भारतीय वैक्सीन को मंजूरी देने की बात हो या भारतीयों की विदेश यात्रा को मंजूरी देने का फैसला, भारत कई मोर्चों पर वैक्सीन रेसिज्म का शिकार हो रहा है. भारतीयों के साथ कई बड़े देश सौतेला व्यवहार कर रहे हैं. कुछ देशों ने भले ही हमारे लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं लेकिन कई देशों की अभी भी यात्रा नहीं कर सकते. कहीं देर से परमीशन मिलने की वजह से लोगों के बने हुए काम बिगड़ रहे हैं. ऐसा ही एक देश जर्मनी भी है. जर्मनी ने भारतीयों के लिए रास्ते 6 जुलाई को खोले हैं लेकिन दिल्ली एक छात्र को वहां 31 मई तक जाना था. छात्र का एक वीजा एक्सपायर हो चुका है. छात्र कोवीशिल्ड वैक्सीन की दूसरी डोज का शेड्यूल 28 दिन में पूरा करने के लिए बने विशेष सेंटर पर पहुंचा. कॉलेज ने कहा है कि एडमिशन लेने की आखिरी तारीख 31 अगस्त है लेकिन अगर तय समय पर वीजा न मिला तो समझिए काम खत्म.
मल्टीनेशनल फार्मा कंपनी के हेड संजय राजपाल की मुश्किलें इससे भी बड़ी हैं, इन्होंने कोवैक्सीन (Covaxin) लगवाई है. सितंबर में कंपनी की एनुअल मीटिंग है जो नीदरलैंड में होनी है. वहां जाए बिना काम आगे चलाना मुश्किल है और जाएं तो जाएं कैसे? कोवैक्सीन तो अभी तक WHO से ही अप्रूवल नहीं मिला है. इसी रवैये का नतीजा ये है कि कोवैक्सीन लगवा चुके लोग अब चोरी से कोवीशील्ड (covishield) लगवाने की सोचने लगे हैं.
भारत के नागरिक रूस, सर्बिया, आइसलैंड, रवांडा, जर्मनी, इथोपिया अफगानिस्तान और 15 जुलाई से मॉरिशस जा सकते हैं. कतर, साउथ कोरिया, नेपाल कंबोडिया भी जा सकते हैं. फ्रांस से ट्रांजिट के लिए आरटी पीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव चाहिए होगी. बाहरीन में 10 दिन का कंपल्सरी क्वारंटीन, 48 घंटे पहले की रिपोर्ट, फिर क्वारंटीन के 5वें और 10वें दिन दोबारा टेस्ट होगा. सभी जगह 48-72 घंटे की कोविड नेगेटिव रिपोर्ट जरुरी है. ज्यादातर जगह 14 दिन का क्वारंटीन जरुरी है. दुनिया को कोरोना बांटने चीन की भी शर्त ये है कि भारतीयों को हेल्थ डिक्लेरेशन फॉर्म, नेगेटिव न्यूक्लिक एसिड टेस्ट, एंटीबॉडी टेस्ट, 48 घंटे के अंदर का टेस्ट, एयरपोर्ट पर फिर टेस्ट जरूरी है. मेक्सिको और वेनेजुएला भारतीयों के लिए पूरी तरह खुले हैं. वहां किसी तरह के टेस्ट और क्वारंटीन की जरुरत नहीं है.
USA, UAE, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया, केन्या कुवैत, माले, हांगकांग, इजरायल, म्यांमार, न्यूजीलैंड, इटली में भारतीयों की एंट्री बैन है. इतना ही नहीं किसी ने 14 दिन भारत में गुजारे हैं तो भी बैन है.
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135 करोड़ की आबादी वाले देश में ये भी एक उपलब्धि है कि जनवरी 2021 से शुरु हुए वैक्सीनेशन अभियान में भारत में 36 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है. अमेरिका की कुल आबादी से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक डोज लग चुकी है. अमेरिका की आबादी 33 करोड़ के लगभग है. भारत में 35- 50 लाख डोज रोज लगाई जा रही हैं. फिर भी भारत पर सुस्त वैक्सीनेशन का आरोप लग रहा है.
एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को EU ने मान्यता दी है लेकिन उसके भारतीय संस्करण कोवीशिल्ड को नहीं. WHO चीन की दो वैक्सीन को मान्यता दे चुका है लेकिन भारत की कोवैक्सीन को नहीं जबकि क्वालिटी के मामले में दोनों वैक्सीन कई वेरिएंट से मुकाबला करने में सक्षम पाई गई हैं. इन दोनों वैक्सीन को मंजूरी देने और भारतीयों को एंट्री देने के मामले में आर्थिक तौर पर संपन्न देशों और WHO का रवैया समझ से बाहर है.
WHO से एक महीने के अंदर भारत की कोवैक्सीन को मान्यता मिलने की उम्मीद है. भारत के कड़े तेवर के बाद स्विट्जरलैंड, Iceland और EU के 8 देशों ने कोवीशिल्ड को वैक्सीन पासपोर्ट के तहत मान्यता दे दी है. Estonia पहला देश है जिसने कोवैक्सीन को भी मान्यता दे दी है. EMA यानी european Medicine Agency के अप्रूवल के बाद भारतीयों के लिए यूरोप के रास्ते खुल सकते हैं लेकिन वो कब होगा अभी नहीं कहा जा सकता.
रिकवरी का आंकड़ा हो या मौत का हर मामले में भारत अमेरिका से बेहतर हालात में है लेकिन भारत को अभी भी गरीब, बेचारे और तीसरी दुनिया के देश की छवि के चलते कई देशों ने बैन के दायर में रखा है. चीन के वुहान से फैले वायरस का खामियाजा भारत को अपनी उदारवादी छवि के चलते भुगतना पड़ रहा है जिसे अब भारतीय वैज्ञानिक और कूटनीतिक मोर्चो पर सुलझाने में लगा है. यूऩ के सेक्रेटरी जनरल Antonio Gutress ने हाल ही में ट्वीट किया था, अमीर देश गरीब देशों के मुकाबले तीस गुना तेजी से वैक्सीनेशन कर रहे हैं. वैक्सीनेशन में ये बड़ा अंतर ठीक नहीं है. ये सभी के लिए खतरनाक है.
भारत वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार समेत 95 देशों को वैक्सीन दे चुका है. इसके लिए भारत की आलोचना भी हुई कि अपने देश के लोगों को छोड़कर पहले रहनुमा वाली छवि के चक्कर में पड़ गया भारत लेकिन यूएन और wHO दोनों का यही मानना रहा है कि जब तक पूरी दुनिया के देशों को वैक्सीन नहीं पहुंचेगी, कोरोना खत्म नहीं होगा. जिस तरह से वेरिएंट तेजी से एक दूसरे देश में फैल रहे हैं वो ये समझाने के लिए काफी है कि वैक्सीन के मामले में अगर वैश्विक रवैया नहीं अपनाया गया और मनमर्जी की पाबंदियों से देशों को बांधा गया तो कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं रुकेगा. हां दुनिया के देशों में पक्षपात और उदासीनता वाली फीलिंग को बल जरुर मिलेगा.
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