राजनीति में रूचि रखने वाले लोगों के मन में सवाल उठने लगे कि आखिर किस वजह से टीडीपी एनडीए से अलग नहीं होना चाहती है?
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नई दिल्ली: आम बजट 2018 में आंध्र प्रदेश को कुछ खास नहीं मिलने पर तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने भारी नाराजगी जाहिर की थी. मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की ओर से पार्टी के बड़े नेताओं की बैठक बुलाई गई तो मीडिया में ये भी खबरें आईं की टीडीपी बीजेपी से दोस्ती तोड़कर एनडीए से अलग हो सकती है. हालांकि चंदे घंटे बाद ही टीडीपी की ओर से जारी बयान में कहा गया कि वह बजट से जरूर नाराज हैं, लेकिन वे एनडीए से अलग नहीं होंगे. इस बयान के साथ ही राजनीति में रूचि रखने वाले लोगों के मन में सवाल उठने लगे कि आखिर किस वजह से टीडीपी एनडीए से अलग नहीं होना चाहती है? आइए जानते हैं कि किस वजह से टीडीपी एनडीए से अलग नहीं होना चाहती है.
1. 2014 का वादा अब नहीं हुआ पूरा: साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और टीडीपी मिलकर वोटरों के पास गए थे, उस दौरान किए गए वाद अब तक पूरे नहीं हुए हैं. टीडीपी के नेताओं का मानना है कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले अगर इन वादों को पूरा करना है तो केंद्र की मदद जरूरी है.
2. जगन मोहन रेड्डी हैं पेंच: कांग्रेस से अलग होकर जगन मोहन रेड्डी ने वाईएसआर कांग्रेस बनाई है. जगन मोहन रेड्डी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं. केंद्रीय जांच एजेंसियों के कई केस जगन पर चल रहे हैं. इन पचड़ों से खुद को बचाए रखने के लिए जगन बीजेपी से हाथ मिलान चाहते हैं. चंद्रबाबू नायडू को चिंता है कि अगर वे एनडीए से अलग होते हैं तो जगन मोहन रेड्डी उनकी जगह एनडीए में शामिल हो सकते हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में जगन की पार्टी के प्रदर्श पर नजर डालें तो चंद्रबाबू नायडू कभी नहीं चाहेंगे कि राज्य की राजनीति में उनकी हैसियत बढ़े. हालांकि राजनीति के जानकार मानते हैं कि जगन को मुस्लिमों का समर्थन है. अगर वे बीजेपी से मिलते हैं तो उन्हें राजनीतिक फायदे कम लेकिन व्यक्तिगत लाभ ज्यादा होंगे.
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3. वोटों के गणित ने रोके चंद्रबाबू के पांव: 2014 के लोकसभा चुनाव में वाईएसआर और कांग्रेस के वोटों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा 45.38 फीसदी दिखता है. वहीं कांग्रेस और टीडीपी के वोट प्रतिशत को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 47.71 फीसदी पहुंचता है. 2.51 फीसदी वोटों का अंतर चंद्रबाबू नायडू को एनडीए से अलग होने से रोक रहे हैं. वैसे भी राज्य में जगन मोहन रेड्डी पिछले कुछ समय से चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल बनाने में जुटे हैं, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी होते दिख रहे हैं.
4. पावर गेम के माहिर खिलाड़ी हैं चंद्रबाबू नायडू: टीडीपी के अध्यक्ष और आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू को लंबे समय से फॉलो करने वाले बताते हैं कि वे राजनीति में पावर गेम के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. वे अपनी मांगें मनवाने के लिए अक्सर राजनीति में इस तरह की खबरें उड़वाते रहे हैं. बजट के प्रति नाराजगी और एनडीए से अलग होने की सुगबुगाहट की खबरों के बीच वे केंद्र सरकार से अपनी मांगें मनवाना चाहते हैं, ताकि आगामी चुनावों में वे इसका लाभ ले सकें.
तेलगु देशम पार्टी (तेदेपा) ने रविवार को कहा कि आम बजट 2018-19 में आंध्रप्रदेश के साथ न्याय नहीं होने का मसला वह संसद में उठाएगी. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में तेदेपा अहम सहयोगी है.
आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री व टीडीप के अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू ने अपनी पार्टी के सांसदों से इस मसले को लेकर भाजपा की अगुवाई में राजग सरकार पर दबाव डालने को कहा. सूत्रों के मुताबिक, टीडीपी संसदीय दल की बैठक में नायडू ने कहा कि पार्टी इस मसले को संसद में उठाएगी. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह तो पहला कदम है. उन्होंने कहा कि सांसद केंद्र सरकार पर इस बात को लेकर दबाव डालेंगे कि 2014 में राज्य के विभाजन के समय जो वादे किए गए थे उनका सम्मान हो.
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नायडू अपनी मांगों की सूची के साथ बजट सत्र से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे. टीडीपी प्रमुख केंद्र से राज्य के राजस्व घाटे से उबारने की अपेक्षा करते हैं. उनका कहना है कि अन्य पड़ोसी राज्यों के समान आंध्रप्रदेश को भी विकास के लिए मदद मिलना चाहिए.
5. चंद्रबाबू के अपने भी नहीं चाहते हैं एनडीए से अलग होना: सूत्रों का कहना है कि टीडीपी के कुछ नेता नहीं चाहते हैं कि वे फिलहाल एनडीए से अलग हो. उनका कहना है कि केंद्र में बीजेपी है और मौजूदा हालात में आगे भी इसी के रहने की संभावना के चलते एनडीए से अलग होने में टीडीपी को ज्यादा नुकसान हो सकता है. फिलहाल मोदी सरकार में टीडीपी कोटे से अशोक गजपति राजू केंद्रीय मंत्री हैं.