व्यापक विपक्ष की एकता का संदेश देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कम से कम 10 राजनीतिक दलों के नेता मंगलवार को संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेंगे और नये भूमि विधेयक के खिलाफ एक ज्ञापन सौंपेंगे।
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नई दिल्ली : व्यापक विपक्ष की एकता का संदेश देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कम से कम 10 राजनीतिक दलों के नेता मंगलवार को संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेंगे और नये भूमि विधेयक के खिलाफ एक ज्ञापन सौंपेंगे।
मार्च का समन्वय जदयू अध्यक्ष शरद यादव द्वारा किया जा रहा है।
विपक्ष के सूत्रों ने बताया कि इस प्रदर्शन में कांग्रेस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है जिसमें उस ज्ञापन को अंतिम रूप देना शामिल है जिसे मंगलवार की शाम में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सौंपा जाएगा।
इस मार्च में पूर्व प्रधानमंत्री एवं जदएस प्रमुख एच डी देवेगौड़ा, माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के डी राजा, तृणमूल कांग्रेस नेता दिनेश त्रिवेदी, सपा के रामगोपाल यादव, द्रमुक की कनिमोई, इनेलो के दुष्यंत चौटाला और राजद के प्रेम चंद गुप्ता के शामिल होने की उम्मीद है।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद मसौदे को अंतिम रूप देने में कांग्रेस की ओर से समन्वय कर रहे हैं। सोनिया के मार्च में शामिल होना महत्वपूर्ण है क्योंकि न तो वह और न ही राहुल गांधी ने आज यहां जंतर मंतर पर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कांग्रेस के प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इस प्रदर्शन का आयोजन भट्टा परसौल से कांग्रेस की चार दिन पहले शुरू हुई पदयात्रा के समापन पर आयोजित किया गया था।
इसके साथ ही इस मार्च में मनमोहन सिंह का हिस्सा लेना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा तब हो रहा है जब कुछ दिनों पहले कांग्रेस प्रमुख ने पार्टी मुख्यालय से पूर्व प्रधानमंत्री सिंह के आवास तक एक मार्च का नेतृत्व किया था। वह मार्च सिंह के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए किया गया था जिन्हें एक कोयला घोटाला मामले में सम्मन किया गया है।
इस बीच राकांपा ने कहा कि वह भूमि अधिग्रहण विधेयक का राज्यसभा में समर्थन करने को तैयार है बशर्ते सरकार तीन मुद्दों को लेकर उसकी चिंताओं पर गौर करे जिसमें सहमति क्लाज को शामिल करना और सामाजिक प्रभाव आकलन शामिल है जिसे हटा दिया गया है।
राकांपा महासचिव डी पी त्रिपाठी ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि किसानों की सहमति वाला क्लाज विधेयक का हिस्सा हो यदि उनकी जमीन अधिग्रहित की जाती है। दूसरा सरकार सुनिश्चित करे कि सामाजिक प्रभाव आकलन क्लाज बरकरार रहे जिसे सरकार ने हटा दिया है।’’