन के महासचिव एस एन शुक्ला ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुये दावा किया कि 62 फीसदी सांसद करोड़पति हैं और करदाताओं पर पूर्व सांसदों और उनके परिवार के सदस्यों को पेंशन देने का भार नहीं डाला जा सकता. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘ करदाताओं को वोट देकर उन्हें बाहर कर देना चाहिए. उन्हें ऐसा करने दीजिए. हम उन्हें रोक नहीं सकते. आप एक अच्छा बयान दे रहे हैं.

कितने नौकरशाह करोड़पति हैं
क्या हमें उन आंकड़ों पर भी गौर करना चाहिए कि कितने नौकरशाह करोड़पति हैं? क्या हमें इस मामले को देखना चाहिए? इस तरह की बहस में पड़ने की हमें अनुमति नहीं है.’’ इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही अटार्नी जनरल ने संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुये कहा कि इस याचिका में उठाये गये मुद्दे वृहद पीठ के फैसले में पूरी तरह से समाहित हैं. वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘एक सांविधानिक संस्था की दूसरी ऐसी संस्था के साथ तुलना नहीं कर सकते.

अत: संविधान के अनुच्छेद14 ( कानून के समक्ष समानता) का सवाल ही नहीं उठता. इससे किसी का भी अधिकार प्रभावित नहीं होता है. कार्यकाल पूरा होने के बाद उनकी( सांसद की) की गरिमा बनाये रखनी होगी.’’ याचिकाकर्ता ने पीठसे कहा कि यह मामला करदाताओं के पैसे से संबंधित है और पूर्व सांसदों को पेंशन और दूसरे लाभ देना पक्षपातपूर्ण है. इस पर पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘ आप इस तरह से तुलना नहीं कर सकते. 

आप कहना चाहते हैं कि नौकरशाह को सांसद के समकक्ष किया जाये. ’’ पीठ ने कहा, ‘‘ हम आपसे सहमत हैं कि यह आदर्श स्थिति नहीं है परंतु यह न्यायालय के निर्णय के लिये नहीं है. ’’ इसके साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या दुनिया के किसी अन्य लोकतंत्र में इस तरह के सवालों पर न्यायालय में बहस होती है. शुक्ला ने जब मीडिया की खबरों का हवाला दिया तो पीठ ने पलट कर कहा, ‘‘ बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी है और हम इसे रोक नहीं सकते. ’’ 

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