त्रिपुरा में भाजपा को मिला बहुमत, 25 साल बाद सत्ता से 'बेदखल' लेफ्ट
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त्रिपुरा में भाजपा को मिला बहुमत, 25 साल बाद सत्ता से 'बेदखल' लेफ्ट

60 सीटों वाली त्रिपुरा विधानसभा चुनाव की अवधि 6 मार्च 2018 को खत्म होने वाली है.

अगरतला के एक मतदान केंद्र पर वोटों की गिनती. (ANI/3 March, 2018)

अगरतला: मोदी लहर पर सवार भाजपा ने शनिवार (3 मार्च) को त्रिपुरा में वाम के गढ़ को ध्वस्त कर दिया और अपनी सहयोगी आईपीएफटी के साथ मिलकर दो तिहाई बहुमत हासिल कर लिया. भाजपा ने इसके साथ ही त्रिपुरा में 25 वर्ष से जारी वाम शासन को उखाड़ फेंका. भाजपा का पूरे त्रिपुरा में एक पार्षद भी नहीं था और उसने 2013 के चुनाव में दो प्रतिशत से भी कम वोट हासिल किया था. त्रिपुरा में भाजपा और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) गठबंधन को 59 सीटों में से 43 सीटों पर जीत मिली. भाजपा की झोली में 35 सीटें आयीं जबकि आईपीएफटी आठ सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही. इस गठबंधन ने प्रदेश की सभी सुरक्षित 20 जनजातीय विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है.

  1. भाजपा गठबंधन ने लेफ्ट को किया त्रिपुरा की सत्ता से बाहर.
  2. भाजपा ने इसबार चुनावी मैदान में 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे.
  3. राज्य में माकपा ने 56, जबकि कांग्रेस ने सभी 59 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.

त्रिपुरा में भाजपा को 2013 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 1.5 फीसदी वोट मिले थे और 50 में 49 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. जबकि इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को 43 फीसदी वोट मिले हैं. वहीं, वाम मोर्चे को 2013 के चुनाव में कुल 50 सीटें मिली थीं और वह अभी सिर्फ 18 सीटों पर आगे चल रही है. माकपा और भाकपा गठबंधन को 44 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं, जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में लगभग छह फीसदी कम है. माकपा को अकेले 42.7 फीसदी वोट मिले हैं.

मुख्यमंत्री माणिक सरकार धनपुर सीट पर विजयी हुए हैं. वह पिछले 20 साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में 10 विधानसभा क्षेत्र में जीत मिली थी लेकिन इस बार पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई.प्रदेश के 60 सदस्यीय विधानसभा की 59 सीटों पर 18 फरवरी को मतदान हुए थे. जनजातीय सुरक्षित सीट चारीलम में 12 मार्च को मतदान होगा. यहां माकपा उम्मीदवार नारायण देबबर्मा का निधन हो जाने से मतदान नहीं हो पाया था. 

25 साल से लेफ्ट सरकार
पिछले 25 साल से त्रिपुरा में लेफ्ट की सरकार थी. राज्य में सत्तारूढ़ मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भाकपा, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस और निर्दलीयों सहित कुल 290 उम्मीदवार चुनावी मैदान में आमने-सामने थे. इनमें कुल 23 महिलाएं भी थीं. भाजपा ने इसबार चुनावी मैदान में 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जबकि उसने नौ सीट अपने सहयोगी इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के लिए छोड़ी थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावे भाजपा के कई दिग्गज नेता त्रिपुरा में चुनावी प्रचार के दौरान उतरे थे.

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राज्य में माकपा ने 56 सीट पर प्रत्याशी उतारे थे. पार्टी ने एक-एक सीट मोर्चे के घटक दलों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के लिए छोड़ी थी. कांग्रेस ने सभी 59 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन काकराबन-शालग्रहा से पार्टी के उम्मीदवार सुकुमार चंद्र दास ने अपना नामांकन वापस ले लिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे. वहीं तृणमूल कांग्रेस ने 24 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. 

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माणिक सरकार पिछले 20 साल से राज्य के मुख्यमंत्री थे और लगातार पांचवीं बार धनपुर से नामांकन दाखिल किया था. माकपा के कद्दावर नेताओं में से एक माणिक सरकार को उनकी साफ सुथरी छवि और देश के सबसे गरीब मुख्यमंत्री के रूप में जाना जाता है. उन्होंने 29 जनवरी को विधानसभा चुनाव के लिए अपने हलफनामा दाखिल किया, जिसमें उन्होंने अपनी निजी जानकारियां दी जिसमें दिखाया गया कि उनके पास महज 1520 रुपये नकद हैं, बैंक खाते में 20 जनवरी तक 2410 रुपये दिखाए. माणिक सरकार त्रिपुरा के मुख्यमंत्री होने के साथ ही माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य भी हैं.

वहीं भाजपा ने त्रिपुरा राज्य इकाई की महासचिव प्रतिमा भौमिक को माणिक सरकार के खिलाफ मैदान में उतारा था. भौमिक इससे पहले 1998 और 2003 में सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी है और उन्हें दोनों बार तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था.

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