1988 में मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए वहां के व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफी ने एक योजना बनाई. उसने इसके लिए श्रीलंका के तमिल पृथकतावादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) का सहयोग लिया.
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नई दिल्ली: मालदीव में जारी राजनीतिक अस्थिरता और 15 दिनों की इमरजेंसी लगने के बाद राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने 'मित्र' देशों को मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी देने के लिए अपने राजननियक भेजे हैं. चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों में ये राजनयिक भेजे गए हैं. हालांकि भारत में कोई दूत नहीं भेजा गया है. इससे साफ संकेत मिला है कि एक दौर में भारत का बेहद करीबी रहा यह देश अब दूरी बना रहा है. इसके पीछे चीन जैसे मुल्कों की भूमिका देखी जा रही है.
हालांकि विपक्षी नेता और पूर्व राष्ट्रपति मो नशीद ने भारत के बड़े अखबारों में बुधवार को एक आर्टिकल लिखकर देश की ताजा स्थिति के बारे में जानकारी दी है. नशीद ने भारत से मौजूदा हालात में एक बार फिर सैन्य हस्तक्षेप करने के लिए कहा है. उल्लेखनीय है कि भारत ने 30 साल पहले सैन्य हस्तक्षेप के जरिये मालदीव के तत्कालीन संकट को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी.
इस बीच चीन ने भारत को चेताया है कि वह मालदीव के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी नहीं करे. 'ग्लोबल टाइम्स' के एक संपादकीय में बुधवार को यह बात कही गई. वास्तविकता यह है कि भारत से महज 400 किमी दूर हिंद महासागर में स्थित यह देश भारत का हमेशा करीबी रहा है. लेकिन 2013 में अब्दुल्ला यमीन के सत्ता में आने के बाद से इसका झुकाव चीन की तरफ बढ़ता गया है.
ऑपरेशन कैक्टस
1988 में मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए वहां के व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफी ने एक योजना बनाई. उसने इसके लिए श्रीलंका के तमिल पृथकतावादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) का सहयोग लिया. उनकी योजना ये थी कि जब राष्ट्रपति गयूम माले में नहीं हों तो बगावत कर दी जाए. इसी बीच तीन नवंबर, 1988 को गयूम ने भारत आने की योजना बनाई. उनके लिए एक भारतीय विमान भी माले के लिए भेजा गया था. लेकिन वो यहां आ पाते, उससे पहले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को चुनाव के सिललिसे में दिल्ली से बाहर जाना पड़ गया. उन्होंने गयूम से बात की और ये तय हुआ कि वह बाद में आ जाएंगे.
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इस बीच अब्दुल्ला लुथूफी पूरी तरह से गयूम की गैरमौजूदगी में तख्तापलट की योजना बना चुका था. इसलिए जब उसको यह पता चला कि गयूम का भारत दौरा टल चुका है, इसके बावजूद उसने अपनी योजना नहीं बदली. फिर क्या था, पर्यटकों के वेश में स्पीड बोटों के माध्यम से पर्यटकों के रूप में मालदीव में घुसे PLOTE चरमपंथी सड़कों पर उतर आए. उन्होंने माले के सरकारी प्रतिष्ठानों पर कब्जे करने शुरू कर दिए. राष्ट्रपति गयूम ने सुरक्षित जगह पर पनाह ली और भारत से तत्काल मदद मांगी.
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नतीजतन भारत सरकार ने तत्काल एक्शन लेते हुए सेना को मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप करने का आदेश दिया. लिहाजा तीन नवंबर, 1988 को भारतीय वायुसेना के Ilyushin Il-76 एयरक्राफ्ट ने ब्रिगेडियर फारूख बुलसारा के नेतृत्व में पैराशूट रेजीमेंट के जवानों को लेकर उड़ान भरी. बिना रुके 2000 किमी की हवाई उड़ान के बाद हुलहुले द्वीप पर माले अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर उतरे. उसके कुछ ही घंटे के भीतर भारतीय सेना ने माले पर नियंत्रण कर लिया और राष्ट्रपति गयूम को सुरक्षित निकाला गया.
चीन की चाल
दरअसल हिंद महासागर में मालदीव की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि के लिहाज से चीन के लिए बेहद उपयोगी है. इसलिए वह मालदीव के साथ संबंध मजबूत करने का इच्छुक है. इसी कड़ी में मालदीव ने हालिया दौर में चीन के साथ मैरीटाइम सिल्क रूट से जुड़े एमओयू पर हस्ताक्षर किए. पिछले सितंबर में मालदीव के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया. उसके इस कदमों को भारत से बढ़ती दूरी के रूप में देखा जा रहा है.