सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने जो मुद्दे उठाए हैं, उन्हें गंभीरता से लेना चाहिए : राहुल गांधी
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सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने जो मुद्दे उठाए हैं, उन्हें गंभीरता से लेना चाहिए : राहुल गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा ‘‘मुझे लगता है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने जो बिन्दु उठाये हैं, वे बेहद महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने(न्यायाधीशों ने) कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है. मुझे लगता है कि इसे गंभीरता से देखा जाना चाहिए.’’ 

राहुल गांधी ने कहा,' SC के जजों ने जो बिन्दु उठाये हैं, वे बेहद महत्वपूर्ण हैं' (फोटो साभार @INCIndia)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों द्वारा उठाए मुद्दों को ‘‘ बेहद गंभीर’’ बताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रुवार को कहा कि न्यायमूर्ति लोया मामले को शीर्ष न्यायालय में उच्चतम स्तर पर देखा जाना चाहिए.  कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा ‘‘मुझे लगता है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने जो बिन्दु उठाये हैं, वे बेहद महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने(न्यायाधीशों ने) कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है. मुझे लगता है कि इसे गंभीरता से देखा जाना चाहिए.’’ राहुल ने कहा, ‘‘ उन्होंने न्यायमूर्ति लोया का मामला उठाया जिसकी समुचित जांच कराये जाने की जरूरत है. इसे उच्चतम न्यायालय के शीर्ष स्तर पर गौर किये जाने की जरूरत है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. यह अभूतपूर्व है. मुझे लगता है कि वे सभी नागरिक, जो न्याय और उच्चतम न्यायालय में विश्वास करते हैं, वे सभी इस मामले को देख रहे हैं.’’

  1. SC के जजों ने जो बिन्दु उठाये हैं, वे बेहद महत्वपूर्ण हैं : राहुल गांधी
  2. मुझे लगता है कि जजों के उठाए बिंदुओं को गंभीरता से देखा जाना चाहिए : राहुल गांधी
  3. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. यह अभूतपूर्व है : राहुल गांधी

चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में ‘सबकुछ ठीक नहीं’
 बता दें एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए उच्चतम न्यायालय के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जे चेलामेश्वर और तीन अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों ने उच्चतम न्यायालय के न्यायतंत्र से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. प्रेस कॉन्फ्रेंस में न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के अलावा न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ मौजूद रहे. उन्होंने ‘चयनात्मक तरीके से’ मामलों के आवंटन और कुछ न्यायिक आदेशों पर सवाल उठाए. इससे समूची न्यायपालिका और राजनीति में तूफान खड़ा हो गया. चार न्यायाधीशों के अप्रत्याशित कदम ने हाल के महीनों में शीर्ष अदालत में देश के शीर्ष न्यायाधीश और कुछ वरिष्ठ न्यायाधीशों के बीच मतभेद को सामने ला दिया. उच्चतम न्यायालय में फिलहाल 25 न्यायाधीश हैं.

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जब न्यायाधीशों ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया तो न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने खुद कहा कि भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह एक ‘असाधारण घटना’ है. उन्होंने कहा, ‘‘कभी-कभी उच्चतम न्यायालय का प्रशासन ठीक नहीं होता है और पिछले कुछ महीनों में अवांछनीय बातें हुई हैं.’’ न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत के कामकाज को प्रभावित करने वाले कुछ मुद्दों पर न्यायमूर्ति मिश्रा के ‘‘सुधार के लिए कोई कदम’ नहीं उठाने का आरोप लगाया. न्यायाधीश ने कहा उन्होंने इन मुद्दों को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उठाया था.

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अगर इस संस्था की रक्षा नहीं की जाती है तो इस देश में ‘‘लोकतंत्र का अस्तित्व नहीं रहेगा.’’ आजाद भारत के इतिहास में इस तरह की यह पहली घटना है. इसने अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है कि कैसे इस पवित्र संस्था में खुले मतभेद का समाधान किया जाएगा.

कड़ी आलोचना करते हुए न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उन्होंने (चारों न्यायाधीशों ने) आज सुबह प्रधान न्यायाधीश से मुलाकात की थी और ‘‘संस्था को प्रभावित कर रहे मुद्दों को उठाया.’’ प्रधान न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के चार सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम में होते हैं जो उच्चतर न्यायपालिका के लिये न्यायाधीशों का चयन करती है. न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के साथ संवाददाता सम्मेलन में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ भी मौजूद थे.

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘‘अगर इस संस्था की रक्षा नहीं की जाती है तो इस देश में लोकतंत्र का अस्तित्व नहीं रहेगा.’’ उन्होंने कहा कि इस तरह से संवाददाता सम्मेलन करना ‘बेहद पीड़ादायी’ है. संवाददाता सम्मेलन का आयोजन न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के आवास पर आयोजित किया गया था. उन्होंने कहा कि सभी चार न्यायाधीश ‘सीजेआई को राजी करने में विफल रहे कि कुछ बातें सही नहीं हैं और इसलिये आपको सुधार के उपाय करने चाहिये. दुर्भाग्य से हमारे प्रयास विफल रहे.’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘और हम चारों का मानना है कि लोकतंत्र खतरे में है और हालिया अतीत में कई बातें हुई हैं.’’ यह पूछे जाने पर कि ये कौन से मुद्दे थे तो इसपर उन्होंने कहा कि इसमें ‘सीजेआई द्वारा मामलों का आवंटन भी शामिल था.’’ उनकी टिप्पणी का महत्व है क्योंकि शीर्ष अदालत ने आज विशेष सीबीआई न्यायाधीश बी एच लोया की कथित तौर पर रहस्यमय तरीके से मौत के मुद्दे पर विचार करना शुरू किया. लोया सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले पर सुनवाई कर रहे थे.

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न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘‘हमारी संस्था और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी है.संस्था को बचाने के लिये कदम उठाने के लिये सीजेआई को समझाने के हमारे प्रयास विफल रहे हैं. यह किसी देश और खासतौर पर इस देश के इतिहास और न्यायपालिका की संस्था में एक असाधारण घटना है. बेहद दुख के साथ हम यह संवाददाता सम्मेलन बुलाने पर मजबूर हुए हैं.’’ इस घटनाक्रम पर सीजेआई के कार्यालय की तरफ से तत्काल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. यह पूछे जाने पर कि क्या वे चाहते हैं कि प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाया जाए तो न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘‘देश को फैसला करने दें.’’ इस बीच, केंद्र ने साफ कर दिया कि वह इस अप्रत्याशित घटनाक्रम में हस्तक्षेप नहीं करने जा रहा है. उसने कहा कि न्यायपालिका खुद से मुद्दे का समाधान करेगी.

चारों न्यायाधीशों ने सीजेआई को लिखा पत्र सार्वजनिक किया
चार न्यायाधीशों ने सीजेआई को जो सात पन्नों का पत्र लिखा है उसमें कहा गया है, ‘‘गहरी व्यथा और चिंता के साथ हमने सोचा है कि आपको यह पत्र लिखना उचित है ताकि इस अदालत द्वारा सुनाए गए कुछ न्यायिक आदेशों को उजागर किया जा सके, जिसने न्याय प्रदान करने की प्रणाली के समूचे कामकाज और उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है. इसके अलावा, इसने प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय के प्रशासनिक कामकाज को प्रभावित किया है.’’ न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने बताया कि पत्र कुछ महीने पहले सीजेआई को भेजा गया था. इसे आज मीडिया को जारी किया गया. 

पत्र में कहा गया है, ‘‘इस देश के विधिशास्त्र में भी यह सुस्थापित है कि प्रधान न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों के बराबर ही होते हैं और वे न तो कुछ अधिक या न ही इससे कुछ कम होते हैं.’’ पत्र में कहा गया है, ‘‘ऐसे कई दृष्टांत है जहां राष्ट्र और संस्था के लिये दूरगामी परिणाम वाले मामलों को इस अदालत के प्रधान न्यायाधीशों ने चयनात्मक आधार पर इस तरह के आवंटन के लिये बिना किसी तार्किक आधार के ‘उनकी पसंद’ की पीठों को आवंटित किया है. किसी भी कीमत पर इससे रक्षा की जानी चाहिये.’’ पत्र में कहा गया है, ‘‘संस्था के शर्मसार होने से बचने के लिये हम विवरण का उल्लेख नहीं कर रहे हैं लेकिन इस बात पर गौर करते हैं कि इस तरह के विचलन ने कुछ हद तक पहले ही इस संस्था की छवि को क्षति पहुंचाई है.’’पत्र में मामलों के आवंटन पर न्यायाधीशों की चिंताओं को भी उठाया गया है.

(इनपुट - भाषा)

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