रामायण में जिस रामसेतु का जिक्र है उसपर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मुहर लगा दी है.
Trending Photos
नई दिल्ली: रामायण में जिस रामसेतु का जिक्र है उसपर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मुहर लगा दी है. अमेरिका के साइंस चैनल ने भूगर्भ वैज्ञानिकों, आर्कियोलाजिस्ट की अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच राम सेतू के संकेत मिलते हैं. सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों के अध्ययन के बाद कहा गया है कि भारत-श्रीलंका के बीच 30 मील के क्षेत्र में बालू की चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, लेकिन उन पर रखे गए पत्थर कहीं और से लाए गए प्रतीत होते हैं। यह करीब सात हजार वर्ष पुरानी हैं जबकि इन पर मौजूद पत्थर करीब चार-पांच हजार वर्ष पुराने हैं।
हिंदुओं धार्मिक ग्रंथ रामायण के मुताबिक भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। इसे भारत में रामसेतु व दुनिया में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 48 किमी है। रामसेतु भौतिक रूप में उत्तर में बंगाल की खाड़ी को दक्षिण में शांत और स्वच्छ पानी वाली मन्नार की खाड़ी से अलग करता है, जो धार्मिक एवं मानसिक रूप से दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ता है।
Are the ancient Hindu myths of a land bridge connecting India and Sri Lanka true? Scientific analysis suggests they are. #WhatonEarth pic.twitter.com/EKcoGzlEET
— Science Channel (@ScienceChannel) December 11, 2017
वैज्ञानिकों ने अध्ययन के बाद रामसेतु को लेकर ये 7 बड़े खुलासे किए हैं-:
1. अमेरिका के साइंस चैनल का दावा-रामसेतु कोरी कल्पना नहीं हो सकता.
2. वैज्ञानिक ऐलन लेस्टर ने कहा, हिंदू धर्म में जिक्र भगवान राम ने ऐस ही सेतु बनाया.
3. चैनल का दावा- भारत और श्री लंका के बीच मौजूद पत्थर करीब 7 हजार साल पुरानी, जमीन के ऊपर बालू 4 हजार साल पुरानी.
4. चैनल का दावा, ये ढांचा प्राकृतिक नहीं है, इंसानों द्वारा बनाए गए हैं.
5. वैज्ञानिकों का दावा- रामसेतु पर पाए जाने वाले पत्थर बिल्कुल अलग और बेहद प्राचीन.
6. पुरातत्वविद चेल्सी रोज का दावा, पत्थरों की उम्र पता की तो पता चला ये पत्थर बलुई धरातल से कहीं ज्यादा पुराने.
7. वैज्ञानिक ऐलन लेस्टर ने कहा, रिसर्च करने पर पता चला, बलई धरातल पर मौजूद ये पत्थर कहीं और से लाए गए.