प्रसिद्ध गीतकार-कवि गोपालदास नीरज का निधन, दिल्ली के AIIMS में ली अंतिम सांस
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प्रसिद्ध गीतकार-कवि गोपालदास नीरज का निधन, दिल्ली के AIIMS में ली अंतिम सांस

94 वर्षीय नीरज को फेफडों में संक्रमण की वजह से बीते मंगलवार की रात आगरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

फाइल फोटो

नई दिल्ली : हिंदी जगत के मशहूर गीतकार और कवि गोपालदास नीरज को गुरुवार की शाम दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया. 94 वर्षीय नीरज को फेफडों में संक्रमण की वजह से बीते मंगलवार की रात आगरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. तबीयत में सुधार नहीं होने की वजह से उन्हें गुरुवार को आगरा से दिल्ली के एम्स में शिफ्ट किया गया, जहां शाम करीब 8 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.

नीरज के निधन ने हिंदी साहित्य और फिल्मी जगत में शोक की लहर दौड़ गई है. बड़े-बड़े साहित्याकार, फिल्मी दुनिया और कई राजनेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके निधन पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि कवि गोपाल दास नीरज की प्रसिद्ध रचनाओं और गीतों को अनंत समय तक भुलाया न जा सकेगा. 

नीरज को उनके गीतों के लिए भारत सरकार ने 'पद्मश्री' और 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था. उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी अनेक गीत लिखे और उनके लिखे गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं. हिंदी मंचों के प्रसिद्ध कवि नीरज को उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया था.

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'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे' जैसे मशहूर गीत लिखने वाले नीरज को तीन बार  'फिल्म फेयर' पुरस्कार भी मिला था. 'पहचान' फिल्म के गीत 'बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं' और 'मेरा नाम जोकर' के 'ए भाई! ज़रा देख के चलो' ने नीरज को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया. गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी, 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ था. 

संघर्ष में बीता बचपन
बताते हैं कि जब नीरज 6 वर्ष के थे तो उनके पिता बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना का निधन हो गया था. उन्होंने अपनी शिक्षा उत्तर प्रदेश में ही पूरी की. एटा से प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल किया. घर चलाने के लिए पढ़ाई छोड़कर  इटावा की कचहरी में टाइपिस्ट का काम किया फिर वहीं के एक सिनेमाघर की एक दुकान पर भी नौकरी की. शुरूआती दिन कभी नौकरी में तो कभी फाकामस्ती में ही बीते. दिल्ली आकर भी नौकरी की. लेकिन फक्कड़ी स्वभाव के कारण यह नौकरी भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी. दिल्ली में उनके साथी रहे मशहूर गीतकार शकील बदायूं. वे भी उनके साथ खाद्य विभाग में टाइपिंग की नौकरी किया करते थे.

ज्यादा दिन नहीं टिके नौकरी में
दिल्ली के बाद उन्होंने कानपुर का रुख किया और नौकरी करते हुए ही इंटर. 1951 में बीए और 1953 में हिंदी साहित्य में एमए किया. पढ़ाई में वे शुरू से ही कुशाग्र थे और एग्जाम्स में हमेशा फर्स्ट डिवीजन ही पास होते थे. एमए करने के बाद उन्होंने मेरठ कॉलेज मेरठ में हिंदी प्रवक्ता के पद पर अध्यापन का काम किया. यहां से नौकरी छोड़ने के बाद वे अलीगढ़ आ गए और धर्म समाज कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हुए. इसके बाद नीरज अलीगढ़ में बस कर रह गए और अपने जीवन के अंतिम समय तक अलीगढ़ में ही रहे.

जीवन के संघर्षों के बीच ही वे मंच पर कविताएं पढ़ने लगे और उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी. मंचिय कवि के रूप में उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई. इस बीच उन्होंने मुंबई का रुख किया और कई फिल्मों के लिए मशहूर गीत लिखे. लेकिन मुंबई की माया नगरी भी उन्हें ज्यादा दिन रास नहीं आई और वे मुंबई को भी अलविदा कह आए.

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