कारगिल विजय दिवसः भारतीय सीमाओं पर अब नहीं हो सकती वैसी चूक
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कारगिल विजय दिवसः भारतीय सीमाओं पर अब नहीं हो सकती वैसी चूक

कारगिल विजय दिवस के 18 साल (फाइल फोटो)

नई दिल्लीः आज कारगिल विजय दिवस है. 26 जुलाई 1999 को ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान को जंग में हरा कर जम्मू कश्मीर के कारगिल में तिरंगा फहराया था, तब से हर साल इस दिन को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है.  सेना पाकिस्तान सीमा पर अब बेहद सतर्क है. कारगिल युद्ध के 18 सालों के बाद सेना की यह बड़ी कामयाबी है कि आतंकियों को अपने मंसूबों में सफलता नहीं मिली. हालांकि सेना के सूत्र दावा करते हैं कि बर्फबारी शुरू होने पर बड़ी घुसपैठ की कोशिशें हर साल होती हैं. लेकिन सेना की कड़ी चौकसी एवं त्वरित प्रतिक्रिया इन प्रयासों को विफल कर रही हैं.

भारतीय सीमा पर सेना और बीएसएफ की चौकसी के बावजूद पाकिस्तान की फौज हमारी सीमा में कैसे दाखिल हो गई, यह गंभीर बात थी लेकिन आज भी यह कहना भी ठीक नहीं होगा कि जब कारगिल युद्ध हुआ था तब हमारे पास इंतजाम नहीं थे. तब भी हमारी क्षमता अपनी सीमाओं की रक्षा करने की थी. लेकिन तब चूक यह हुई कि बर्फबारी के दौरान कारगिल और अन्य ऊंचाई वाले स्थानों से सेना नीचे बुला ली गई, जिसका फायदा आतंकियों ने उठाया.

लेकिन अब ऐसा नहीं होता है. जहां तक देश की सरहद है, वहां बारहों महीने सेना की तैनाती रहती है. भले ही वहां बर्फ जमी रहे. रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल अफसीर करीम ने ये बात हिंदी के एक बड़े अखबार को बताई. 

सीमा पर कैसे-कैसे खतरे

नकली नोटों का कारोबार, आतंकी घुसपैठ, ड्रग्स के अलावा हथियारों और मवेशियों की तस्करी, अवैध प्रवासियों की आवाजाही जैसे खतरे देश की सीमाओं पर लगातार बने रहते है. इसी के लिए 

घुसपैठ की 15 घटनाएं

इस साल छह महीनों में कश्मीर में घुसपैठ की 115 घटनाएं हो चुकी हैं. लेकिन सेना एवं सुरक्षा बलों की चौकसी ने इनमें से ज्यादातर को विफल कर दिया. सिर्फ 19 मामलों में ही आतंकी घुसपैठ में सफल रहे. लेकिन यह घुसपैठ ऐसी थीं, जिनमें एक या दो आतंकी घुसने में सफल रहते हैं. आतंकियों के समूह का घुसना संभव नहीं है.

अलग तरह की फेंसिंग से बढ़ी चौकसी

घुसपैठ रोकने के लिए की जाने वाली तारबंदी पहले एंटी इंफिलट्रेशन ऑबस्टकल सिस्टम (एआईओएस) बाड़ लगाई जाती थी, लेकिन अब घुसपैठ वाले संवेदनशील स्थानों पर स्मार्ट ऑबस्टकल फेंसिग सिस्टम लगाना शुरू कर दिया है. इसे नियंत्रण रेखा पर 50 किलोमीटर में लगा भी दिया गया है. सेना का दावा है कि यह बर्फ मे भी खराब नहीं होगा.

सेंसर के जरिए रखी जा रही है सीमाओं पर नजर

स्मार्ट ऑबस्टकल सिस्टम में कई किस्म के सेंसर भी लगे हैं. जैसे नाईट विजन कैमरा, अलार्म, विजुअल मैप, डिस्प्ले आदि. इन्हें नियंत्रण केंद्र से मानीटर किया जा सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि बर्फबारी के बाद भी इस प्रकार की बाड़ को नुकसान नहीं पहुंचता है. इस सिस्टम को लगाने से पहले ट्रायल किए गए हैं. सेना की इंजीनियरिंग बटालियन खुद इसे लगा रही है. चरणबद्ध तरीके से चार सौ किलोमीटर संवेदनशील नियंत्रण रेखा पर यह बाड़ लगी है.

ड्रोन कैमरों से सीमा की निगरानी

सीमा पर आतंकी गतिविधियों की निगरानी में अब इसरो के उपग्रहों की मदद ली जा रही है. दूसरे, सेना चालक रहित विमान द्रोण का भी इस्तेमाल करती है. इसलिए बड़ी घुसपैठ मुश्किल है.

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