दहेज की जानकारी पर सूचना आयोग का कड़ा रुख
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दहेज की जानकारी पर सूचना आयोग का कड़ा रुख

दूरगामी महत्व का एक अहम फैसला देते हुए राज्य सूचना आयोग ने सरकारी कर्मचारियों द्वारा विवाह के समय लिए जाने वाले दहेज की जानकारी सरकार को निश्चित तौर पर दिए जाने के लिए कड़ी हिदायतें जारी की हैं. 

(प्रतीकात्‍मक फोटो)

चंडीगढ़:  दूरगामी महत्व का एक अहम फैसला देते हुए राज्य सूचना आयोग ने सरकारी कर्मचारियों द्वारा विवाह के समय लिए जाने वाले दहेज की जानकारी सरकार को निश्चित तौर पर दिए जाने के लिए कड़ी हिदायतें जारी की हैं. आयोग ने इस जानकारी को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए इस बात पर गहरी नाराज़गी जताई है कि हरियाणा सिविल सेवा (एचसीएस) नियम-2016 की धारा-18 (2) महज औपचारिकता बनकर रह गई है और इसकी खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.

इस संबंध में राज्य के मुख्य सचिव को अपनी सिफारिशें जारी करते हुए राज्य सूचना आयुक्त हेमंत अत्री ने एक वैवाहिक विवाद के मामले में यह महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. मामले में पति द्वारा नाराज़ चल रही पत्नी को तृतीय पक्ष करार दिए जाने के तर्क को असंगत करार देते हुए अत्री ने लिखा है कि वैवाहिक विवाद के मामले में पत्नी तृतीय नहीं, बल्कि एक आवश्यक पक्ष है. ऐसे में तलाक से पहले पत्नी का संवैधानिक हक है और वह पति द्वारा दहेज को लेकर सरकार को दी गई जानकारी पाने की पूरी तरह हकदार है.

मामले में एक विवाहिता द्वारा मांगी गई पति की जानकारी तत्काल दिए जाने के आदेश देते हुए अत्री ने कहा कि भविष्य में सभी विभागों के सूचना अधिकारी इस बात का ख्याल रखें कि हरियाणा सिविल सेवाएं (हरियाणा कर्मचारी कंडक्ट) नियम-2016 की धारा 18(2) में निहित प्रावधानों का हर हालात में क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए. इस नियम के तहत इस बात की व्यवस्था है कि शादी के समय प्रत्येक सरकारी कर्मचारी अपने विभागाध्यक्ष को इस बात का घोषणा-पत्र देगा कि उसने कोई दहेज नहीं लिया है. घोषणा-पत्र पर पति के अलावा पत्नी और ससुर के हस्ताक्षर आवश्यक हैं.

दोनों पक्षों की सुनवाई करते हुए अत्री ने इस बात पर गहरी नाराज़गी जताई कि दहेज जैसी सामाजिक बुराई कि रोकथाम के लिए बनाया गया यह नियम एक दिखावा बनकर रह गया है और अधिकांश सरकारी कर्मचारी व अधिकारी इसकी खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं. हरियाणा जैसे प्रगतिशील प्रदेश में नियमों का इस तरह खुला उल्लंघन जवाबदेही और पारदर्शिता की मूल भावना के खिलाफ है.

मुख्य सचिव को आरटीआई कानून की धारा-25(5) के तहत सूचना आयुक्त ने सिफारिश की है कि वे डेढ़ माह के भीतर अपने सभी विभागाध्यक्षों को इस नियम की अक्षरश पालना सुनिश्चित करने की लिखित हिदायतें जारी करें और हिदायतों की प्रति आयोग को भी भेजें. अपने आदेश में अत्री ने यह भी कहा है कि सरकार को नई भर्तियों के समय नौकरी पाने वाले व्यक्तियों से भी लिखित घोषणा-पत्र लेना चाहिए कि वे विवाह के समय किसी भी तरह का दहेज नहीं लेंगे और दहेज लेने की सूरत में उनके खिलाफ नियमों के तहत कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए.
इस अहम आदेश में सूचना आयुक्त ने स्पष्ट किया है कि वैधानिक रूप से तलाक होने तक किसी भी पत्नी को पति की इस तरह की जानकारी लेने से नहीं रोका जा सकता. मौजूदा मामले का निपटारा करते हुए उन्होंने आबकारी एवं कराधान विभाग के जनसूचना अधिकारी को भविष्य में ऐसे किसी भी मामले में आरटीआई कानून के तहत स्वतंत्र और समयबद्ध फैसला लेने की हिदायत दी है.

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