ताकत के मामले में इन दोनों तूफान में ज्यादा अंतर नहीं था. जितना शक्तिशाली ताउ-ते तूफान था, लगभग उतना ही ताकतवर यास तूफान है. लेकिन इसके बावजूद ताउ-ते तूफान में ज्यादा लोगों की जान गई और आर्थिक नुकसान भी काफी हुआ.
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नई दिल्ली: पूर्वी और दक्षिण पूर्वी भारत में आया 'यास' नाम का तूफान तांडव मचा रहा है. बुधवार सुबह ये तूफान ओडिशा के बालासोर के तटीय इलाकों से टकराया और इस दौरान आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, बिहार और झारखंड में इसका जबरदस्त प्रभाव दिखाई दिया. भारत में पिछले 10 दिन में आया ये दूसरा तूफान है. इससे पहले ताउ-ते तूफान ने पश्चिमी भारत के राज्यों में भारी नुकसान किया था और इस दौरान 104 लोग इसमें मारे गए थे. लेकिन 'यास' तूफान के दौरान ऐसा नहीं हुआ.
ताकत के मामले में इन दोनों तूफान में ज्यादा अंतर नहीं था. जितना शक्तिशाली ताउ-ते तूफान था, लगभग उतना ही ताकतवर यास तूफान है. लेकिन इसके बावजूद ताउ-ते तूफान में ज्यादा लोगों की जान गई और आर्थिक नुकसान भी काफी हुआ. टेक कंपनी R.M.S.I का अनुमान है कि इस तूफान से केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और दमन दीव को 15 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. जबकि 104 लोगों की मौत भी हुई. वहीं यास तूफान में अब तक दो लोगों की मौत की खबर है.
इसका जवाब है तैयारी और बेहतर प्लानिंग. आज हम आपको बताएंगे कि किसी भी लहर में अपने जहाज को डूबने से बचाने के लिए बेहतर तैयारी और ठोस प्लानिंग जरूरी क्यों होती है. चाहे वो लहर कोरोना की हो, आर्थिक स्थिति की हो या फिर रिश्तों की. कैसे तैयारी और प्लानिंग आपको विजयी बना सकते हैं, आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे.
ये तूफान 17 मई को गुजरात के तट से टकराया था. लेकिन इस तूफान के आने से लगभग एक हफ्ते पहले ही मौसम विभाग ने इसे लेकर चेतावनी जारी कर दी थी. मौसम विभाग ने तब आशंका जताई थी कि अरब सागर में एक तूफान बन रहा है, जिससे पश्चिमी तटीय इलाकों में भारी बारिश हो सकती है और तेज रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं. फिर हर दिन के साथ मौसम विभाग ने अलर्ट का स्तर बढ़ दिया. 11 मई, फिर 12 मई और फिर 13 मई को मौसम विभाग की तरफ से लगातार चेतावनी जारी की गई.
लेकिन इन चेतावनियों के बावजूद कुछ Barge Ship अरब सागर में बने रहे और शायद यही कारण है कि जिन लोगों की इस तूफान के दौरान मौत हुई, उनमें ज्यादातर वही थे, जो चेतावनी के बावजूद समुद्र से लौटे नहीं. जबकि यास तूफान के दौरान ऐसा नहीं हुआ.
इस तूफान के दौरान योजनाबद्ध तरीके से समुद्री इलाकों को खाली कराया गया. पश्चिम बंगाल में 15 लाख और ओडिशा में 5 लाख लोगों को समुद्री इलाकों से सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया गया. बिहार और झारखंड में भी इस तरह कदम उठाए गए. इसके अलावा पांच राज्यों में NDRF की 112 टीमें तैनात की गईं. सबसे अधिक ओडिशा में 52 टीमें और पश्चिम बंगाल में 45 टीमों को राहत और बचाव के काम में लगाया गया. प्रत्येक NDRF टीम में बचाव दल के 47 सदस्य होते हैं. यही नहीं 50 टीमों को इन राज्यों में मदद के लिए स्टैंडबाय पर भी रखा गया.
NDRF की यही तैनाती ताउ-ते तूफान के दौरान भी हुई थी, लेकिन उस दौरान लोगों की लापरवाही और राज्य सरकारों के प्रबंधन में कुछ कमियों की वजह से ताउ-ते तूफान के भारी नुकसान को टाला नहीं जा सका. जबकि यास तूफान के दौरान ऐसा नहीं हुआ. यहां आपको जो बात समझनी है, वो ये कि ताउ ते तूफान अरब सागर में पैदा हुआ था और यास तूफान बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न हुआ. और इसमें जो महत्वपूर्ण जानकारी है, वो ये कि बंगाल की खाड़ी में अगर चार तूफान सक्रिय होते हैं तो इसकी तुलना में अरब सागर में एक तूफान ही आता है.
एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1890 से 1990 के बीच 100 वर्षों में 262 तूफान ईस्ट कोस्ट पर आए, जिनमें से 92 तूफान खतरनाक श्रेणी के थे. जबकि वेस्ट कोस्ट पर सिर्फ 33 तूफानों ने ही दस्तक दी, जिनमें से सिर्फ 19 तूफान ही केवल खतरनाक श्रेणी के थे.
अब आप समझ गए होंगे कि भारत के पूर्वी और दक्षिण पूर्वी तटीय इलाके अक्सर तूफान के निशाने पर रहते हैं जबकि पश्चिमी राज्यों पर ऐसा खतरा ज्यादा नहीं रहता. पहले जब पूर्वी और दक्षिण पूर्वी तटीय राज्यों में तूफान आते थे, तब वहां भी काफी तबाही होती थी. लेकिन फिर इन राज्यों ने तूफानों से निपटना सीख लिया और इसके लिए बेहतर सिस्टम और योजना बनानी शुरू की. यानी तैयारी में कोई कमी नहीं छोड़ी और यही कारण है कि बंगाल की खाड़ी में सक्रिय होने वाले तूफान अब कम नुकसान कर पाते हैं.
इसके पीछे दिसंबर 2004 में आई सुनामी है. तब इंडोनेशिया के सुमात्रा में 9.1 तीव्रता का भूकंप आया था और इस भूकंप के बाद हिन्द महासागर में इतिहास की सबसे बड़ी सुनामी में से एक आई थी, जिसमें कुल ढाई लाख लोगों की जान गई थी. तब भारत के दक्षिण पूर्वी राज्य भी काफी प्रभावित हुए थे और इसके बाद से ही समुद्री लहरों से निपटने की तैयारी पर काम शुरू हुआ.
इस सुनामी के आने के एक वर्ष के बाद वर्ष 2006 में National Disaster Response Force (NDRF) का गठन किया था. आज NDRF पहली पंक्ति में खड़े रह कर देश को प्राकृतिक आपदाओं से बचाती है. इस समय NDRF में कुल 12 बटालियन हैं और हर बटालियन में 1 हजार 149 जवान होते हैं. हालांकि लहरें सिर्फ तूफान की नहीं होतीं. लहर बीमारियों की होती है. जैसे कोरोना वायरस की दूसरी लहर से अभी हमारा देश संघर्ष कर रहा है. दुख की भी लहर होती है. शोक की भी लहर होती है और भावनाओं की भी लहर होती है. लहर खुशी की भी होती है.
कहने का मतलब ये है कि लहर में चढ़ाव भी है और इसका नीचे आना भी निश्चित है. ठीक समुद्र की लहरों की तरह. बस फर्क इतना है कि अगर तैयारी सही से की जाए तो लहर को ज्यादा ऊपर उठने से रोका जा सकता है. यानी उसे नियंत्रित किया जा सकता है और इसके लिए जरूरी है तैयारी.
हम अक्सर तैयारी का महत्व नहीं समझते और ये हमने कोरोना वायरस के दौरान देखा भी. वायरस की पहली लहर ने हमें चेतावनी दी और इसके बाद का समय तैयारी करने का था. हमें मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ तैयार रहना था लेकिन लोगों ने लापरवाही की और दूसरी लहर आई. इस दौरान सरकारों की तैयारियों में भी कमियां रहीं और मौजूदा व्यवस्था का भी इम्तिहान हुआ.
सोचिए अगर हमारे देश के लोगों ने कोरोना वायरस की दूसरी लहर की पूरी तैयारी की होती तो क्या कोरोना की दूसरी लहर इतनी प्रभावशाली होती? जवाब है नहीं. ये लहर भी यास तूफान की लहरों की तरह जल्द नीचे उतर आती. लेकिन तैयारियों में कमी की वजह से आज भी हमारा देश इसके खिलाफ संघर्ष कर रहा है.
चीन के महान रणनीतिकार Sun Tzu (सुन जू) ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले एक पुस्तक लिखी थी, जिसका शीर्षक है The Art of War. इसमें तैयारी का महत्व बताया गया है. Sun Tzu (सुन जू) ने इसमें लिखा था कि Victorious Warriors Win First And Then Go To War. While Defeated Warriors Go To War First And Then Seek To Win. इसका हिंदी में अर्थ है कि एक विजयी योद्धा युद्ध भूमि में पहुंचने से पहले ही अपनी अचूक प्लैनिंग से अपनी जीत सुनिश्चित कर लेता है जबकि युद्ध में पराजय होने वाला योद्धा पहले युद्ध भूमि में जाता और फिर युद्ध की योजना बनाता है और अक्सर यही होता भी है. इसे आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं.
वर्ष 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ, तब हमारा देश इस युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ऐसा सोचा नहीं था कि चीन भारत पर हमला कर देगा. क्योंकि उस समय भारत और चीन की सरकार के बीच एक दूसरे को पत्र भेजे जा रहे थे और हमारा देश बिल्कुल भी युद्ध के लिए तैयार नहीं था और शायद इसी वजह से 1962 के युद्ध में चीन विजयी रहा. क्योंकि चीन इस युद्ध की तैयारी लंबे समय से कर रहा था. उसे तैयारी और अपनी युद्ध योजना का ही फायदा हुआ.
लेकिन जब 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान को 12 दिनों में ही घुटनों पर ला दिया और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में एक अलग राष्ट्र की पहचान मिली. महत्वपूर्ण बात ये है कि उस समय Retired Lieutenant General J.F.R Jacob ने कहा था कि 1971 के युद्ध की तैयारी 6 महीने तक की गई थी. इस युद्ध से पहले भारतीय सेना के पास बुनियादी सामान और हथियारों की कमी थी. लेकिन 6 महीनों में इस कमी को दूर किया गया और ये सब तैयारी से ही सम्भव हुई.
इस तैयारी का एक दूसरा पहलू ये भी था कि अगस्त 1971 में भारत और सोवियत संघ ने शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे. इस संधि पर हस्ताक्षर पाकिस्तान से युद्ध से तीन महीने पहले हुए थे और इसके पीछे भी खास रणनीति थी. तब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान की अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से गहरी दोस्ती थी. और भारत को पता था कि अगर उसने पाकिस्तान से युद्ध लड़ा तो इसमें अमेरिका जरूर हिस्सा लेगा. इसीलिए भारत ने पहले से पूरा होमवर्क कर लिया था और सोवियत संघ के साथ संधि इस तैयारी की बुनियाद थी. कहने का मतलब ये है कि तैयारी को कभी कम करके नहीं आंका जा सकता. आज अगर यास तूफान से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ तो इसका कारण तैयारी और बेहतर प्लैनिंग ही है.
आज यास तूफान आया, इससे पहले ताउ-ते तूफान आया था. ताउ-ते तूफान से पहले Amphan तूफान आया था और 2019 में फानी और बुलबुल नाम के भी तूफान आए थे. इसके अलावा 2018 के तितली और 2017 के ओकची तूफान ने भारी तबाही मचाई थी. अगर आंकड़ों पर ध्यान दें तो भारत में हर साल औसतन 5 से 6 तूफान आते हैं, जिनमें दो से 3 खतरनाक श्रेणी के होते हैं. पूरी दुनिया में आने वाले चक्रवात तूफानों में से 10 प्रतिशत अकेले भारत में आते हैं.
भारत में ज्यादातर तूफान मई और जून और फिर अक्टूबर और नवंबर के महीने में आते हैं और इन तूफानों के आने का प्रमुख कारण है भारत की लंबी तटीय सीमा, जो 7 हजार 516.6 किलोमीटर लंबी है. 2019 की मौसम विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में भारत में आने वाले तूफानों में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वर्ष 2018 और 2019 में 7-7 चक्रवाती तूफान आए थे, जो एक रिकॉर्ड है. इससे पहले वर्ष 1985 में एक साल में सात चक्रवात तूफान आए थे.
आज ओडिशा के तटीय इलाकों से जो तूफान टकराया, उसे 'यास' नाम ओमान ने दिया है. इसका अर्थ होता है पेड़ और एक दिलचस्प बात ये है कि पेड़ों में भी तैयारी के बीज अंकुरित होते हैं.
पेड़ अलग-अलग ऋतुओं के लिए खुद को तैयार करते हैं. जैसे शरद ऋतु आने से पहले पेड़ एक खास तरह का Hormone विकसित कर लेते हैं, जिसकी वजह से वो अपने अंदर पानी को सोख कर रख पाते हैं. जब शरद ऋतु आती है यानी सितंबर से नवंबर का महीना होता है और पानी की कमी होती है तब ये Hormone पेड़ को सूखने नहीं देता.
इसी तरह जब भीषण गर्मी होती है तब पेड़ सर्वाइवल मोड में चल जाते हैं. विज्ञान की भाषा में कहें तो पेड़ Photosynthesis की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं ताकि वो गर्मी में अपनी ऐनर्जी को बचा कर रख सकें. अगर पेड़ ये तैयारी ना करें तो वो स्वस्थ नहीं रहेंगे और समय के साथ खत्म हो जाएंगे.
वैज्ञानिक मानते हैं कि गम्भीर श्रेणी के तूफानों की आंख भी होती है. किसी भी चक्रवात के मध्य भाग यानी केंद्र को आंख या Eye कहा जाता है और वैज्ञानिकों के मुताबिक किसी भी चक्रवाती तूफान की आंख की चौड़ाई यानी व्यास औसतन 30 किलोमीटर तक होता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि किसी भू तूफान की आंख तभी बनती है जब ये सक्रिय होने के बाद खतरनाक रूप ले लेता है.
- MinusCule Eye (मिनसक्युल आय) - इसमें तूफान की आंख बहुत छोटी होती है और इसका व्यास 19 किलोमीटर तक होता है.
- Medium Size Eye यानी मध्यम आकार की आंखें - इसमें आंख आमतौर पर 65 से 80 किलोमीटर व्यास की होती हैं. ऐसे तूफान आमतौर पर Tropical Countries यानी उष्णकटिबंधीय देशों में आते हैं. Tropical Countries का मतलब होता है ऐसे देश, जो भूमध्य रेखा के आसपास होते हैं. जैसे भारत.
- Big Eye यानी बड़ी आंख - इसमें तूफान का मध्य भाग काफी बड़ा होता है. दुनिया के इतिहास में अब तक जो सबसे बड़ा चक्रवात तूफान आया था, वो था Typhoon Carmen (टाइफून कार्मेन). इसकी आंख 370 किलोमीटर व्यास की थी.
आमतौर पर किसी भी चक्रवात तूफान की आंख की तस्वीर सैटेलाइट या अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से ली जाती है. क्योंकि कोई तकनीक या इंसान चक्रवाती तूफान के बीच नहीं जा सकता. सबसे अहम बात ये है कि तूफान की आंख से ही उसकी तीव्रता यानी स्पीड का अन्दाजा लगाया जाता है.