कश्मीर में साल 1990 से 9 अप्रैल 2017 तक हिंसा में 40,000 से ज्यादा जानें गईं
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कश्मीर में साल 1990 से 9 अप्रैल 2017 तक हिंसा में 40,000 से ज्यादा जानें गईं

जम्मू कश्मीर में जारी अलगाववादी हिंसा के दौरान पिछले तीन दशक में 40 हजार से ज्यादा जानें जा चुकी हैं. साल 1990 से 9 अप्रैल 2017 तक की अवधि में मौत के शिकार हुए इन लोगों में स्थानीय नागरिक, सुरक्षा बल के जवान और आतंकवादी शामिल हैं. कश्मीर में हिंसा को लेकर एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले 27 सालों में अब तक राज्य में आतंकवादी गतिविधियों और आतंकवाद विरोधी अभियानों में 40961 लोग मारे गए हैं. जबकि 1990 से 31 मार्च 2017 तक की अवधि में घायल हुए सुरक्षाबल के जवानों की संख्या 13 हजार से अधिक हो गई है.

मंत्रालय की उपसचिव और मुख्य सूचना अधिकारी सुलेखा द्वारा आरटीआई के जवाब में स्थानीय नागरिकों, आतंकवादियों और सुरक्षा बल के जवानों की मौत का 1990 से अब तक का हर साल का आंकड़ा जारी किया

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर में जारी अलगाववादी हिंसा के दौरान पिछले तीन दशक में 40 हजार से ज्यादा जानें जा चुकी हैं. साल 1990 से 9 अप्रैल 2017 तक की अवधि में मौत के शिकार हुए इन लोगों में स्थानीय नागरिक, सुरक्षा बल के जवान और आतंकवादी शामिल हैं. कश्मीर में हिंसा को लेकर एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले 27 सालों में अब तक राज्य में आतंकवादी गतिविधियों और आतंकवाद विरोधी अभियानों में 40961 लोग मारे गए हैं. जबकि 1990 से 31 मार्च 2017 तक की अवधि में घायल हुए सुरक्षाबल के जवानों की संख्या 13 हजार से अधिक हो गई है.

मंत्रालय की उपसचिव और मुख्य सूचना अधिकारी सुलेखा द्वारा आरटीआई के जवाब में स्थानीय नागरिकों, आतंकवादियों और सुरक्षा बल के जवानों की मौत का 1990 से अब तक का हर साल का आंकड़ा जारी किया है. आंकड़ों के मुताबिक राज्य में बीते तीन दशक की हिंसा के दौरान मारे गए लोगों में 5055 सुरक्षा बल के जवानों की शहादत भी शामिल हैं. जबकि 13502 सैनिक घायल हुए. राज्य में जारी इस आतंकी हिंसा के दौरान स्थानीय नागरिकों की मौत का आंकड़ा 13941 तक पहुंच गया है. आंकड़ों के मुताबिक आतंकी हिंसा के शिकार हुए लोगों में सबसे ज्यादा 21965 मौतें आतंकवादियों की हुई है. आरटीआई में मंत्रालय ने कश्मीर की आतंकवादी हिंसा में संपत्ति को हुये नुकसान की जानकारी देने से इनकार कर दिया. मंत्रालय ने इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं होने के कारण जम्मू निवासी आरटीआई आवेदक रमन शर्मा से जम्मू कश्मीर सरकार से यह जानकारी मांगने को कहा है.

आंकड़ों के विश्लेषण में स्पष्ट होता है कि तीन दशक के हिंसक दौर में मौत के लिहाज से साल 2001 सर्वाधिक हिंसक वर्ष रहा. इस साल हुई 3552 मौत की घटनाओं में 996 स्थानीय लोग और 2020 आतंकवादी मारे गए. जबकि सुरक्षा बल के 536 जवान शहीद हुए. हालांकि स्थानीय नागरिकों की सबसे ज्यादा मौत (1341) साल 1996 में हुई. आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 में आतंकवादी हिंसा से जानमाल को सर्वाधिक नुकसान होने के बाद साल 2003 से इसमें लगातार गिरावट दर्ज की गई है. साल 2003 में 795 स्थानीय नागरिकों और 1494 आतंकवादियों की मौत के अलावा 341 सुरक्षा बल के जवान शहीद हुए. इसके बाद साल 2008 से स्थानीय नागरिकों और सुरक्षा बल के जवानों की मौत का आंकड़ा दो अंकों में सिमट गया है. साल 2010 से साल 2016 तक स्थानीय नागरिकों की मौत का आंकड़ा 47 से गिरकर 15 तक आ गया है.

इसके उलट इस अवधि में शहीद हुए सुरक्षा बल के जवानों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस दौरान शहीद हुए सुरक्षा बल के जवानों की संख्या 69 से बढ़कर साल 2016 में 82 तक पहुंच गई. हालांकि साल 2017 में 9 अप्रैल तक 5 स्थानीय नागरिक और 35 आतंकवादी मारे गए. जबकि सुरक्षा बल के 12 जवान शहीद हुए हैं. वहीं इस साल 31 मार्च तक सुरक्षा बल के 219 जवान घायल हो चुके हैं. गत 9 अप्रैल को श्रीनगर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव के बाद कश्मीर घाटी में अलगाववादी हिंसा तेजी से भड़की है. इसे रोकने के लिए राज्य में सुरक्षा बलों का अभियान जारी है.

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