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नई दिल्ली: भारत ने अपने ही देश में निर्मित ब्रह्मोस (BrahMos Missile) जैसी Missiles को बाहर बेचना शुरू कर दिया है. हथियारों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत अब एक खरीदार के तौर पर नहीं, बल्कि एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर उतर रहा है.
हाल ही में हमने फिलीपींस (Philippines) को ब्रह्मोस Missiles बेची हैं. फिलीपींस जैसे 42 और देश भारत से हथियार खरीद रहे हैं. इनमें से बहुत सारे देश वो हैं, जो चीन से परेशान हैं और अब भारत हथियार देकर उनकी मदद कर रहा है.
चीन के पूर्व सैन्य रणनीतिकार Sun Tzu (सुन त्सू) ने ढाई हज़ार साल पहले एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम है The Art of War. ये पुस्तक सैन्य रणनीति और युद्ध लड़ने के सिद्धांतों के बारे में बताती है. इसमें एक जगह वो लिखते हैं कि हमेशा दुश्मन की कमजोरी पर प्रहार करना चाहिए और ऐसी चाल चलनी चाहिए, जिससे दुश्मन हैरान हो जाए. भारत ने चीन से आए इस फॉर्मूले को, चीन के ही खिलाफ इस्तेमाल किया है.
पिछले दो दशकों में चीन ने बांग्लादेश, म्यांमार, पाकिस्तान, श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ कई रक्षा समझौते किए और इन देशों को, जितने आधुनिक हथियार चाहिए थे, उतने हथियार, देने की कोशिश की. चीन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो भारत के पड़ोसी देशों की रक्षा ज़रूरतें पूरी करके, भारत की घेराबंदी करना चाहता है. अब चीन के खिलाफ भारत ने भी इसी Template पर काम करना शुरू कर दिया है.
भारत ने फिलीपींस के साथ लगभग 375 Million Dollars यानी 2 हज़ार 811 करोड़ रुपये का एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौता किया है, जिसके तहत फिलीपींस (Philippines) को भारत में बनी ब्रह्मोस Missile दी जाएंगी. फिलीपींस की गिनती उन देशों में होती है, जिनका चीन के साथ टकराव है.
फिलीपींस की सीमा South China Sea से लगती है, जिसे चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत हड़पना चाहता है. इसी बात को लेकर इन दोनों देशों के बीच लम्बे समय से विवाद चल रहा है.
इसके अलावा भारत ने वियतनाम के साथ भी 100 Million Dollar यानी 750 करोड़ रुपये का रक्षा समझौता किया है, जिसमें वियतनाम को भारत में बनी 12 High Speed Guard Boat दी जाएंगी. जो बात नोट करने की है, वो ये कि वियतनाम भी एक ऐसा देश है, जो South China Sea में स्थित है. यानी संदेश साफ़ है, चीन अगर श्रीलंका और पाकिस्तान की मदद से हिन्द महासागर में भारत पर दबाव डालेगा तो भारत इन देशों की मदद से South China Sea में चीन को चुनौती दे सकता है. आप इसे भारत की Tit for Tat Policy भी कह सकते हैं.
देखें वीडियो:
भारत से फिलीपींस (Philippines) को ब्रह्मोस की कुल तीन Batteries मिलेंगी. हर एक Battery में 3-3 फायरिंग यूनिट होंगी. फायरिंग यूनिट को आप लॉन्चर्स भी कह सकते हैं, जिससे मिसाइल दागी जाती है. यानी इस हिसाब से 9 फायरिंग यूनिट फिलीपींस (Philippines) को मिलेंगी और हर फायरिंग यूनिट से एक बार में तीन मिसाइलें लॉन्च हो सकेंगी.
इसके अलावा हर Battery में Mobile Command Center, रडार सिस्टम और सपोर्ट गाड़ियां अलग से होंगी.
ब्रह्मोस मिसाइल, आत्मनिर्भर भारत की ताकत को दिखाती है. इसे रक्षा कम्पनी, Brahmos Aerospace ने विकसित किया है. जिसमें भारत सरकार के Defence Research and Development Organisation यानी DRDO और Russia दोनों पार्टनर हैं. यानी भारत और Russia ने मिल कर इस मिसाइल को भारत में ही विकसित किया है. अब कई देश इस मिसाइल को भारत से खरीदने के लिए लाइन लगाकर खड़े हुए हैं.
उदाहरण के लिए वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश इस मिसाइल (BrahMos Missile) को खरीदने के लिए भारत के साथ चर्चा कर रहे हैं.
ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक Cruise मिसाइल है. ये ज़मीन और समुद्र की सतह के काफी करीब उड़ती है, जिससे दुश्मनों के Radar इसका पता नहीं लगा पाते हैं. इसके अलावा ब्रह्मोस मिसाइल सतह से 10 मीटर से लेकर 14 हज़ार मीटर की ऊंचाई तक के लक्ष्यों को भेद सकती है. इसकी लंबाई आमतौर पर 8 से 9 मीटर, यानी 26 से 30 फीट तक होती है. ब्रह्मोस के कई वेरिएंट की लंबाई 42 फीट तक भी है.
इस ख़बर की दो बड़ी बातें तो आप समझ गए होंगे. पहली ये कि, भारत कैसे चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रहा है. दूसरा दुनिया के कई देश भारत से ब्रह्मोस मिसाइल क्यों खरीदना चाहते हैं. अब हम आपको इस ख़बर का तीसरा और सबसे ज़रूरी पहलू बताते हैं.
अब तक पूरी दुनिया में भारत की छवि एक ऐसे देश की रही है, जिसके पास हथियार ख़रीदने की तो क्षमता है. लेकिन अपने देश में हथियार विकसित कर, उन्हें दूसरे देशों को बेचने की ताक़त नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में हमने काम ही नहीं किया.
शायद यही वजह है कि आज हथियारों की ख़रीद के मामले में भारत, सऊदी अरब के बाद पूरी दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा देश है.
वर्ष 2020 में दुनिया में जितने हथियारों की ख़रीद हुई, उनमें से 10 प्रतिशत हथियार अकेले भारत ने खरीदे थे. पिछले 15 वर्षों में भारत 80 Billion US Dollars यानी 6 लाख करोड़ रुपये के हथियार ख़रीद चुका है.
इन आंकड़ों से अलग एक नई तस्वीर ये है कि अब भारत में भी ख़तरनाक और आधुनिक हथियार विकसित किए जा रहे हैं और हथियारों के निर्यात के मामले में भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है.
वर्ष 2015-2016 में भारत ने 2 हज़ार करोड़ रुपये के हथियार दूसरे देशों को बेचे थे. 2020-2021 में ये आंकड़ा 2 हज़ार करोड़ रुपये से बढ़ कर लगभग 6 हज़ार 300 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस क्षेत्र में भारत ने पिछले कुछ वर्षों में 228 प्रतिशत की वृद्धि देखी है, जो अभूतपूर्व है.
दुनिया के 20 से ज्यादा देश, भारत में बनी ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos Missile), अर्जुन MK-1A टैंक, तेजस Aircraft और रॉकेट सिस्टम, जिसे पिनाका कहते हैं, उसे खरीदने के इच्छुक हैं. इस समय भारत दुनिया के 42 से ज्यादा देशों को हथियार और दूसरे रक्षा उपकरण की आपूर्ति कर रहा है. जैसे, ऑस्ट्रेलिया को हमारा देश MK-N सीरीज़ के आधुनिक कारतूस सप्लाई कर रहा है.
Azerbaijan को Hard Armour Plates, जर्मनी को Bomb Suppression Blanket और युद्ध में इस्तेमाल होने वाले Helmets, इज़रायल को Mortar Shell और South Africa को ख़तरनाक Detonators बेच रहा है. इसके अलावा म्यांमार, श्रीलंका और Mauritius को भारत आधुनिक हथियार बेच रहा है.
हालांकि हथियार बेचने वाले दुनिया के Top Five देशों में अभी सबसे ऊपर अमेरिका है. इस क्षेत्र में उसकी हिस्सेदारी 37 प्रतिशत है. 20 प्रतिशत के साथ Russia दूसरे, लगभग 8 प्रतिशत के साथ फ्रांस तीसरे, साढ़े पांच प्रतिशत के साथ जर्मनी चौथे और 5 प्रतिशत के साथ चीन पांचवें स्थान पर है. भारत इस सूची में 24वें स्थान पर है. अभी इस क्षेत्र में उसकी हिस्सेदारी सिर्फ़ 0.2 प्रतिशत की है.
हालांकि यहां ये समझना ज़रूरी है कि वर्ष 2015 में ये हिस्सेदारी 0.1 प्रतिशत थी. यानी 0.1 प्रतिशत की हिस्सेदारी पाने में भारत को आज़ादी के बाद 68 वर्ष लगे. जबकि मौजूद सरकार ने इतनी ही ग्रोथ केवल पांच वर्षों में हासिल कर ली.
पूरी दुनिया में हथियारों का बाज़ार 531 Billion Dollars यानी 40 लाख करोड़ रुपये का है. ये भारत के रक्षा बजट से 10 गुना ज्यादा है. कई देशों की कुल GDP के बराबर है.
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यहां एक महत्वूपर्ण बात आपके लिए ये है कि, भारत में एक तरफ़ हथियारों के निर्यात में 228 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं दूसरी तरफ़ हथियारों की ख़रीद 33 प्रतिशत तक गिर गई है. यानी अब भारत हथियारों के लिए दूसरे देशों पर अपनी निर्भरता को घटा रहा है और आत्मनिर्भर बन कर रक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा Player बन रहा है.