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नयी दिल्ली: भूजल पर सिंचाई, ग्रामीण एवं शहरी पेयजल आवश्यकताओं के लिए उसके अंधाधुंध दोहन के कारण उत्पन्न गंभीर चुनौती के बीच सरकार ने इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को आगे बढ़ाने, राष्ट्रीय भूजल सुधार कार्यक्रम, समग्र जल सुरक्षा के लिए उसे मनरेगा से जोड़ने, जल क्रांति और अन्य गतिविधियों को आगे बढ़ाने की पहल की है।
जल संसाधन पर एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्यत: भूजल स्वच्छ होता है लेकिन देश के विभिन्न भागों से भूजनित एवं मानव जनित प्रदूषण की सूचनाओं की भी पुष्टि हुई है। देश के स्तर पर बात करें तो 10 राज्यों के 89 जिलों में भूजल आर्सेनिक से प्रभावित है। इसी प्रकार से 20 राज्यों के 317 जिले भूजल में फ्लोराइड से प्रभावित हैं। 21 राज्यों के 387 जिले भूजल में नाइट्रेट से और 26 राज्यों के 302 जिले लौह तत्वों से संदूषित पाये गए हैं। इसमें कहा गया है कि भूजल पर सिंचाई की आवश्यकता की 60 प्रतिशत, ग्रामीण पेयजल आवश्यकताओं की 85 प्रतिशत और शहरी जल आवश्यकताओं की 50 प्रतिशत निर्भरता है। विगत 40 वषरे में कुल सिंचाई क्षेत्र की वृद्धि में भूजल का योगदान 80 प्रतिशत से अधिक है। जीडीपी में इसका लगभग 9 प्रतिशत योगदान है । वर्ष 1975 से खाद्य और फाइबर की पैदावार के लिए भारतीय कृषि विश्व में भूजल के सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप सामने आई है । ऐसे में भूजल के स्थायित्व की स्थिाति भविष्य की बड़ी चुनौती है।
जल संसाधन मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को आगे बढ़ाने, राष्ट्रीय भूजल सुधार कार्यक्रम, समग्र जल सुरक्षा के लिए उसे मनरेगा से जोड़ने, जल क्रांति और अन्य गतिविधियों को आगे बढ़ाने की पहल की गई है। रिपोर्ट में भूजल प्रबंधन की मुख्य चुनौतियों में तीव्र एवं अधिक भूजल की निकासी, कृषि के लिए जल का अकुशल उपयोग, विशेष रूप से कठोर चट्टानों में भूजल स्रोतों का स्थायित्व, अपर्याप्त विनियामक तंत्र, केंद्र एवं राज्य स्तर पर कर्मचारियों की कमी वाले भूजल संस्थान, भूजल के सामुदायिक प्रबंधन के लिए जल प्रयोक्ता संगठनों का न होना तथा भूजल गुणवत्ता में गिरावट आदि बताये गए हैं।
भूजल दोहन और प्रबंधन कार्य नीति के तहत रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल के नये और अब तक अप्रयुक्त स्रोतों का दोहन, भूजल स्रोतों के संवर्धन के लिए व्यापक पुनर्भरण, जल निकायों के स्थायित्व और पुनरूद्धार को सुनिश्चित करने के लिए जल निकायों के संरक्षण के माध्यम से वष्रा जल संचयन, चेक बांध, फार्म तालाब का निर्माण, प्राकृतिक वनों, पवित्र उपवनों, अक्षय खांचे का संरक्षण आदि के माध्यम से जल संचयन शामिल हैं । भूजल के स्तर में लगातार गिरावट आने और देश के 20 राज्यों के दो करोड़ लोगों के जल विषाक्तता से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त होने की खबरों के बीच सरकार से स्वच्छ भारत अभियान के तहत फ्लोराइड, आर्सेनिक विषाक्तता से निदान की दिशा में प्रभावी पहल की मांग की गई है।
फ्लोराइड नॉलेज एंड एक्शन नेटवर्क एवं वाटर पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार, देश के विभिन्न इलाकों में लोगों के फ्लोरोसिस एवं अन्य जल विषाक्तता से जुड़ी बीमारी से ग्रस्त होने की रिपोर्ट आई है। फ्लोराइड और उसके प्रदूषण से होने वाली बीमारियों की गंभीरता की जानकारी सामने आए सात.आठ दशक बीत जाने के बाद भी न तो कोई प्रभावी कार्यवाही और न ही इसके निदान के लिए कोई ठोस कार्यक्रम जमीनी स्तर पर दिख रहे हैं।
जल क्षेत्र से जुड़ी संस्था सहस्त्रधारा के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में हर साल 230 घन किलोलीटर पानी धरती से खींचा जाता है और इसका 60 प्रतिशत उपयोग खेती में सिंचाई के लिए और 40 प्रतिशत पेयजल के लिए होता है । एक तरफ जल के पारंपरिक स्रोत जैसे कुएं, पोखर आदि ग्रामीण इलाकों से खत्म होते जा रहे हैं और दूसरी ओर शहरों में कई सौ किलोमीटर दूर से पाइपलाइन से पानी पहुंचाया जा रहा है। नदियों के पानी के स्रोत खत्म हो रहे हैं, पर उनका दोहन जारी है।