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नई दिल्ली: आज हम आपके लिए एक Quiz भी लेकर आए हैं. आज हम आपको एक झरने की तस्वीर दिखाएंगे. आपको बताना है कि ये झरना भारत के किस राज्य में है? और जहां ये झरना है उस हिल स्टेशन का नाम क्या है? लोग पैसे खर्च करके ऐसे Water Falls देखने के लिए पहाड़ों पर जाते हैं. लेकिन ये झरना किसी Hill Station पर नहीं बल्कि दिल्ली में मौजूद है और इसे देखने के लिए सरकार ने कोई टिकट नहीं रखी है. आप दिल्ली में बारिश के दिनों में ऐसे झरनों का आनंद मुफ्त में ले सकते हैं.
इस समय देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जयपुर में ध्यान यानी Meditaion में डूबे हैं जबकि दिल्ली पानी में डूबी है. अरविंद केजरीवाल जयपुर में 10 दिन के विपस्सना ध्यान शिविर में हिस्सा लेने गए हैं, जबकि दिल्ली पेरिस बनने की बजाय इटली के शहर Venice जैसी बन गई है. जहां सड़कों पर नाव चल रही है.
दिल्ली की सरकार ने लोगों को मुफ्त पानी का वादा किया था. लेकिन दिल्ली की सड़कों पर प्रचुर मात्रा में मुफ्त का पानी ऐसे भर जाएगा इसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी. अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो आपको छुट्टियां मनाने के लिए पहाड़ों पर जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि दिल्ली के Fly Overs से ही पानी के झरने फूट रहे हैं.
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इसके अलावा आप दिल्ली की सड़कों पर ही नदी, तालाब और Swimming Pool का आनंद ले सकते हैं और इनमें से किसी भी सुविधा के लिए आपको पैसे नहीं चुकाने हैं. ये दिल्ली सरकार की बाकी योजनाओं की तरह बिल्कुल मुफ्त है. दिल्ली में बीते दो दिनों में कुछ ही घंटे बारिश हुई लेकिन दिल्ली की सड़कें मिनटों में समुद्र में बदल गईं.
दिल्ली में चाहे साइकिल पर चलने वाला व्यक्ति हो या गाड़ी से चलने वाला व्यक्ति सबको दो दिन से ऐसा ही लग रहा है जैसे दिल्ली एक दरिया है और इसमें डूब के जाने के अलावा किसी के पास कोई रास्ता नहीं है. दिल्ली में भारत सरकार के बड़े-बड़े मंत्री, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत तमाम VVIP रहते हैं. लेकिन चाहे इनमें से किसी का भी बंगला हो या कोई पुलिस थाना दिल्ली में शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जहां बारिश का पानी ना भरा हो.
दिल्ली के जब एक पुलिस थाने में पानी भर गया तो कुछ लोगों ने Social Media पर लिखा कि ये पानी थाने में अपना जुर्म कबूल करने गया है. हालांकि ये बारिश ही अकेली समस्या नहीं है. कुछ ही मिनटों की बारिश के बाद पूरी दिल्ली अक्सर जाम हो जाती है. एक मेट्रो ट्रेन की Window से बनाए गए इस Video को देखकर आप समझ जाएंगे कि दिल्ली में आज Traffic Jam की क्या स्थिति थी? ये हाल तब है जब ट्रैफिक जाम की वजह से दिल्ली की अर्थव्यवस्था को हर साल 70 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है.
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वैसे तो आपको ऐसी तस्वीरें भारत के किसी भी शहर में दिखाई दे जाएंगी. चाहे वो दिल्ली हो मुंबई हो, बेंगलुरु हो या चेन्नई लेकिन दिल्ली भारत की राजधानी है. भारत की पहचान है. सोचिए अगर आज ओलंपिक खेल टोक्यो में नहीं, बल्कि दिल्ली में हो रहे होते तो क्या होता. शायद नौकायान की प्रतियोगिता के लिए अलग व्यवस्था करने की जरूरत ही नहीं पड़ती बल्कि दिल्ली की सड़कों पर ही इसका आयोजन हो जाता. अगर G7 देशों की बैठक दिल्ली में होती तो शायद दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं को नाव में बिठाकर सम्मेलन वाली जगह पर पहुंचाया जाता.
दिल्ली में जिन इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिती है उसमें से कुछ इलाके NDMC के अंतर्गत आते हैं. जबकि कुछ इलाकों की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की है. यानी इसमें सबकी बराबर गलती है. लेकिन सवाल ये है कि जब दिल्ली की सरकार दिल्ली को पेरिस जैसा बनाने का श्रेय लेती है तो फिर उसे इस समस्या के बारे में भी गंभीरता से सोचना चाहिए.
बता दें कि दिल्ली में पिछले 12 वर्षों में ये सितंबर के महीने में हुई सबसे ज्यादा बारिश है. लेकिन ज्यादा बारिश का बहाना बनाकर सरकारें शहरों को डूबने के लिए नहीं छोड़ सकती. दिल्ली ही नहीं भारत के ज्यादातर शहरों में थोड़ी सी बारिश के बाद सड़कें पानी में डूब जाती हैं क्योंकि भारत में Urban Planning पर कभी किसी सरकार ने ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया.
आपको जानकर हैरानी होगी कि हजारों वर्षों पहले भारत में जो सभ्यताएं विकसित हुई थीं उनमें पानी की निकासी के ज्यादा बेहतर इंतजाम थे. Centre For Science And Environment के वैज्ञानिकों के मुताबिक, अंग्रेजों के भारत आने से पहले भारत में बाढ़ और बारिश के पानी की निकासी की शानदार व्यवस्था थी. तब बारिश आज की तरह परेशानी का कारण नहीं बनती थी बल्कि बारिश की एक-एक बूंद का सही इस्तेमाल किया जाता था.
लेकिन जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पूरे भारत में नहरें और नाले बनाने शुरू कर दिए और पानी का प्रबंधन भारत के लोगों के हाथों से निकलकर अंग्रेजी अफसरों के हाथ में चला गया और आजादी के बाद भी ये परंपरा कायम रही. प्राचीन भारत के लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलते थे जबकि अंग्रेज प्रकृति पर विजय पाना चाहते थे.
उदाहरण के लिए आप एक तस्वीर देखिए. ये मिट्टी के जो टीले आप देख रहे हैं इन्हें राजस्थान में कुंडी कहा जाता था आम तौर पर इसे कुंड भी कहते हैं. कुंडी सिस्टम के तहत ऐसे टीले बनाए जाते थे जिनमें बारिश का पानी जमा हो जाता है और फिर यहां से ये पानी कुओं में पहुंचता था. कुंडों को ढककर रखा जाता था इसलिए इसमें जाने वाला पानी पीने लायक भी होता था.
लेकिन जब अंग्रेजों ने भारत में शहरों का निर्माण शुरू किया तो उन्होंने अतिक्रमण को बढ़ने दिया. ड्रेनेज सिस्टम को प्राकृतिक ढलान के विपरीत बनाया जाने लगा. यानी पानी की निकासी का जो सिस्टम ऊपर से नीचे की तरफ होना चाहिए था वो नीचे से ऊपर की दिशा में बनाया गया. इसलिए आज भी ज्यादा बारिश की स्थिति में पानी आगे बढ़ने की बजाय पीछे लौटने लगता है और फिर सड़कों पर जमा हो जाता है.
आजादी के बाद भी इस स्थिति को नहीं बदला गया. Indian Institute Technology Delhi की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली का ज्यादातर ड्रेनेज सिस्टम 1976 के मास्टर प्लान पर आधारित है. ये मास्टर प्लान उस समय दिल्ली की 60 लाख की आबादी के लिए बनाया गया था जो अब बढ़कर सवा दो करोड़ हो गई है.
हैरानी की बात ये है कि इस ड्रेनेज सिस्टम के तहत आने वाले ज्यादातर नालों का बहाव भी ऊपर से नीचे की तरफ नहीं बल्कि नीचे से ऊपर की तरफ है. IIT Delhi ने जब इस ड्रेनेज सिस्टम पर एक Study की तो पता चला कि पानी की निकासी के लिए बनाए गए दिल्ली के 183 नालों में से 18 पूरी तरह गायब हो चुके हैं क्योंकि इन नालों के ऊपर अब अतिक्रमण कर लिया गया है. बाकी के नाले या तो गलत ढंग से बनाए गए थे या फिर इनमें इतनी गंदगी जमा हो जाती है कि पानी आगे ही नहीं बढ़ पाता.
इसके अलावा किसी भी शहर में Sewage और बारिश के पानी की निकासी के लिए अलग-अलग नाले होने चाहिए. लेकिन दिल्ली जैसे शहरों में जगह की कमी वजह से ये दोनों नाले आपस में मिल जाते हैं. Sewage के पानी में लोगों द्वारा फेंकी गई गंदगी भी होती है इसलिए पानी के बहाव में रुकावट आ जाती है.
इसके अलावा जब दिल्ली में ज्यादा बारिश होती है तो यमुना में गिरने वाले नालों के गेट बंद कर दिए जाते हैं. इसकी वजह से भी पानी को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलता. कुल मिलाकर भारत के शहरों को बारिश वाली बाढ़ से बचाना कोई बड़ी बात नहीं है. इसके लिए सिर्फ वही Common Sense इस्तेमाल करनी होगी जिसका इस्तेमाल सैंकड़ों वर्ष पहले हमारे पुरखे करते थे.
अब सवाल ये है कि दिल्ली की ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? दिल्ली में पानी की निकासी के लिए 11 अलग-अलग सरकारी विभाग जिम्मेदार हैं यानी दिल्ली में जितने Drainage System नहीं है उससे ज्यादा सरकारी विभाग इस सिस्टम के लिए जिम्मेदार हैं.
इसके अलावा दिल्ली की सड़कों के रखरखाव की जिम्मेदारी 6 सरकारी विभागों पर है. इनमें से प्रमुख हैं National Highways Authority of India यानी NHAI, Public Works Department यानी PWD, Delhi Development Authority यानी DDA और दिल्ली के पांच नगर निगम.
NHAI और DDA भारत सरकार के अंतर्गत आते हैं जबकि PWD पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है, इसके अलावा दिल्ली के ज्यादातर नगर निगमों पर बीजेपी का कब्जा है. यानी दिल्ली को पानी में डूबोने के मामले में सब मिले हुए हैं. दिल्ली के लोग मुफ्त के पानी में डूब रहे हैं तो देश के लोगों की उम्र बढ़ते प्रदूषण की वजह से कम होने लगी है.
Chicago University के Energy Policy Institute ने भारत के वायु प्रदूषण पर एक रिसर्च की है. जिसके मुताबिक प्रदूषण की वजह से भारत के 40 प्रतिशत लोगों की औसत उम्र 9 वर्ष तक घट सकती है. यानी अगर कोई व्यक्ति 80 वर्ष तक जीता है तो भारत के वायु प्रदूषण की वजह से उसकी उम्र 71 वर्ष ही रह जाएगी.
इस Study में दावा किया गया है कि उत्तर भारत के 48 करोड़ लोग हर रोज खतरनाक वायु प्रदूषण का सामना करते हैं. जिस हवा में उत्तर भारत के लोग सांस लेते हैं वो दुनिया के किसी भी हिस्से के मुकाबले 10 गुना ज्यादा जहरीली है.
लेकिन मध्य और पश्चिमी भारत के लोगों की स्थिति भी ज्यादा अच्छी नहीं है. वर्ष 2000 के बाद से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में हवा की गुणवत्ता भी बहुत खराब हुई है और यहां के लोग भी वायु प्रदूषण की वजह से पहले के मुकाबले 2 से 3 वर्ष कम जी रहे हैं.
इस रिपोर्ट में ये सुझाव भी दिया गया है कि अगर भारत सरकार एक मजबूत Clean Air policy लेकर आए तो भारत के लोगों की औसत उम्र 5 वर्ष तक बढ़ सकती है. सिर्फ दिल्ली में ही अगर वायु प्रदूषण का स्तर World Health organization की गाइडलाइन के मुताबिक हो जाए तो दिल्ली वालों को जीवन जीने के लिए 10 अतिरिक्त साल और मिल जाएंगे.
WHO की Guidlines कहती हैं किसी शहर में वायु प्रदूषण का स्तर 10 Micro-Gram Per Cubic Meter से ज्यादा नहीं होना चाहिए. लेकिन वर्ष 2019 में भारत में प्रदूषण का स्तर करीब 70 Micro-Gram Per Cubic Meter था. यानी जितना होना चाहिए उससे सात गुना ज्यादा.
Medical Journal 'Lancet' के मुताबिक, वर्ष 2019 में दुनिया के 92 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई थी. इनमें से 16 लाख से ज्यादा मौतें अकेले भारत में हुई थी. वायु प्रदूषण का आंकलन करने वाली संस्था IQ Air ने हाल ही में दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों की लिस्ट जारी की थी. इसमें भारत तीसरा सबसे प्रदूषित देश है. इस लिस्ट में पहले नंबर पर बांग्लादेश और दूसरे नंबर पर पाकिस्तान हैं. यानी प्रदूषित देशों के मामले में Top 3 देश भारतीय उपमहाद्वीप के ही हैं.
इसी साल दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों एक लिस्ट भी आई थी. जिसमें TOP 10 प्रदूषित शहरों में 5 भारत के शहर थे. इसमें दिल्ली से सटा गाजियाबाद दूसरे नंबर पर और दिल्ली तीसरे नंबर पर थी. इसके अलावा इस लिस्ट में लखनऊ, मुजफ्फरनगर और हापुड़ जैसे शहर भी शामिल थे.
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