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चेन्नई : कावेरी का पानी छोड़ने के उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवज्ञा को लेकर कर्नाटक की खिंचाई करते हुए तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने आज कहा कि जानबूझकर ऐसी अवज्ञा संविधान की भावना के विरूद्ध है एवं अदालत की अवमानना है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा बुलायी गयी दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में तमिलनाडु के मुख्य सचिव पी राममोहन राव ने जयललिता का भाषण पढ़कर सुनाया। जयललिता ने कहा कि उनके राज्य ने शीर्ष अदालत के हर आदेश का ईमानदारीपूर्वक पालन किया है।
उन्होंने कहा, ‘उसके विपरीत, कर्नाटक ने माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवज्ञा की। उच्चतम न्यायालय के एक के बाद एक कर कई आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा की गयी।’ यहां एक अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रही जयललिता ने कहा कि वह बैठक में इसलिए नहीं आ पायीं क्योंकि वह अस्पताल में भर्ती हैं।
उन्होंने कहा कि वह इस उम्मीद के साथ चर्चा में शामिल हुई कि तमिलनाडु को कावेरी के पानी में उसका वैध हिस्सा मिलेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि 31 अगस्त, 2016 को तमिलनाडु को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के अंतिम आदेश के मुताबिक 60.983 टीएमसी पानी की कमी थी।
उन्होंने कहा कि ऐसी भारी कमी और कावेरी डेल्टा क्षेत्र में कम से कम एक फसल सांबा को बचाने के इरादे से उनका राज्य अंतिम निर्देश के लिए उच्चतम न्यायालय पहुंचने को बाध्य हुआ। उन्होंने प्रारंभ में 20 सितंबर तक 15,000 क्यूसेक और बाद में उसे संशोधित कर 12,000 क्यूसेक पानी रोजाना छोड़े का निर्देश कर्नाटक को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये जाने का स्मरण किया।
जयललिता ने कहा, ‘लेकिन कर्नाटक पानी की जरूरी मात्रा छोड़ने में विफल रहा।’ उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने बाद में उसे संशोधित कर 6000 क्यूसेक कर दिया। उन्होंने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश की पूरी तरह अवज्ञा करते हुए कनाट्रक तमिलनाडु को निर्धारित मात्रा में पानी छोड़ नहीं पाया।