बात साल 2004 की है. विनोद रस्तोगी के जरिए लिखे गए नाटक 'बंटवारे की आग' में अभिव्यक्त विभाजन के दर्द को प्रस्तुत करने का मौका पहली बार लाहौर में मिला.
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इलाहाबाद: गांव में नौटंकी के नगाड़े की आवाज सुनकर दूर-दूर से लोग खींचे चले आते हैं और गायकी प्रधान इस नाट्य विधा में अपनी जिंदगी के गम और ख़ुशी की तलाश करते हैं. जब पहली बार इलाहाबाद से उठी नौटंकी की आवाज लाहौर तक पहुंची तो एक इलाहाबादी के ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और उसने तुरंत नौटंकी के निर्देशक और उसके संस्था के लिए एक चिठ्ठी लिख कर भेज दी. ये इलाहाबादी कोई और नहीं अमिताभ बच्चन थे. ये चिठ्ठी एक इलाहाबादी का अपने इलाहाबाद के लोगों से प्रेम अनुराग और उससे जुड़े लगाव को बताती है.
यह बात साल 2004 की है. विनोद रस्तोगी के जरिए लिखे गए नाटक 'बंटवारे की आग' में अभिव्यक्त विभाजन के दर्द को प्रस्तुत करने का मौका पहली बार लाहौर में रफ़ी पीर थिएटर वर्कशॉप की तरफ से आयोजित फेस्टिवल में मिला. इसमें भारत-पकिस्तान के बड़े-बड़े लोग शामिल हुए. जिसमें हिन्दुस्तान से नादिरा बब्बर, राजेंद्र गुप्त, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ जैसे नामी निर्देशकों की भी प्रस्तुति थी. 'बंटवारे की आग' एक ऐसी कहानी है, जिसमें दोनों देशों के अपने-अपने दर्द दिखे हैं.
पुराने लोगों में एक कहावत है- जिसने लाहौर नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा. जिस दौर में लोगों के मन में लाहौर देखने की चाहत होती थी, उस वक्त लोग किसी भी बहाने से पकिस्तान जाने की वजह खोज लेते थे. और अतुल यदुवंशी को ये वजह रफ़ी पीर थिएटर के फेस्टिवल से मिली.
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इलाहाबाद से पहली बार लाहौर अपनी मंडली 'स्वर्ग' के साथ गए अतुल यदुवंशी (जो इस वक्त स्वर्ग रंग मंडल के माध्यम से भारतीय लोक कला, भारतीय अस्मिता, मूल्यों और संस्कृति को मजबूत करने में लगे हुए हैं) कहते हैं कि, पकिस्तान के दर्शकों के आलावा वहां पर जो भी नाटक देख रहा था, वे सब बंटवारे से मिले अपने हिस्से का दर्द महसूस कर रहे थे.
फेस्टिवल में इलाहाबाद से स्वर्ग रंग मंडल का जाना और भी सुखद था. इससे भी ज्यादा सुखद था अमिताभ बच्चन का स्वर्ग रंग मंडल को उनकी प्रस्तुति पर पत्र लिखना, जिस पर सभी इलाहाबादियों को गर्व है.
अतुल बताते हैं कि फेस्टिवल के आगाज पर पंजाब प्रांत के गवर्नर मोहम्मद खालिद ने लाहौर में भारत की प्रस्तुति को दोस्ती का प्रतीक बताया था. उन्होंने हम सभी को घर में दावत दी. 'बंटवारे की आग' के सभी कलाकरों को जो प्रेम लाहौर में मिला उसकी यादें अभी भी जेहन में ताजा है.
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अतुल जी आगे कहते हैं कि जब दोनों देशों के बीच रिश्ते तल्ख़ है, तब वहां पर नाटक प्रस्तुत करना बहुत बड़ी बात मानी जा सकती है. साथ ही अमिताभ बच्चन का पत्र एक तरह की धरोहर है, जो हम सबको आगे बढ़ने और भारतीय लोक कला को आगे बढ़ाने में मदद करती है. अंत में अतुल जी कहते हैं इलाहाबाद से उठी आवाज नगाड़ें की आवाज लाहौर के मंच पर पहुंच सकती है तो लोगों के दिलों में पहुंचने में देर नहीं लगेगी.