केरल: दलित महिला हत्या मामले में दोषी को 'मौत की सजा', जज ने 'निर्भया' केस से की तुलना
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केरल: दलित महिला हत्या मामले में दोषी को 'मौत की सजा', जज ने 'निर्भया' केस से की तुलना

घटना के तुरंत बाद पेरुम्बावूर छोड़ने वाले इस्लाम को इस सनसनीखेज घटना के 50 दिन बाद पड़ोसी तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम से गिरफ्तार किया गया.

 इस मामले में 100 से अधिक पुलिसकर्मियों ने 1,500 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की.

कोच्चि: केरल में पिछले साल कानून की 30 वर्षीय दलित छात्रा के बलात्कार और हत्या के सनसनीखेज मामले में दोषी पाए गए असम के 22 वर्षीय मजदूर अमीरुल इस्लाम को यहां की एक अदालत ने आज मौत की सजा सुनाते हुए इस घटना की तुलना 2012 के निर्भया मामले से की.एर्नाकुलम की प्रधान सत्र अदालत के न्यायाधीश एन अनिल कुमार ने पेरुम्बावूर में कानून की छात्रा की हत्या के मामले को ‘‘दिल्ली में निर्भया मामले की तरह दुर्लभतम मामला बताया.’’ हत्या के इस मामले में असम से यहां आया प्रवासी मजदूर इस्लाम दोषी पाया गया है. पिछले वर्ष विधानसभा चुनावों के दौरान इस घटना से राज्य में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था जहां विपक्षी दलों ने कांग्रेस नीत यूडीएफ सरकार पर कथित तौर पर जांच में ‘‘शिथिलता’’ बरतने और दोषियों को तुरंत गिरफ्तार करने में ‘‘विफल’’ करार दिया था.

  1. इस्लाम के वकील ने कहा कि वह दोषी नहीं है और पुलिस ने उसे इस मामले में फंसाया है.
  2. इस्लाम पर 28 अप्रैल 2016 को पेरुम्बावूर में महिला का बलात्कार और हत्या करने का आरोप लगाया गया.
  3. गत वर्ष अप्रैल से शुरू हुए मुकदमे के दौरान 100 गवाहों के बयान दर्ज किए गए.

अदालत ने निर्भया मामले का जिक्र करते हुए अपने आदेश में कहा, ‘‘जब समाज की सामूहिक चेतना को चोट पहुंचे तो अदालत का कर्तव्य बनता है कि वह मौत की सजा सुनाए.’’ 16 दिसम्बर 2012 को राष्ट्रीय राजधानी में चलती बस में एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार किया गया था जिसमें चार दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई. इस्लाम को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में दोषी पाया गया जिनमें महिला के बलात्कार, हत्या, हत्या के इरादे से घर में घुसना और गलत तरीके से महिला को कैद करने के मामले शामिल हैं.

सजा सुनाते हुए अदालत ने निर्भया मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश का जिक्र किया और इस्लाम को भादंसं की धारा 302 के तहत हत्या की सजा सुनाई. इसके अलावा उसे भादंसं की धारा 376 ए, 376, 342 और 449 के तहत भी सजा सुनाई गई. अदालत ने मामले में सजा सुनाने को लेकर बीते 13 दिसंबर को अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें सुनीं. बचाव पक्ष के वकील ने मामले में निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए आवेदन दाखिल किया था. उनकी दलील थी कि अभियुक्त सिर्फ अपनी मातृभाषा असमिया समझता है और केरल पुलिस ने उसके साथ निष्पक्ष व्यवहार नहीं किया.

बहरहाल, अदालत ने बचाव पक्ष के वकील की ओर से दाखिल आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह आवेदन कानून के मुताबिक नहीं है. अभियोजक पक्ष ने दलील दी कि जिस क्रूर तरीके से 30 वर्षीय कानून की छात्रा का बलात्कार और हत्या की गई वह दुर्लभ से दुर्लभतम की श्रेणी में आता है. उन्होंने कहा कि इस मामले में दोषी को मौत की सजा सुनाई जानी चाहिए. अभियोजन पक्ष ने कहा कि जिस पैशाचिक और बर्बर तरीके से निहत्थी महिला के साथ यह अपराध किया गया वह ठीक उसी तरह का है जैसा वर्ष 2012 में नई दिल्ली में निर्भया के साथ हुआ था.

इस्लाम के वकील ने कहा कि वह दोषी नहीं है और पुलिस ने उसे इस मामले में फंसाया है. इस मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल ने इस अपराध में इस्लाम की संलिप्तता साबित करने के लिए डीएनए तकनीक और कॉल रिकॉर्ड की जानकारियों का सत्यापन करने के तरीके का इस्तेमाल किया. इस्लाम पर 28 अप्रैल 2016 को पेरुम्बावूर में महिला का बलात्कार और हत्या करने का आरोप लगाया गया.

गत वर्ष अप्रैल से शुरू हुए मुकदमे के दौरान 100 गवाहों के बयान दर्ज किए गए. गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली महिला की उसके घर पर हत्या किए जाने से पहले नुकीले औजारों से बर्बर तरीके से उत्पीड़न किया गया. घटना के तुरंत बाद पेरुम्बावूर छोड़ने वाले इस्लाम को इस सनसनीखेज घटना के 50 दिन बाद पड़ोसी तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम से गिरफ्तार किया गया. इस मामले में 100 से अधिक पुलिसकर्मियों ने 1,500 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की.

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