जिस स्टेज पर सीएम मनोहर लाल खट्टर का कार्यक्रम होना था. उस स्टेज का पड़ोसी गांव डंडेरी वाले स्टे ले आए. उनका कहना है कि जिस जगह पर स्टेज लगा है गांव की नीलामी के वक्त वह डंडेरी के हिस्से में था. जबकि, रोहनात वासियों का कहना है कि इस जगह पर रोहनात का कब्जा है. स्टेज पर स्टे लेकर पड़ोसी गांव ने दोबारा इस गांव को गुलामी का अहसास करा दिया.
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भिवानी (नवीन शर्मा). भारत आज अपना 69वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. देश भर में जगह-जगह झंडा फहराया जा रहा है. लोग खुशियां मना रहे हैं. लेकिन भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां आज तक तिरंगा नहीं फहराया गया है. यहां ना तो गणतंत्र दिवस मनाया जाता है और ना ही स्वतंत्रता दिवस. हरियाणा के भिवानी जिले का रोहनात गांव अपने आप को आज भी गुलाम मानता है. बहरहाल, 69वां गणतंत्र दिवस यानी कि आज यहां कुछ अलग होने वाला था. यहां हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर खुद आकर झंडा फहराने वाले थे. लेकिन उनका दौरा रद्द हो गया है.
दरअसल, जिस स्टेज पर सीएम का कार्यक्रम होना था उस स्टेज का पड़ोसी गांव डंडेरी के लोगों ने स्टे लगवा दिया. उनका कहना है कि जिस जगह पर स्टेज लगा है गांव की नीलामी के वक्त वह डंडेरी के हिस्से में आया था. जबकि, रोहनात वासियों का कहना है कि इस जगह पर रोहनात का कब्जा है. स्टेज पर स्टे लेकर पड़ोसी गांव ने दोबारा इस गांव को गुलामी का अहसास करा दिया. हालांकि गणतंत्र दिवस न मनाए जाने की एक और कहानी बताई जा रही है. सरपंच रविंद्र बूरा का कहना है कि बवानी खेड़ा विधायक विशंभर बाल्मीकि के बेटे व भिवानी भाजपा के नेता की अचानक मौत हो गई. इसलिए हमने झंडा फहराने के कार्यक्रम को टाल दिया है.
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गुलामी की पूरी दास्तान...
करीब 4200 की आबादी वाले इस गांव में आजादी के बाद से ना तो कभी गणतंत्र दिवस मनाया गया और ना ही स्वतंत्रता दिवस. दरअसल, अंग्रेजों ने रोहनात गांव में भी जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार किया था. गांव के ही ओमप्रकाश शर्मा यहां के लोगों को 1857 के क्रांति में भाग लेने की खौफनाक सजा दी गई थी. उन्होंने बताता कि अंग्रेजों ने तोप चलाकर गांव को तबाह कर दिया. पुरुषों को बंदी बनाकर हांसी ले गए, जहां उनपर रोड रोलर चलाकर उनकी हत्या कर दी गई. अपनी आबरू बचाने के लिए गांव की महिलाएं जिस कुएं में कूदी थीं और जिस बरगद के पेड़ पर गांव के नौजवानों को फांसी दी गई थी, वो कुआं और बरगद का पेड़ आज भी अंग्रेजों द्वारा दिए दर्द के गवाह के रूप में मौजूद हैं. ओमप्रकाश ने बताया कि पूरे गांव को सिर्फ 8100 रुपए में नीलाम कर दिया गया था.
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गांव को कर दिया था नीलाम
सरपंच रविंद्र बूरा ने कहा कि नीलामी के कुछ वर्षों बाद ग्रामीणों ने मेहनत कर आस-पास की जमीन खरीद ली. लेकिन आज भी सरकारी रिकॉर्ड में रोहनात के साथ उन गांवों के नाम भी जुड़े हैं, जिन्होंने नीलामी में उसे खरीदा था. इसी कारण गांवे के विकास कार्यों में भी दिक्कतें आती हैं. उन्होंने बताया कि ग्रामिणों ने सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए. आश्वासन हर जगह मिले, पर काम नहीं बना. ग्रामिण दलबीर सिंह ने बताया कि सरकार ने बीड एरिया में प्लॉट देने की बात कही थी, लेकिन अभी तक कुछ नहीं मिला है.