कारगिल विजय दिवस EXCLUSIVE: जब तीन दिन से भूखे जवानों के लिए बर्फ भी बन चुकी थी 'जहर'
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कारगिल विजय दिवस EXCLUSIVE: जब तीन दिन से भूखे जवानों के लिए बर्फ भी बन चुकी थी 'जहर'

अपनी भूख और प्‍यास बुझाने के लिए बर्फ की तरफ बढ़ते जवानों को हाथों को रोक दिया गया. इसकी वजह बर्फ के ऊपर जमी तोपों और गोलियों की बारूद थी.

देश की सेना को लेकर उलूल-जुलूल बोलने वाले लोगों के लिए तोलोलिंग की कहानी एक नजीर की तरह है और उन्‍हें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए.

नई दिल्‍ली: अक्‍सर लोग गैरसं‍जीदगी से यह बोलने में भी गुरेज नहीं करते हैं कि आखिर आर्मी को इतना 'ग्‍लोरिफाई' क्‍यों किया जाता है. ऐसे असंजीदा लोगों के लिए कारगिल का युद्ध एक नजीर है. जिसकी एक-एक दास्‍तां रोंगटे खड़ी करने वाली है. कारगिल विजय दिवस पर इस युद्ध की एक ऐसी ही दास्‍तां हम आपके लिए तोलोलिंग से लेकर आए हैं. 

  1. कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को तोलोलिंग में मिली थी पहली जीत
  2. 3 दिन तब बिना खाए-पिए दुश्‍मनों से जंग लड़ रही थी भारतीय सेना
  3. जिंदा रहने के लिए सिर्फ बर्फ का सहारा था, उसमें भी मिला था जहर

जहां लगातार दुश्‍मनों से मोर्चा ले रहे राजपूताना राइफल्‍स के अधिकारी और जवानों को इस बात का अहसास भी नहीं था कि बीते तीन दिनों से उनके पेट में अनाज का एक दाना भी नहीं गया है. जवानों को अपनी भूख का पहला अहसास तब हुआ जब उन्‍होंने आतंकियों के भेष में मौजूद पाकिस्‍तानी सेना के एक-एक जवान को मिट्टी में मिलाकर भारत की शान तिरंगे को तोलोलिंग की चोटियों पर  फहरा दिया था. 

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केसरिया बाना पहनकर कारगिल की जंग में कूदे राजपूताना राइफल्‍स के जवानों की कठिन परीक्षा यहीं खत्‍म नहीं हुई थी. जवानों ने पानी से अपनी भूख मिटाने के लिए जैसे ही अपने बैग से बॉटर बोटल निकाली, तो देखा कि उससे पानी की आखिरी बूंद भी खत्‍म हो चुकी थी. अब जवानों के पास अपनी भूख और प्‍यास मिटाने का एक ही जरिया बचा था, वह जरिया था तोलोलिंग की चोटियों में जमा बर्फ. 

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जवानों को अपनी भूख का पहला अहसास तब हुआ जब उन्‍होंने आतंकियों के भेष में मौजूद पाकिस्‍तानी सेना के एक-एक जवान को मिट्टी में मिलाकर भारत की शान तिरंगे को तोलोलिंग की चोटियों पर फहरा दिया था. (फाइल फोटो)

तोलोलिंग की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले जाबांज कैप्‍टन अखिलेश सक्‍सेना ने उन पलों को साझा करते हुए बताया कि अपनी भूख और प्‍यास बुझाने के लिए बर्फ की तरफ बढ़ते जवानों को हाथों को रोक दिया गया. इसकी वजह बर्फ के ऊपर जमी तोपों और गोलियों की बारूद थी. दरअसल, लगातार गोलीबारी के चलते बर्फ की ऊपरी सतह पूरी तरह से बारूद से पट चुकी थी. 

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इस बारूद ने अपना असर करीब एक फिट गहरी बर्फ तक छोड़ रखा था. ऐसे में कोई भी जवान बर्फ का एक भी कतरा निगल लेता तो बारूद का जहर उसकी जान लेने के लिए काफी था. बावजूद इसके, जब तक इंफोर्समेंट नहीं पहुंचता, तब तक यही बर्फ जवानों के लिए जिंदा रहने का एक जरिया था. जवानों ने अपनी भूख और प्‍यास मिटाने के लिए बर्फ को खोदना शुरू किया. करीब दो फुट का गढ्ढा करने के लिए जवानों ने बर्फ निकाली. 

इसी बर्फ को जूस कर तोलोलिंग में मौजूद सेना के सभी अधिकारी और जवानों ने अपनी प्‍यास और भूख दोनों मिटाई. देश की सरहदों की सुरक्षा में अपनी जान को दांव में लगाने वाले इन्‍हीं जवानों का त्‍याग और साहस उनको 'ग्‍लोरीफाई' होने का हक देता है. लिहाजा, देश की सेना को लेकर ऊल-जुलूल बोलने वाले लोगों के लिए तोलोलिंग की कहानी एक नजीर की तरह है और उन्‍हें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए.

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