महबूबा ने ट्वीट करके कहा कि पिछले पांच महीनों से राजनीतिक संबद्धताओं की परवाह किये बगैर, हमने इस विचार को साझा किया था.
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नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता ने बुधवार की रात कहा कि प्रदेश में एक महागठबंधन के विचार ने ही बीजेपी को बेचैन कर दिया. महबूबा ने सिलसिलेवार ट्वीट किया, ''एक राजनेता के रूप में मेरे 26 वर्ष के कैरियर में, मैंने सोचा था कि मैं सब कुछ देख चुकी हूं. मैं उमर अब्दुल्ला और अंबिका सोनी का तहेदिल से आभार व्यक्त करना चाहती हूं जिन्होंने हमें असंभव दिखने वाली चीज को हासिल करने में मदद की.''
हमारी मांग पर नहीं भंग की विधानसभा- मुफ्ती
महबूबा ने ट्वीट करके कहा कि पिछले पांच महीनों से राजनीतिक संबद्धताओं की परवाह किये बगैर, हमने इस विचार को साझा किया था कि विधायकों की खरीद फरोख्त और दलबदल को रोकने के लिए राज्य विधानसभा को भंग किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि लेकिन हमारे विचारों को नजरअंदाज किया गया. लेकिन किसने सोचा होगा कि एक महागठबंधन का विचार इस तरह की बैचेनी देगा. उन्होंने यह भी कहा कि आज की तकनीक के दौर में यह बहुत अजीब बात है कि राज्यपाल आवास पर फैक्स मशीन ने हमारा फैक्स प्राप्त नहीं किया, लेकिन विधानसभा भंग किये जाने के बारे में तेजी से बयान जारी किया गया.
सरकार बनाने का दावा पेश हेते ही भंग कर दी गई विधानसभा- उमर अब्दुल्ला
वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया कि उनकी पार्टी पांच महीनों से विधानसभा भंग किये जाने का दबाव बना रही थी. यह कोई संयोग नहीं हो सकता कि महबूबा मुफ्ती के दावा पेश किये जाने के कुछ ही मिनटों के भीतर अचानक विधानसभा को भंग किये जाने का आदेश आ गया. उमर ने मजाकिया अंदाज में कहा, ''जम्मू कश्मीर राजभवन को तत्काल एक नयी फैक्स मशीन की जरूरत है.'' कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि एक लोकप्रिय सरकार का गठन करने के लिए वार्ता प्रारंभिक चरण में थी और केंद्र की बीजेपी सरकार इतनी चिंतित थी कि उन्होंने विधानसभा भंग कर दी.
बीजेपी ने की संविधान की अनदेखी- यशवंत सिन्हा
आजाद ने कहा, ''स्पष्ट है कि भाजपा की नीति यही है कि या तो हम हों या कोई नहीं.'' बीजेपी के पूर्व नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि विधानसभा भंग किये जाने का यह ताजा उदाहरण दिखाता है कि बीजेपी किसी को भी सरकार नहीं बनाने देगी चाहे इसके लिए संविधान की ही क्यों न अनदेखी करने पड़े.
(इनपुट भाषा से)