#WorldPoetryDay : पढ़िए, ये पांच शानदार कविताएं
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#WorldPoetryDay : पढ़िए, ये पांच शानदार कविताएं

21 मार्च यानि आज विश्व कविता दिवस (World Poetry Day) है. यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) ने प्रति वर्ष 21 मार्च को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाने का फैसला किया. यूनेस्को ने 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी. विश्व कविता दिवस के अवसर पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की ओर से सबद-विश्व कविता उत्सव का आयोजन किया जाता है. 

 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है

नई दिल्ली : 21 मार्च यानि आज विश्व कविता दिवस (World Poetry Day) है. यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) ने प्रति वर्ष 21 मार्च को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाने का फैसला किया. यूनेस्को ने 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी. विश्व कविता दिवस के अवसर पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की ओर से सबद-विश्व कविता उत्सव का आयोजन किया जाता है. 

कवि और कविता के बारें में सदियों से कई बातें कही-सुनी जा रही हैं. सभ्यता के विकासक्रम में कलाओं के रूप बदलते रहे हैं. कविता ने भी कई रूप बदले. एक बात तो तय है कि इंसान के भीतर से कविता पहले जन्मी है.तो चलिए, आज आपको पांच ऐसी कविताएं पढ़वाते हैं, जिन्हें सुनकर अपना दिन बन जाएगा. 

सुमित्रानंदन पंत

वियोगी होगा पहला कवि, 
आह से उपजा होगा गान
निकलकर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अंजान

भवानी प्रसाद मिश्र 

मुझे पंछी बनाना अबके
या मछली
या कली

और बनाना ही हो आदमी
तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहां यहां से बेहतर आदमी हो

कमी और चाहे जिस तरह की हो
पारस्परिकता की न हो !

मुक्तिबोध 

यह सही है कि चिलचिला रहे फासले,
तेज दुपहर भूरी
सब ओर गरम धार-सा रेंगता चला
काल बांका-तिरछा;
पर, हाथ तुम्हारे में जब भी मित्र का हाथ
फैलेगी बरगद छांह वहीं
गहरी-गहरी सपनीली-सी
जिसमें खुलकर सामने दिखेगी उरस-स्पृशा 
स्वर्गीय उषा
लाखों आँखों से, गहरी अन्तःकरण तृषा
तुमको निहारती बैठेगी
आत्मीय और इतनी प्रसन्न,
मानव के प्रति, मानव के
जी की पुकार जितनी अनन्य!

केदारनाथ सिंह

उसका हाथ 
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए.

विनोद कुमार शुक्ल

जाते जाते ही मिलेंगे लोग उधर के
जाते जाते जाया जा सकेगा उस पार
जाकर ही वहां पहुंचा जा सकेगा
जो बहुत दूर संभव है
पहुंच कर संभव होगा
जाते जाते छूटता रहेगा पीछे
जाते जाते बचा रहेगा आगे
जाते जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब
तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा
और कुछ भी नहीं में
सब कुछ होना बचा रहेगा. 

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