एक अटके बांध के चलते लटक गई 7 गांवों के 200 लड़कों की शादी, घर में चूल्हा फूंकने को हैं मजबूर!
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एक अटके बांध के चलते लटक गई 7 गांवों के 200 लड़कों की शादी, घर में चूल्हा फूंकने को हैं मजबूर!

ताकली बांध के डूब क्षेत्र में आ रहे सात गांव सोहनपुरा, सारनखेड़ी, रघुनाथपुरा, दड़िया, टूड़कली और तमोलिया के लोगों का पुनर्वास का मामला करीब दस सालों से अटका हुआ है.

ताकली बांध के डूब क्षेत्र में आ रहे सात गांव के लोगों के पुनर्वास का मामला करीब दस सालों से अटका हुआ है.

कोटा: आपको इस बात पर शायद ही यकीन हो कि एक बांध के न बन पाने के चलते लड़कों की शादी ही रुक जाए. लेकिन, यह सच है... एक बांध के चलते सात गांव के दो सौ से ज्यादा लड़के कुंवारे रह गए हैं. यह मामला राजस्थान के कोटा और झालावाड़ से लगे रामगंजमंडी का है. रामगंजमंडी के सात गांवों में पिछले कई सालों से एक बारात भी नहीं आई है. सात गांवों में शादी की शहनाई नहीं बजी. क्योंकि यहां बने ताकली बांध की वजह से ये सभी गांव डूब क्षेत्र में हैं और जिनका अपना कोई रहने का ठिकाना नहीं रहा उनके यहां कोई अपनी बेटी देगा क्यों?

  1. डूब क्षेत्र में आने वाले 7 गांव के लोगों का पुनर्वास का मामला करीब दस सालों से अटका हुआ है.
  2. गांव के लोग फिलहाल जहां रह रहे हैं वो जगह उनकी नहीं बल्कि सरकारी घोषित हो चुकी है.
  3. गांवों की बेहाली का आलम ये है कि सरकार की तरफ से इन गांवों का विकास रुक गया है.

कोई भी अपनी बेटी देने को तैयार नहीं
विकास की क्या कीमत चुकानी पड़ती है ये कोई डूब क्षेत्र के इन गांवों के कुवांरों से पूछे. डूब क्षेत्र में आने वाले सात अलग-अलग गांवों के नौजवान ताकली बांध पर बेकार घूमते नजर आते रहते हैं. उन नौजवानों में अधिकतर की संख्या ऐसी है जिनकी उम्र अब शादी के लायक हो चुकी है तो कुछ की निकल रही है. कई तो ऐसे भी मिल जाएंगे जिनकी शादी की उम्र (गांव के रहन-सहन के मुताबिक) पार भी हो चुकी है लेकिन कोई इनके गांव में अपनी बेटी देने को राजी नहीं हुआ.

10 साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा
जी न्यूज के संवाददाता हिमांशु मित्तल ने जब इलाके के लोगों से बात की तब पता चला कि ताकली बांध के डूब क्षेत्र में आ रहे सात गांव सोहनपुरा, सारनखेड़ी, रघुनाथपुरा, दड़िया, टूड़कली और तमोलिया के लोगों का पुनर्वास का मामला करीब दस सालों से अटका हुआ है. इन गावों के लोगों को अभी तक अपने मकानों का मुआवजा तक नहीं मिल पाया है. इसलिए ग्रामीणों ने न तो अपने मकान खाली किए और न ही उन्हें नई जगह दी गई. यही वजह है कि ज्यादातर मकान जर्जर हालत में होने के बावजूद उनकी मरम्मत भी लोग नहीं करवाते. सिर्फ इतना ही नहीं इन गांवों के लोगों ने अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन करने से लेकर अफसरों और मंत्रियों तक ज्ञापन भी पहुंचा दिया मगर इनकी सुनवाई कभी नहीं हुई.

खो चुके हैं अपनी जमीन का मालिकाना हक
इस गांव की स्थित भी बेहद अजीब सी है. गांव के लोग फिलहाल जहां रह रहे हैं वो जगह उनकी नहीं बल्कि सरकारी घोषित हो चुकी है. यानि गांव वाले अपनी जमीन और घर का मालिकाना हक खो चुके हैं. गांव जब डूब क्षेत्र में घोषित हुआ तो सरकारी सुविधा पर बीते 10 साल पहले ही ब्रेक लग गया. ऐसे में इन 7 गांवों के पास न अपनी जमीन है न अपना घर फिर कोई अपनी बेटी आखिर देगा तो क्यों देगा.

बीजेपी और कांग्रेस की सियासी लड़ाई में फंस गया है मामला
ताकली बांध के डूब क्षेत्र के सात गांवों का मुद्दा बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई में भी फंस गया है और इस सियासी लड़ाई के बीच उम्र पार कर रहे युवाओं की शादी का मामला कभी हल नहीं हो सकने वाला एक मुद्दा भी बन चुका है. सारनखेड़ी के शैतान सिंह की कहानी भी इसी का जीता जागता उदहारण है.

चूल्हा फूंकने को मजबूर हैं गांव के नौजवान
शैतान सिंह की उम्र तीस साल के पार हो चुकी है लेकिन अभी तक कुंवारे हैं. वे सारनखेड़ी गांव के रहने वाले हैं. डूब क्षेत्र के चलते शैतान सिंह की भी शादी अटक गई. ऐसे में बुजुर्ग मां-बाप की सेवा करने की जिम्मेदारी भी उन्हें अकेले ही उठानी पड़ रही है. उनकी छोटी बहन उनकी मदद कर दिया करती है. अपनी छोटी बहन के साथ चाय और खाना बनाने तक की जिम्मेदारी अब शैतान सिंह की मजबूरी है.

रुक गया गांवों का विकास
इन सब गांवों की बेहाली का आलम ये है कि सरकार की तरफ से इन गांवों का विकास रुक गया है तो गांव के लोग भी इन गांवों का विकास नहीं करवाते. जिसकी सीधी सी वजह है कि गांव वालों को खुद ही नहीं पता कि वहां उनका ठिकाना कितने दिन चलने वाला है. क्योंकि जिस जमीन पर आज ये रह रहे हैं वो सरकारी घोषित की जा चुकी है. इस वजह से ये सात गांव एक साथ अपनी बेहाली और बदहाली पर आंसू ही बहा रहे हैं. 

बीजेपी विधायक ने दे रखा है आश्वासन
डूब क्षेत्रों के इन सात गांवों में करीब दो सौ युवा अभी तक अपनी बारात की निकासी का इंतजार कर रहे हैं. गांवों के मकान ही नहीं इनकी सड़कों, नालियों और दूसरी मूलभूत जरूरतों का हाल भी खराब है. डूब क्षेत्र में होने के कारण इन गांवों को स्वच्छ भारत समेत किसी भी केंद्र या राज्य सरकार की योजना का लाभ नहीं मिल रहा. डूब क्षेत्रों के गांवों का मुआवजा तय नहीं हुआ और सालों से यहां बीजेपी के विधायक जीत रहे हैं उन्हें इन लोगों का दर्द दिखता तो है मगर शायद मह्सूस नहीं होता. बीजेपी की रामगंजमंडी विधायक चंद्रकांता मेघवाल इन सात गांवों के लोगों की शिकायत को वाजिब तो मान रही हैं मगर सारा दोष अफसरों के ऊपर डालते हुए जल्द समस्या का हल निकालने का वादा करती हैं.

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