Shaurya: करगिल युद्ध का वो हीरो जिसने सीने पर 15 गोलियां खाकर भी टाइगर हिल पर लहराया तिरंगा
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Shaurya: करगिल युद्ध का वो हीरो जिसने सीने पर 15 गोलियां खाकर भी टाइगर हिल पर लहराया तिरंगा

Shaurya: योगेंद्र यादव के पराक्रम की वजह से ही भारत की 18 ग्रेनेडियर्स को टाइगर हिल के अहम पॉइंट पर कब्जा करने में सफलता हासिल हुई थी. उन्हें अपनी बहादुरी और तिरंगे का मान बढ़ाने के लिए महज 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आज हम 'शौर्य' सीरीज में सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव (Yoginder Singh Yadav) की शौर्य गाथा आपको बताते हैं. 

Shaurya: करगिल युद्ध का वो हीरो जिसने सीने पर 15 गोलियां खाकर भी टाइगर हिल पर लहराया तिरंगा

Kargil war hero Yogendra Singh Yadav: आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर Zee News अपने पाठकों के लिए एक स्पेशल सीरीज 'शौर्य' लेकर आया है. इसमें आप देश के असली हीरोज की कहानी पढ़ेंगे जिन्होंने अपनी जान की बाजी खेलकर तिरंगा के मान को बढ़ाने के काम किया है. आज हम आपको पराक्रम की वो कहानी बताने जा रहे रहें जिसे पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा. देश की आजादी के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव लगातार बना रहता है. भारत-पाक के बीच हुए 1999 के करगिल युद्ध को आखिर कौन भूल सकता है. इस जंग में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी. लेकिन क्या आपको इस जंग के हीरो योगेंद्र यादव (Yoginder Singh Yadav) के बारे में पता है जिन्होंने सीने पर 15 गोलियां खाने के बाद भी दुश्मन को देश की एक इंच पर भी कब्जा नहीं करने दिया था. 

करगिल के हीरो की कहानी

योगेंद्र यादव के पराक्रम की वजह से ही भारत की 18 ग्रेनेडियर्स को टाइगर हिल के अहम पॉइंट पर कब्जा करने में सफलता हासिल हुई थी. उन्हें अपनी बहादुरी और तिरंगे का मान बढ़ाने के लिए महज 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. आज हम 'शौर्य' सीरीज में सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव (Yoginder Singh Yadav) की शौर्य गाथा आपको बताते हैं. 

साल 1996 के दौर था जब योगेंद्र यादव पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए सिर्फ 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए थे. उनके पिता करण सिंह भी एक सैनिक थे जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1972 की जंग में हिस्सा लिया था. बचपन से ही योगेंद्र अपनी पिता की विजयगाथा सुनकर बड़े हुए थे और इसी जज्बे के साथ उन्होंने आर्मी जॉइन की. लेकिन सेना में भर्ती होने के कुछ साल बाद ही योगेंद्र को अपना साहस दिखाने का मौका मिला और साल 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ करगिल युद्ध शुरू हो चुका था.

योगेंद्र की टुकड़ी को मिला था अहम जिम्मा

भारत से तीन जंग हारने के बाद भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया और उसने साल 1999 में भारत पर हमला करने की गलती कर दी. इस जंग में योगेंद्र यादव की 18 ग्रेनेडियर्स रेजीमेंट को टाइगर हिल के 3 सबसे अहम पॉइंट पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इसके बाद 4 जुलाई 1999 में योगेंद्र यादव अपनी कंमाडो प्लाटून के साथ मिशन पर निकल पड़े. दूसरी ओर से दुश्मन गोलियां बरसा रहा था लेकिन भारत जवानों का हौसला सातवें आसमान पर था और उसे डिगा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं था.

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योगेंद्र यादव की प्लाटून के सामने सबसे बड़ी चुनौती टाइगर हिल की पहाड़ी से पार पाना था क्योंकि सीधे 90 डिग्री की चढ़ाई करना कोई आसान काम नहीं था. लेकिन दुश्मन को खदेड़ कर भगाने का सिर्फ यही एक रास्ता था और ऐसे में जवानों ने अपना कैंप छोड़कर रात में पहाड़ी की चढ़ाई शुरू कर दी. लेकिन रात के अंधेरे में ऊपर बैठा दुश्मन भारतीय जवानों की एंट्री से अलर्ट हो चुका है और पाकिस्तान की ओर से अंधाधुंध गोलीबारी शुरू हो गई. इस दौरान कई जवान घायल हुए और टुकड़ी को कुछ कदम पीछे भी खींचने पड़े. लेकिन योगेंद्र यादव की टुकड़ी 5 जुलाई को फिर से आगे बढ़ना शुरू हुई और तब उनके साथ सिर्फ 25 जवान थे.  

सीने पर खाईं 15 गोलियां

दूसरी कोशिश की भनक भी दुश्मन को लग चुकी थी और पाकिस्तान की ओर से भारतीय टुकड़ी पर फिर से फायरिंग शुरू हो गई. इस दौरान कई भारतीय जवान घायल हुए. लेकिन फिर रणनीति के तहत जवानों ने पीछे हटने का फैसला किया ताकि दुश्मन की आंखों में धूल झौंकी जा सके. पाकिस्तानी जवान यह देखकर खुश थे कि भारतीय टुकड़ी धराशाई हो चुकी है लेकिन यह सिर्फ उन्हें चकमा देने के लिए किया गया था. योगेंद्र यादव समेत 7-8 सैनिक अब भी पहाड़ी पर मौजूद और दुश्मन यह देखने नीचे आया कि कोई भारतीय जवान जिंदा तो नहीं बचा है, भारतीयों ने उनपर धावा बोल दिया. 

अब दोनों ओर से फायरिंग हो रही थी जिससे डरकर कुछ पाकिस्तानी जवान भाग खड़े हुए. भारतीय टुकड़ी सुबह होते-होते टाइगर हिल के करीब पहुंच चुकी थी लेकिन इस दौरान भागे हुए सैनिकों को अपने साथियों को इस हमले के बारे में बता दिया था. जैसी ही योगेंद्र यादव अपनी टुकड़ी के साथ ऊपर की ओर बढ़े तो पाकिस्तानी जवानों ने उन्हें घेर लिया. दुश्मन की गोलीबारी में उनकी टुकड़ी के कई जवान शहीद हो गए और योगेंद्र यादव को भी 15 गोलियां लगी थीं, लेकिन अभी तक वह जिंदा थे. पाकिस्तान सैनिकों को लगा कि वह भी मर चुके हैं. इसी बीच पाकिस्तानी सैनिक उनकी ओर बढ़ ही रहे थे कि योगेंद्र ने अपने पास रखा ग्रेनेड दुश्मनों की ओर फेंक दिया.

दुश्मन को पीछे खदेड़ने में सफल

ग्रेनेड का धमाका इतना जोरदार था कि पाकिस्तानी सैनिकों को परखच्चे उड़ गए. इसके बाद हिम्मत दिखाते हुए योगेंद्र ने अपनी रायफल उठाकर पाकिस्तानियों पर अंधाधुंध फारिंग शुरू कर दी ताकि धमाके से बचे सैनिकों को भी ढेर किया जा सके. योगेंद्र यादव पहले ही गहरे जख्म झेल रहे थे और बेहोशी की हालत में वह एक नाले में गिर गए. इसमें बहते हुए वह काफी नीचे तक आ चुके थे. लेकिन ऊपर पहाड़ी पर पाकिस्तानी जवानों को नामों-निशान तक मिटा दिया था. 

इसके बाद नीचे भारतीय सैनिकों की मदद से उन्हें बचाया गया और इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया. भारतीय सैनिकों ने इसके बाद टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया था और सच्ची वीरता दिखाने वाले योगेंद्र यादव के पराक्रम की बदौलत ही यह हो पाया था. इसी साहस का परिचय देने के लिए यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. साल 2022 जनवरी में ही योगेंद्र यादव रिटायर हुए हैं और उन्हें मानद कैप्टन के पद से सम्मानित किया गया था.

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